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कोरोना के न्यू स्ट्रेन में चार दिनों में ही खराब हो रहे फेफड़े- डॉ. मनोज सलूजा - आरटी-पीसीआर टेस्ट

कोटा मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा ने ईटीवी भारत को कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में बताया कि केवल चार दिनों में ही मरीज के फेफड़े खराब हो रहे हैं. इसकी चपेट में ज्यादातर युवा आ रहे हैं. आरटी-पीसीआर टेस्ट वायरस को पकड़ नहीं पा रहा है. ऐसे में अधिकांश मरीजों को सीटी स्कैन करवाना पड़ रहा है.

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कोरोना के न्यू स्ट्रेन में चार दिनों में ही खराब हो रहे फेफड़े
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Published : Apr 21, 2021, 7:34 PM IST

कोटा. कोरोना की दूसरी लहर काफी घातक हो रही है. हर दिन प्रदेश में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित मिल रहे हैं. इसके अलावा सैकड़ों लोगों की मौत भी हो रही है. कोटा मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा ने ईटीवी भारत से कोरोना की दूसरी लहर पर बात करते हुए कहा कि यह नया स्ट्रेन है. इसमें केवल चार दिनों में ही मरीज के फेफड़े खराब हो रहे हैं. यहां तक कि युवा इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं. कोविड-19 के लिए निश्चित किए गए आरटी-पीसीआर टेस्ट में भी वायरस पकड़ में नहीं आ रहा है. ऐसे में अधिकांश मरीजों में उनकी हालात को देखते हुए सीटी स्कैन करवाना चिकित्सकों को पड़ रहा है. साथ ही कोविड-19 पॉजिटिव आ जाने के बाद भी बीमारी की गंभीरता के लिए छाती का सीटी स्कैन करवाया जा रहा है, जिसमें बीते एक-दो दिनों में ही संक्रमण काफी ज्यादा बढ़ा हुआ नजर आ रहा है.

वीडियो पार्ट-1

न्यू स्ट्रेन के लिए सीटी स्कैन जरूरी

कोविड-19 मरीजों के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिए ही पॉजिटिव और नेगेटिव तय होता है. अभी कई मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनमें आरटी-पीसीआर नेगेटिव होने के बाद भी फेफड़े में संक्रमण ज्यादा होता है और मौतें भी ऐसे लोगों की हो रही है. डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि पहले भी मैंने यह आशंका व्यक्त की थी. साथ ही कई मेडिकल के जनरल्स में भी यह प्रकाशित हुआ है. नया स्ट्रेन वायरस की बदली है, जिससे आरटी-पीसीआर टेस्ट का डिटेक्शन है, वह वायरस को छोड़ रहा है. आरटी-पीसीआर टेस्ट जिन प्रोटीन को डिटेक्ट करके कोविड-19 पॉजिटिव बताता है. अगर उन्हीं में कुछ म्यूटेशन हो गया है, तो वह आरटी-पीसीआर में नहीं आएगा. ऐसे में चिकित्सकों को विजिलेंट रहते हुए मरीज की हालात को देखते हुए एचआरसीटी स्कैन भी कराना चाहिए.

सांस में तकलीफ हो तो चिकित्सक की जरूर ले सलाह

छाती का सीटी स्कैन जिसे एचआरसीटी कहा जाता है. कोरोना वायरस के समय फेफड़े संक्रमित कितने हो गए हैं, इसकी जांच के लिए यह काफी उपयोगी साबित हो रही है, लेकिन यह जांच भी मरीजों को तभी करवानी चाहिए, जब ऑक्सीजन का स्तर उनका गिर रहा हो. अगर बुखार और सांस लेने में तकलीफ है तो ऑक्सीजन सैचुरेशन पर पूरी तरह से मॉनिटरिंग रखनी चाहिए. ऑक्सीजन सैचुरेशन 92 प्रतिशत से कम हो या फिर सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही हो तब ही चिकित्सक को दिखाना चाहिए.

गंभीर बीमारी लेकर अस्पताल पहुंच रहा है मरीज

डॉ. सलूजा ने कहा कि फेफड़ों में इन्फेक्शन 3 से 4 दिनों में काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जो शुरुआत के दिनों में एचआरसीटी का स्कोर 5 के आसपास रहता है, वह 4 दिनों में ही 17 से 18 पहुंच जाता है. ऐसे बहुत ज्यादा मरीज हमारे पास पहुंच रहे हैं, जो काफी एडवांस स्टेज पर बीमारी को लेकर पहुंच रहे हैं. उन पर बहुत ज्यादा दवाइयां इफेक्टिव साबित नहीं हो रही है. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट ज्यादा हेल्पफुल हो रहा है.

वीडियो पार्ट-2

शुरुआत में काफी कारगर है रेमडेसिविर

डॉ. सलूजा ने मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भर्ती मरीजों के उपचार के अनुभव के आधार पर कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन से हमारा अनुभव अच्छा रहा है, लेकिन इसके लिए मरीज को उपचार समय से मिलना चाहिए. यह इंजेक्शन एंटीवायरल ड्रग है, जोकि वायरस के रिप्लिकेशन को रोकती है. वायरस शुरुआती 7 से 9 दिन की अवधि में तेजी से शरीर में बढ़ रहा होता है. इस अवस्था में इंजेक्शन लग गए और रिप्लिकेशन रुक गया, तो ऐसे व्यक्ति में बीमारी का प्रसार नहीं होगा. अगर देरी से रेमडेसिविर इंजेक्शन 9 से 10 दिन की अवधि निकल गई और बाद में लगाए जाते हैं, तो उनका असर नहीं हो पाता है.

प्रति मरीज ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ी

मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि इस बार ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ी है. इसके अलावा एक सिंगल मरीज को भी ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत इस बार पड़ रही है, जबकि पहली लहर के दौरान उन्हें इतनी जरूरत नहीं हो रही थी. इस बार ज्यादातर मरीज हाई-फ्लो ऑक्सीजन पर है, लेकिन पिछली बार लो-फ्लो ऑक्सीजन पर भी उनका सिचुएशन मेंटेन किया था. हाई-फ्लो की जरूरत काफी ज्यादा मरीजों को है.

इस बार जान का खतरा ज्यादा है

डॉ. मनोज सलूजा ने कहा कि किसी प्रतिबंध की जरूरत नहीं है. हर व्यक्ति को समझना होगा कि इस बार जान को खतरा ज्यादा है. खुद और अपने परिवार की जान की रक्षा के लिए हर व्यक्ति को घर के अंदर रहना पड़ेगा. बहुत ज्यादा जरूरी है, तभी घर से बाहर निकले. उस समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालना करें क्योंकि एक तरह बाहर इनफेक्ट होने के बाद बीमारी कितनी तेजी से आपके शरीर में फैले रही है. बॉडी की इम्यून सिस्टम और बीमारी की घातकता के बीच का संघर्ष है.

यह भी पढ़ें- शादी में 50 से ज्यादा मेहमान तो 25 हजार जुर्माना, कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर 5 हजार जुर्माना

वैक्सीन का असर

डॉ मनोज सलूजा का साफ कहना है कि इस बार फ्रंटलाइन वर्कर, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, नर्सिंग कर्मी और पुलिसकर्मी भी कम संक्रमित हो रहे हैं. सभी के वैक्सीन लग जाना ही इसका बड़ा कारण है. बहुत बड़े स्तर पर फ्रंटलाइन वर्कर के लिए वैक्सीनेशन अभियान किया है. इसके चलते ही संक्रमण की दर इनमें कम है. साथ ही जो लोग संक्रमित भी हुए हैं, वे अस्पताल में भर्ती कम हुए हैं क्योंकि वैक्सीन की वजह से उन्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ी है. वैक्सीन ने इन लोगों के इम्यून सिस्टम को मजबूत किया है.

न्यू स्ट्रेन की तीन नई बातें

कम उम्र- डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि कोरोना के सेकंड फेज में जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं, उनमें एक तो कम उम्र के मरीज सामने आ रहे हैं, जो कि 30 से 40 वर्ष के हैं.

जल्द फैल रही बीमारी- भर्ती होते समय ही गंभीर स्थिति में युवा मरीज आ रहे हैं. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की जरूरत भी ज्यादा हो रही है. इसमें भी गंभीर बात यह है कि मरीजों के लक्षण नजर आने के तीन से चार दिनों में ही ऑक्सीजन पर भी आ गए हैं. अधिकांश मरीजों के आज लक्षण शुरू हुए, कुछ इलाज उन्होंने लिया और लगातार उनके फेफड़े में बीमारी फैली. वहीं तीन से चार दिनों में ऑक्सीजन व वेंटिलेटर पर आ गए हैं.

ग्रामीण इलाके में असर- ग्रामीण इलाकों से भी मरीज आने शुरू हो गए हैं. पहले फेज में ग्रामीण इलाके से मरीज नहीं के बराबर सामने आ रहे थे. अधिकांश मरीज शहर से ही थे. अब ग्रामीण और छोटे कस्बों के मरीज भी 30 फीसदी तक सामने आ रहे हैं.

कोटा. कोरोना की दूसरी लहर काफी घातक हो रही है. हर दिन प्रदेश में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित मिल रहे हैं. इसके अलावा सैकड़ों लोगों की मौत भी हो रही है. कोटा मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा ने ईटीवी भारत से कोरोना की दूसरी लहर पर बात करते हुए कहा कि यह नया स्ट्रेन है. इसमें केवल चार दिनों में ही मरीज के फेफड़े खराब हो रहे हैं. यहां तक कि युवा इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं. कोविड-19 के लिए निश्चित किए गए आरटी-पीसीआर टेस्ट में भी वायरस पकड़ में नहीं आ रहा है. ऐसे में अधिकांश मरीजों में उनकी हालात को देखते हुए सीटी स्कैन करवाना चिकित्सकों को पड़ रहा है. साथ ही कोविड-19 पॉजिटिव आ जाने के बाद भी बीमारी की गंभीरता के लिए छाती का सीटी स्कैन करवाया जा रहा है, जिसमें बीते एक-दो दिनों में ही संक्रमण काफी ज्यादा बढ़ा हुआ नजर आ रहा है.

वीडियो पार्ट-1

न्यू स्ट्रेन के लिए सीटी स्कैन जरूरी

कोविड-19 मरीजों के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिए ही पॉजिटिव और नेगेटिव तय होता है. अभी कई मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनमें आरटी-पीसीआर नेगेटिव होने के बाद भी फेफड़े में संक्रमण ज्यादा होता है और मौतें भी ऐसे लोगों की हो रही है. डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि पहले भी मैंने यह आशंका व्यक्त की थी. साथ ही कई मेडिकल के जनरल्स में भी यह प्रकाशित हुआ है. नया स्ट्रेन वायरस की बदली है, जिससे आरटी-पीसीआर टेस्ट का डिटेक्शन है, वह वायरस को छोड़ रहा है. आरटी-पीसीआर टेस्ट जिन प्रोटीन को डिटेक्ट करके कोविड-19 पॉजिटिव बताता है. अगर उन्हीं में कुछ म्यूटेशन हो गया है, तो वह आरटी-पीसीआर में नहीं आएगा. ऐसे में चिकित्सकों को विजिलेंट रहते हुए मरीज की हालात को देखते हुए एचआरसीटी स्कैन भी कराना चाहिए.

सांस में तकलीफ हो तो चिकित्सक की जरूर ले सलाह

छाती का सीटी स्कैन जिसे एचआरसीटी कहा जाता है. कोरोना वायरस के समय फेफड़े संक्रमित कितने हो गए हैं, इसकी जांच के लिए यह काफी उपयोगी साबित हो रही है, लेकिन यह जांच भी मरीजों को तभी करवानी चाहिए, जब ऑक्सीजन का स्तर उनका गिर रहा हो. अगर बुखार और सांस लेने में तकलीफ है तो ऑक्सीजन सैचुरेशन पर पूरी तरह से मॉनिटरिंग रखनी चाहिए. ऑक्सीजन सैचुरेशन 92 प्रतिशत से कम हो या फिर सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही हो तब ही चिकित्सक को दिखाना चाहिए.

गंभीर बीमारी लेकर अस्पताल पहुंच रहा है मरीज

डॉ. सलूजा ने कहा कि फेफड़ों में इन्फेक्शन 3 से 4 दिनों में काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जो शुरुआत के दिनों में एचआरसीटी का स्कोर 5 के आसपास रहता है, वह 4 दिनों में ही 17 से 18 पहुंच जाता है. ऐसे बहुत ज्यादा मरीज हमारे पास पहुंच रहे हैं, जो काफी एडवांस स्टेज पर बीमारी को लेकर पहुंच रहे हैं. उन पर बहुत ज्यादा दवाइयां इफेक्टिव साबित नहीं हो रही है. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट ज्यादा हेल्पफुल हो रहा है.

वीडियो पार्ट-2

शुरुआत में काफी कारगर है रेमडेसिविर

डॉ. सलूजा ने मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भर्ती मरीजों के उपचार के अनुभव के आधार पर कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन से हमारा अनुभव अच्छा रहा है, लेकिन इसके लिए मरीज को उपचार समय से मिलना चाहिए. यह इंजेक्शन एंटीवायरल ड्रग है, जोकि वायरस के रिप्लिकेशन को रोकती है. वायरस शुरुआती 7 से 9 दिन की अवधि में तेजी से शरीर में बढ़ रहा होता है. इस अवस्था में इंजेक्शन लग गए और रिप्लिकेशन रुक गया, तो ऐसे व्यक्ति में बीमारी का प्रसार नहीं होगा. अगर देरी से रेमडेसिविर इंजेक्शन 9 से 10 दिन की अवधि निकल गई और बाद में लगाए जाते हैं, तो उनका असर नहीं हो पाता है.

प्रति मरीज ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ी

मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि इस बार ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ी है. इसके अलावा एक सिंगल मरीज को भी ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत इस बार पड़ रही है, जबकि पहली लहर के दौरान उन्हें इतनी जरूरत नहीं हो रही थी. इस बार ज्यादातर मरीज हाई-फ्लो ऑक्सीजन पर है, लेकिन पिछली बार लो-फ्लो ऑक्सीजन पर भी उनका सिचुएशन मेंटेन किया था. हाई-फ्लो की जरूरत काफी ज्यादा मरीजों को है.

इस बार जान का खतरा ज्यादा है

डॉ. मनोज सलूजा ने कहा कि किसी प्रतिबंध की जरूरत नहीं है. हर व्यक्ति को समझना होगा कि इस बार जान को खतरा ज्यादा है. खुद और अपने परिवार की जान की रक्षा के लिए हर व्यक्ति को घर के अंदर रहना पड़ेगा. बहुत ज्यादा जरूरी है, तभी घर से बाहर निकले. उस समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालना करें क्योंकि एक तरह बाहर इनफेक्ट होने के बाद बीमारी कितनी तेजी से आपके शरीर में फैले रही है. बॉडी की इम्यून सिस्टम और बीमारी की घातकता के बीच का संघर्ष है.

यह भी पढ़ें- शादी में 50 से ज्यादा मेहमान तो 25 हजार जुर्माना, कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर 5 हजार जुर्माना

वैक्सीन का असर

डॉ मनोज सलूजा का साफ कहना है कि इस बार फ्रंटलाइन वर्कर, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, नर्सिंग कर्मी और पुलिसकर्मी भी कम संक्रमित हो रहे हैं. सभी के वैक्सीन लग जाना ही इसका बड़ा कारण है. बहुत बड़े स्तर पर फ्रंटलाइन वर्कर के लिए वैक्सीनेशन अभियान किया है. इसके चलते ही संक्रमण की दर इनमें कम है. साथ ही जो लोग संक्रमित भी हुए हैं, वे अस्पताल में भर्ती कम हुए हैं क्योंकि वैक्सीन की वजह से उन्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ी है. वैक्सीन ने इन लोगों के इम्यून सिस्टम को मजबूत किया है.

न्यू स्ट्रेन की तीन नई बातें

कम उम्र- डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि कोरोना के सेकंड फेज में जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं, उनमें एक तो कम उम्र के मरीज सामने आ रहे हैं, जो कि 30 से 40 वर्ष के हैं.

जल्द फैल रही बीमारी- भर्ती होते समय ही गंभीर स्थिति में युवा मरीज आ रहे हैं. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की जरूरत भी ज्यादा हो रही है. इसमें भी गंभीर बात यह है कि मरीजों के लक्षण नजर आने के तीन से चार दिनों में ही ऑक्सीजन पर भी आ गए हैं. अधिकांश मरीजों के आज लक्षण शुरू हुए, कुछ इलाज उन्होंने लिया और लगातार उनके फेफड़े में बीमारी फैली. वहीं तीन से चार दिनों में ऑक्सीजन व वेंटिलेटर पर आ गए हैं.

ग्रामीण इलाके में असर- ग्रामीण इलाकों से भी मरीज आने शुरू हो गए हैं. पहले फेज में ग्रामीण इलाके से मरीज नहीं के बराबर सामने आ रहे थे. अधिकांश मरीज शहर से ही थे. अब ग्रामीण और छोटे कस्बों के मरीज भी 30 फीसदी तक सामने आ रहे हैं.

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