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कोरोना और ब्लैक फंगस के बीच अब बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम

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Published : Jul 2, 2021, 11:05 PM IST

Updated : Jul 2, 2021, 11:13 PM IST

कोरोना (Corona) और ब्लैक फंगस (Black fungus) के बाद बच्चों में मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रन (Multi System Inflammatory Syndrome in Children MIS-C) नामक नई बीमारी कहर ढा रही है. इस बीमारी की चपेट में वो बच्चे आ रहे हैं, जो कोरोना के मरीज रह चुके हैं. पढ़िए पूरी खबर...

Multi system inflammatory syndrome in children, kota latest news
बच्चों पर अब MIS-C का खतरा

कोटा. कोरोना के बाद जिस तरह से बड़ी उम्र के लोगों को ब्लैक फंगस इनफेक्शन भारी पड़ रहा है, उसी तरह से छोटे बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) बीमारी सामने आई है. यह कोविड-19 से संक्रमित बच्चों में सामने आया है. सबसे बड़ी बात है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए जो एंटीबॉडी बच्चों के शरीर में बन रही है, वही एंटीबॉडी शरीर के भीतरी अंगों पर हमला करती है जिससे कि उनमें सूजन आ रही है.

पढ़ें- Special : डीजल ने किया मजबूर तो CNG पर दौड़ने लगी बसें, प्रदेश में पहली बस भी कोटा से और किट भी यहीं लगना शुरू

इस बीमारी में लीवर, किडनी और हार्ट के साथ-साथ आहार नली में भी सूजन आ गई है. जेके लोन अस्पताल में भर्ती हुए 33 बच्चों में से तीन की मौत हुई है. इन तीन मौतों के बारे में चिकित्सकों का कहना है कि मरीज गंभीर अवस्था में आए थे. एक बच्चे ने तो भर्ती होने के 12 घंटे में ही दम तोड़ दिया था. आते ही ऐसे गंभीर बच्चों को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया था. बच्चे RT-PCR पॉजिटिव तो नहीं है, लेकिन ज्यादातर बच्चों में एंटीबॉडी पॉजिटिव आ रही है.

बच्चों पर अब MIS-C का खतरा-1

फ्री में लगे लाखों रुपए के इंजेक्शन

जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनीता खंडेलवाल ने बताया कि बच्चों के आते ही इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन के साथ स्टेरॉयड दिया जाता है. साथ ही सबसे बड़ी बात है कि बच्चों का खून पतला करने के लिए दवाई हिपेरिन दी जाती है. चिकित्सकों का कहना है कि इससे पहले बच्चों में इतनी ज्यादा मात्रा में इस दवा का उपयोग नहीं किया गया है.

बच्चों के बढ़े हुए डी डायमर को कम करने के लिए एनोक्सापरिन दिया गया. कुछ बच्चों में बुखार ठीक हो गया और सब कुछ नॉर्मल आ गया, लेकिन बच्चों का हार्ट रेट काफी कम हो गया है. यह 50 से नीचे जा रहा है तो मॉनिटरिंग पर रखना पड़ता है. डॉक्टरों का कहना है कि इम्यूनोग्लोबुलीन के महंगे इंजेक्शन सरकारी सप्लाई में होने के चलते मरीजों के उपचार में आसानी हुई. कई मरीज ऐसे जिनको दो से ढाई लाख रुपए तक के इंजेक्शन निशुल्क अस्पताल में उपलब्ध करवाए हैं, अगर ये लोग निजी अस्पताल में उपचार करवाते तो काफी महंगा उपचार इन लोगों का होता क्योंकि वहां पर इन इंजेक्शन की लागत काफी ज्यादा है.

जल्दी उपचार के लिए पहुंचे तो फायदेमंद

डॉ. सुनीता खण्डेलवाल का कहना है कि बच्चे अगर कार्डियक इंवॉल्वमेंट से पहले आ जाते हैं या उनके दूसरे भीतरी अंग किडनी या लीवर इससे नहीं जुड़े तो ठीक रहता है. चिकित्सकों का कहना है कि यह कहना मुश्किल है कि अंगों का बीमारी से इंवॉल्वमेंट कब शुरू हो जाता है. यह हर मरीज की बॉडी और इन्फेक्शन पर निर्भर करता है कि उसके शरीर में इन्फ्लेमेशन कितना होता है, लेकिन 4 से 5 दिन में अगर मरीज आ जाए तो उसे ज्यादा दिक्कत नहीं आती है. कुछ बच्चे सातवें, आठवें और नौवें दिन आए हैं. उनका पूरा भीतरी अंग बीमारी से जुड़ गया था. ऐसे में उन्हें आते ही वेंटिलेटर पर लेना पड़ा.

बच्चों पर अब MIS-C का खतरा-2

डॉक्टर बोले- पहली बार देखी इस तरह की बीमारी

जेके लोन अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. गोपीकिशन शर्मा का कहना है कि हमने पहली बार इस तरह की बीमारी देखी है. साथ ही इतनी बड़ी मात्रा में मरीजों को पहली बार इतनी डोज में इम्यूनोग्लोबुलीन और स्टेरॉयड हमने पहली बार ही दिया है. इतना रिसर्च पर भी नहीं हुआ है. बीमारी के बारे में लिटरेचर भी बहुत कम उपलब्ध है, लेकिन यह सही है कि 2 से लेकर 6 सप्ताह कोविड-19 के बाद यह बीमारी होने की संभावना रहती है.

अब कोविड-19 की जो दूसरी लहर थी, उसके पिक को 6 सप्ताह निकल चुके हैं. ऐसे में हमारी अपेक्षा है की बीमारी आगे कम होती जाएगी और आगे इसका प्रकोप नहीं रहेगा. बीमारी खत्म ही हो जाएगी. मरीज भी आना कम हो गए हैं, निजी अस्पतालों में भी मरीज लगातार आ रहे थे. कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो सामान्य ट्रीटमेंट से भी इसमें ठीक हो रहे थे, जिनको ज्यादा जांचों की आवश्यकता भी नहीं और उन्हें भर्ती होने की भी जरूरत नहीं थी. साथ ही कुछ मरीज ऐसे थे जो कि निजी अस्पतालों से रेफर होकर भी आए हैं.

जीवन के लिए खतरे वाले लक्षण...

  • बच्चों को बहुत ज्यादा तेज बुखार आना.
  • आम बोलचाल की भाषा में तवे की तरह गर्म हो जाना.
  • बच्चे का बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा होना.
  • चिड़चिड़ापन के कारण बच्चा मां की गोद में भी नहीं रहता.
  • शरीर पर लाल-लाल दाने उभर कर आ जाना.
  • कुछ बच्चों के आहार नाल, लिवर, किडनी में सूजन.
  • 25 से 30 फीसदी बच्चों में ह्रदय में सूजन.
  • बच्चों में ब्लड प्रेशर कम हो जाना.
  • बच्चों में हार्ट रेट कम या ज्यादा हो जाना.
  • शरीर की चमड़ी पूरी तरह से उतर जाना.
  • शरीर पर कई जगह कट लग जाना.
  • कुछ बच्चों में दस्त व उल्टी की शिकायत.

इस तरह बढ़ रहे हैं इन्फ्लेमेटरी मार्कर

  • बच्चों का डी डायमर जहां 1000 से कम रहता है, वह 8000 से लेकर 20 हजार तक बढ़ा मिला.
  • सीबीसी के अंदर हम देखते हैं कि न्यूट्रो फुल लिंफोसाइट तीन या चार से ज्यादा मिला.
  • सीआरपी में कुछ बच्चों में नॉर्मल 6 से 8 रेंज होती है, वह 90 या 200 से ऊपर मिला.
  • एलडीएच, पीटी-आईएनआर व प्रोकैल्सीटोनिन से भी पता लगाया है.

कोटा. कोरोना के बाद जिस तरह से बड़ी उम्र के लोगों को ब्लैक फंगस इनफेक्शन भारी पड़ रहा है, उसी तरह से छोटे बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) बीमारी सामने आई है. यह कोविड-19 से संक्रमित बच्चों में सामने आया है. सबसे बड़ी बात है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए जो एंटीबॉडी बच्चों के शरीर में बन रही है, वही एंटीबॉडी शरीर के भीतरी अंगों पर हमला करती है जिससे कि उनमें सूजन आ रही है.

पढ़ें- Special : डीजल ने किया मजबूर तो CNG पर दौड़ने लगी बसें, प्रदेश में पहली बस भी कोटा से और किट भी यहीं लगना शुरू

इस बीमारी में लीवर, किडनी और हार्ट के साथ-साथ आहार नली में भी सूजन आ गई है. जेके लोन अस्पताल में भर्ती हुए 33 बच्चों में से तीन की मौत हुई है. इन तीन मौतों के बारे में चिकित्सकों का कहना है कि मरीज गंभीर अवस्था में आए थे. एक बच्चे ने तो भर्ती होने के 12 घंटे में ही दम तोड़ दिया था. आते ही ऐसे गंभीर बच्चों को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया था. बच्चे RT-PCR पॉजिटिव तो नहीं है, लेकिन ज्यादातर बच्चों में एंटीबॉडी पॉजिटिव आ रही है.

बच्चों पर अब MIS-C का खतरा-1

फ्री में लगे लाखों रुपए के इंजेक्शन

जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनीता खंडेलवाल ने बताया कि बच्चों के आते ही इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन के साथ स्टेरॉयड दिया जाता है. साथ ही सबसे बड़ी बात है कि बच्चों का खून पतला करने के लिए दवाई हिपेरिन दी जाती है. चिकित्सकों का कहना है कि इससे पहले बच्चों में इतनी ज्यादा मात्रा में इस दवा का उपयोग नहीं किया गया है.

बच्चों के बढ़े हुए डी डायमर को कम करने के लिए एनोक्सापरिन दिया गया. कुछ बच्चों में बुखार ठीक हो गया और सब कुछ नॉर्मल आ गया, लेकिन बच्चों का हार्ट रेट काफी कम हो गया है. यह 50 से नीचे जा रहा है तो मॉनिटरिंग पर रखना पड़ता है. डॉक्टरों का कहना है कि इम्यूनोग्लोबुलीन के महंगे इंजेक्शन सरकारी सप्लाई में होने के चलते मरीजों के उपचार में आसानी हुई. कई मरीज ऐसे जिनको दो से ढाई लाख रुपए तक के इंजेक्शन निशुल्क अस्पताल में उपलब्ध करवाए हैं, अगर ये लोग निजी अस्पताल में उपचार करवाते तो काफी महंगा उपचार इन लोगों का होता क्योंकि वहां पर इन इंजेक्शन की लागत काफी ज्यादा है.

जल्दी उपचार के लिए पहुंचे तो फायदेमंद

डॉ. सुनीता खण्डेलवाल का कहना है कि बच्चे अगर कार्डियक इंवॉल्वमेंट से पहले आ जाते हैं या उनके दूसरे भीतरी अंग किडनी या लीवर इससे नहीं जुड़े तो ठीक रहता है. चिकित्सकों का कहना है कि यह कहना मुश्किल है कि अंगों का बीमारी से इंवॉल्वमेंट कब शुरू हो जाता है. यह हर मरीज की बॉडी और इन्फेक्शन पर निर्भर करता है कि उसके शरीर में इन्फ्लेमेशन कितना होता है, लेकिन 4 से 5 दिन में अगर मरीज आ जाए तो उसे ज्यादा दिक्कत नहीं आती है. कुछ बच्चे सातवें, आठवें और नौवें दिन आए हैं. उनका पूरा भीतरी अंग बीमारी से जुड़ गया था. ऐसे में उन्हें आते ही वेंटिलेटर पर लेना पड़ा.

बच्चों पर अब MIS-C का खतरा-2

डॉक्टर बोले- पहली बार देखी इस तरह की बीमारी

जेके लोन अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. गोपीकिशन शर्मा का कहना है कि हमने पहली बार इस तरह की बीमारी देखी है. साथ ही इतनी बड़ी मात्रा में मरीजों को पहली बार इतनी डोज में इम्यूनोग्लोबुलीन और स्टेरॉयड हमने पहली बार ही दिया है. इतना रिसर्च पर भी नहीं हुआ है. बीमारी के बारे में लिटरेचर भी बहुत कम उपलब्ध है, लेकिन यह सही है कि 2 से लेकर 6 सप्ताह कोविड-19 के बाद यह बीमारी होने की संभावना रहती है.

अब कोविड-19 की जो दूसरी लहर थी, उसके पिक को 6 सप्ताह निकल चुके हैं. ऐसे में हमारी अपेक्षा है की बीमारी आगे कम होती जाएगी और आगे इसका प्रकोप नहीं रहेगा. बीमारी खत्म ही हो जाएगी. मरीज भी आना कम हो गए हैं, निजी अस्पतालों में भी मरीज लगातार आ रहे थे. कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो सामान्य ट्रीटमेंट से भी इसमें ठीक हो रहे थे, जिनको ज्यादा जांचों की आवश्यकता भी नहीं और उन्हें भर्ती होने की भी जरूरत नहीं थी. साथ ही कुछ मरीज ऐसे थे जो कि निजी अस्पतालों से रेफर होकर भी आए हैं.

जीवन के लिए खतरे वाले लक्षण...

  • बच्चों को बहुत ज्यादा तेज बुखार आना.
  • आम बोलचाल की भाषा में तवे की तरह गर्म हो जाना.
  • बच्चे का बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा होना.
  • चिड़चिड़ापन के कारण बच्चा मां की गोद में भी नहीं रहता.
  • शरीर पर लाल-लाल दाने उभर कर आ जाना.
  • कुछ बच्चों के आहार नाल, लिवर, किडनी में सूजन.
  • 25 से 30 फीसदी बच्चों में ह्रदय में सूजन.
  • बच्चों में ब्लड प्रेशर कम हो जाना.
  • बच्चों में हार्ट रेट कम या ज्यादा हो जाना.
  • शरीर की चमड़ी पूरी तरह से उतर जाना.
  • शरीर पर कई जगह कट लग जाना.
  • कुछ बच्चों में दस्त व उल्टी की शिकायत.

इस तरह बढ़ रहे हैं इन्फ्लेमेटरी मार्कर

  • बच्चों का डी डायमर जहां 1000 से कम रहता है, वह 8000 से लेकर 20 हजार तक बढ़ा मिला.
  • सीबीसी के अंदर हम देखते हैं कि न्यूट्रो फुल लिंफोसाइट तीन या चार से ज्यादा मिला.
  • सीआरपी में कुछ बच्चों में नॉर्मल 6 से 8 रेंज होती है, वह 90 या 200 से ऊपर मिला.
  • एलडीएच, पीटी-आईएनआर व प्रोकैल्सीटोनिन से भी पता लगाया है.
Last Updated : Jul 2, 2021, 11:13 PM IST
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