कोटा.दरअसल, 6 साल पहले विशाल की मां की मौत हो गई थी. परिवारजनों ने इस हादसे से सबक लेकर ब्रेन डेड बेटे के ऑर्गन दूसरे जरूरतमंदों के काम आए इसके लिए एक प्रयास किया. इस मसले पर विशाल के पिता नरेश कपूर का कहना है कि उनकी पत्नी की 6 साल पहले किडनी नहीं मिलने से मौत हो गई थी, भगवान ने इस तरह का एक मौका दिया है तो वे अपने बेटे के अंगों को दान करना चाहते हैं, ताकि दूसरे लोगों को नया जीवनदान मिल सके. उन्होंने बेटे के अंगों को जिंदा रखने के लिए मेडिकल कॉलेज से लेकर जिला प्रशासन तक संपर्क किया.
हालांकि मेडिकल कॉलेज की ब्रेन डेड कमेटी का कहना है कि ब्रेन डेड करने के पहले मरीज के कुछ टेस्ट करवाए जाते हैं, जिनके पैरामीटर में नार्मल आने पर ही ब्रेन डेड घोषित किया जा सकता है. ऐसे में विशाल के टेस्ट पहले करवाए थे, तब नॉर्मल नहीं आए थे. अब जब उसके पैरामीटर नार्मल आए हैं. तो उसे ब्रेन डेड घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की है.
दूसरी ओर मेडिकल कॉलेज के ब्रेन डेड कमेटी के अध्यक्ष और एडिशनल प्रिंसिपल डॉ. विजय सरदाना का कहना है कि कोटा में मेडिकल कॉलेज में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा ही नहीं है. यहां पर ब्रेन डेड कमेटी तो बनी हुई है, लेकिन साधनों के अभाव में किसी भी अस्पताल को अंगदान अभियान से जुड़ने के लिए नॉन ट्रांसप्लांट ऑर्गन रिट्रायबल सेंटर से रजिस्टर्ड होना जरूरी है. लेकिन मेडिकल कॉलेज व शहर के निजी अस्पताल का अभी तक पंजीयन नहीं हुआ है.
ऐसे में स्टेट की कमेटी ही तय करेगी कि मरीज के ब्रेन डेड घोषित होने के बाद उसके अंगों को कैसे और कहां निकालना है. ताकि तुरंत दूसरे मरीजों को ट्रांसप्लांट हो सके. कोटा में रिट्रायबल सेंटर नहीं होने की स्थिति में स्टेट की कमेटी ही अनुमति लेकर जहां वह मरीज भर्ती है. वहां पर अंगों का रिट्रायबल करवा सकती है.