कोटा. शहर में रेजिडेंट्स डॉक्टरों की हड़ताल का असर अब अस्पतालों पर पड़ने लगा है. इस सिलसिले में शहर के तीनों बड़े अस्पतालों में रेजिडेंट्स डाक्टरों की हड़ताल होने के कारण एक मरीज की जान चली गई. जानकारी के अनुसार मरीज का समय पर सीपीआर तक नहीं हो पाया और मरीज ने दम तोड़ दिया.
आए दिन होने वाली रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल का खामियाजा मरीज भुगत रहे हैं, अब हर कोई सवाल करने लगा है कि अपनी मांगे मनवाने का इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है क्या.? बात-बात पर रेजिडेंट हड़ताल कर रहे हैं. ऐसे में डिग्री धारी रेजिडेंट और संविदा कर्मी में क्या फर्क रह जाता है.
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कुन्हाड़ी के हरिशंकर शर्मा को सुबह चेस्ट पेन होने पर परिजनों ने अस्पताल में एडमिट कराया था. इमरजेंसी मेडिसिन वार्ड में उनका करीब 4 घंटे तक इलाज चला. इसके बाद परिजन उन्हे दूसरे अस्पताल ले गए और उन्हें वार्ड में लेकर आए तो स्टाफ ने डॉक्टर को कॉल किया. वार्ड में कॉल करने के 26 मिनट बाद मेडिसिन विभाग के सीनियर डॉक्टर पहुंचे और रोगी को सीपीआर शुरू किया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. आखिरकार मरीज को मृत घोषित कर दिया.
इसलिए है रेजिडेंट डॉक्टरों का रोल...
सीनियर डॉक्टर अस्पतालों में 6 घंटे मिलते हैं, जबकि रेजिडेंट्स 24 घंटे बाद. वह इमरजेंसी में रहकर व्यवस्थाएं संभालते हैं. किसी भी इमरजेंसी में रेजिडेंट को कॉल किया जाता है और वह तत्काल पहुंच भी जाते हैं. ऐसे में सीपीआर और अन्य प्रोसीजर तत्काल हो जाते हैं. मेडिकल कॉलेज के अधीन 300 से ज्यादा रेजिडेंट हैं. ऐसे में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टर नहीं होने से व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं.
टालने पड़े 40 ऑपरेशन...
रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल के कारण तीनों अस्पतालों में 40 ऑपरेशन टालने पड़े. वहीं मरीज बाहर ही भटकते रहे. मेडिकल कॉलेज के आर्थोपेडिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर आरपी मीणा ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑपरेशन और सर्जरी करने के लिए रेजिडेंट डॉक्टरों की टीम के साथ में काम किया जाता है, जिसमें रेजिडेंट डॉक्टरों की महत्वपूर्ण भूमिका इसमें होती है. इनके हड़ताल के कारण कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन टाले जाने की मजबूरी बनी हुई है.