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कोटा: किसान महापंचायत की संभाग स्तर पर भामाशाह मंडी में हुई बैठक

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Published : Sep 10, 2020, 4:03 PM IST

राजस्थान के कोटा शहर में गुरुवार को केंद्र सरकार के खिलाफ किसान महापंचायत ने एक बैठक ली. इस बैठक में महापंचायत ने किसानों की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए बड़े आंदोलन की हुंकार भरी है.

कोटा समाचार, kota news
संभाग स्तर पर भामाशाह मंडी में हुई बैठक

कोटा. किसान महापंचायत ने केंद्र सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन की हुंकार भरी है. महापंचायत समान संघर्ष कार्यक्रम को लेकर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने गुरुवार को भामाशाह मंडी में कोटा संभाग के किसान प्रतिनिधियों की बैठक ली.

संभाग स्तर पर भामाशाह मंडी में हुई बैठक

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि इस बैठक में निर्णय लिया गया कि 20 सितंबर तक संभागीय आयुक्त, कलेक्टर और तहसील स्तर पर ज्ञापन सौंपे जाएंगे. वहीं, 21 सितंबर को प्रदेश के 247 मंडियों को बंद रखने का आह्वान किया गया.

जाट के मुताबिक इस दौरान जो भी किसान गांव से बाहर निकलेगा, वह लोग केंद्र सरकार के विरोध में अपने वाहनों पर काला झंडा लगाकर निकलेंगे. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए जाट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक राष्ट्र एक बाजार के तहत अध्यादेश लाई गई है, जो किसान विरोधी है. केंद्र सरकार उस अध्यादेश को वापस लें और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाए. साथ ही फसल खराबें पर किसानों को खराबे का मुआवजा दें, इसका भी केंद्र सरकार गारंटी कानून बनाए.

पढ़ें- Special: बदहाल हैं कोटा के पार्क, कहीं बने गायों के तबेले तो कहीं पार्किंग और पक्का निर्माण

उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक बाजार के अंतर्गत सरकार जिस अध्यादेश को लेकर आई है, वह पूंजीपतियों के हित का है. ऐसे अध्यादेश से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. ऐसे में केंद्र सरकार से संघर्ष करने के लिए किसान महापंचायत राजस्थान के बैनर तले करीब 50 किसान संगठनों एकजुट हुए है.

उन्होंने कहा कि सरकार से संघर्ष करने के लिए किसान संगठनों का एक मंच गठित किया गया है. इसी के तहत किसान संगठन राजस्थान का 'समान संघर्ष कार्यक्रम' निर्धारित किया गया है, जो केंद्र सरकार से लंबी लड़ाई किसान हितों में लड़ेगा.

रामपाल जाट ने कहा कि भारत सरकार ने किसानों की सुनिश्चित आय और मूल्य का अधिकार विधेयक-2012 के प्रारूप के आधार पर एक निजी विधेयक को लोकसभा में 8 अगस्त 2014 को सर्वसम्मति के साथ विचारार्थ स्वीकार किया. लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इसे पारित करने में सार्थक पहल नहीं की. इसके बदले में सरकार बड़े पूंजीपतियों को कृषि उपजों के व्यापार का एकाधिकार सौंपने, किसानों को उनकी भूमि पर ही मजदूर बनाने संबंधी अध्यादेश लेकर आए हैं, जिससे संपूर्ण देश में किसानों में आक्रोश व्याप्त है.

कोटा. किसान महापंचायत ने केंद्र सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन की हुंकार भरी है. महापंचायत समान संघर्ष कार्यक्रम को लेकर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने गुरुवार को भामाशाह मंडी में कोटा संभाग के किसान प्रतिनिधियों की बैठक ली.

संभाग स्तर पर भामाशाह मंडी में हुई बैठक

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि इस बैठक में निर्णय लिया गया कि 20 सितंबर तक संभागीय आयुक्त, कलेक्टर और तहसील स्तर पर ज्ञापन सौंपे जाएंगे. वहीं, 21 सितंबर को प्रदेश के 247 मंडियों को बंद रखने का आह्वान किया गया.

जाट के मुताबिक इस दौरान जो भी किसान गांव से बाहर निकलेगा, वह लोग केंद्र सरकार के विरोध में अपने वाहनों पर काला झंडा लगाकर निकलेंगे. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए जाट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक राष्ट्र एक बाजार के तहत अध्यादेश लाई गई है, जो किसान विरोधी है. केंद्र सरकार उस अध्यादेश को वापस लें और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाए. साथ ही फसल खराबें पर किसानों को खराबे का मुआवजा दें, इसका भी केंद्र सरकार गारंटी कानून बनाए.

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उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक बाजार के अंतर्गत सरकार जिस अध्यादेश को लेकर आई है, वह पूंजीपतियों के हित का है. ऐसे अध्यादेश से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. ऐसे में केंद्र सरकार से संघर्ष करने के लिए किसान महापंचायत राजस्थान के बैनर तले करीब 50 किसान संगठनों एकजुट हुए है.

उन्होंने कहा कि सरकार से संघर्ष करने के लिए किसान संगठनों का एक मंच गठित किया गया है. इसी के तहत किसान संगठन राजस्थान का 'समान संघर्ष कार्यक्रम' निर्धारित किया गया है, जो केंद्र सरकार से लंबी लड़ाई किसान हितों में लड़ेगा.

रामपाल जाट ने कहा कि भारत सरकार ने किसानों की सुनिश्चित आय और मूल्य का अधिकार विधेयक-2012 के प्रारूप के आधार पर एक निजी विधेयक को लोकसभा में 8 अगस्त 2014 को सर्वसम्मति के साथ विचारार्थ स्वीकार किया. लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इसे पारित करने में सार्थक पहल नहीं की. इसके बदले में सरकार बड़े पूंजीपतियों को कृषि उपजों के व्यापार का एकाधिकार सौंपने, किसानों को उनकी भूमि पर ही मजदूर बनाने संबंधी अध्यादेश लेकर आए हैं, जिससे संपूर्ण देश में किसानों में आक्रोश व्याप्त है.

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