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बेसहारा हुई मैना...जन्म के 1 साल बाद मां चल बसी, अब कोरोना ने छीना पिता का साया

कोरोना ने कई परिवारों की खुशियां छीन ली हैं. कोटा के एक परिवार में अब केवल एक बालिका ही बची है. माता-पिता की मौत के बाद फिलहाल मजदूरी करने वाले चाचा उसकी देखभाल कर रहे हैं. ऐसे में कई स्वयंसेवी संस्थाएं उसकी मदद के लिए आगे आई हैं.

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पिता की कोरोना से मौत के बाद बेसहारा हुई बालिका मैना
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Published : May 27, 2021, 8:01 AM IST

कोटा. महामारी ने हजारों लोगों के घर तबाह कर दिए हैं. न जाने कितने परिवारों ने अपनों को खो दिया. किसी ने अपना घर का चिराग खो दिया तो किसी ने माता-पिता. कुछ परिवार ऐसे भी रहे जिसमें घर का सिर्फ एक ही सदस्य बचा रह गया. जिले में भी एक ऐसा ही परिवार सामने आया है जिसमें अब 16 वर्षीय एक बालिका ही बची है. क्योंकि उसकी मां का देहांत जन्म के 1 साल बाद ही हो गया था. और अब कोरोना से उसकी दिव्यांग पिता की भी मृत्यु हो गई.

पिता की कोरोना से मौत के बाद बेसहारा हुई बालिका मैना

बालिका मैना कुमारी बॉम्बे योजना सुभाष नगर में अपने दिव्यांग पिता चंद्रमोहन बैरवा के साथ ही रहती थीं. उसके पिता को कोरोना हो गया था और मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 15 साल से उसके विकलांग पिता ही उसका सहारा थे लेकिन कोविड-19 महामारी ने उससे उन्हें भी छीन लिया. 24 मई को उनका देहांत हो गया जिसके बाद अब इस परिवार में अकेली बालिका ही बची है. बालिका की मदद के लिए आसपास के लोगों ने भी अपील की है ताकि वह आगे अपना भरण-पोषण ठीक से कर सके और पढ़ाई भी जारी रख सके.

पढ़ें: कोटा यूनिवर्सिटी में संचालित आदर्श कोविड केयर सेंटर की सेवाएं स्थगित, अंतिम दिन डिस्चार्ज मरीजों को तालियां बजाकर विदाई

डॉक्टर बनाने का सपना दिखाने वाले पिता नहीं रहे साथ

बालिका मैना का कहना है कि जब वह 1 वर्ष की थी तो उसकी मां का निधन हो गया. उसके बाद पिता चन्द्र मोहन ने अपाहिज होते हुए भी माता-पिता दोनों का प्यार देकर 15 साल तक उसकी देखभाल की, लेकिन भगवान ने उन्हें भी छीन लिया. किराए के मकान में रहकर मजदूरी कर घर चलाने वाले चन्द्र मोहन का सपना था कि मैना बड़ी होकर डॉक्टर बने और नाम कमाए. अभी वह कक्षा 9वीं में पढ़ रही है. हालांकि इस अनहोनी के बाद बाद मैना अकेली रह गई. फिलहाल पास में ही मजदूरी करके अपनी जीविका चलाने वाले उसके चाचा उसकी देखभाल कर रहें हैं.

पढ़ें: कोरोना का कहरः घर-घर काम करने वाली महिलाओं का काम-धंधा हुआ चौपट, खाने की समस्या हुई पैदा

मदद के लिए आगे आ रहीं संस्थाएं

मां-पिता के गुजर जाने के बाद अनाथ हुई बालिका मीना कुमारी के लिए अब सामाजिक संस्थाएं आगे आ रही हैं. सबसे पहले ह्युमन हेल्पलाइन के संयोजक मनोज जैन आदिनाथ को इस संबंध में जानकारी मिली. वे लोकेश जैन और योगेश जैन सिंघम के साथ बालिका के घर पर पहुंचे. उन्होंने मैना को आर्थिक सहायता, राशन किट, मास्क, सेनिटाइजर उपलब्ध कराया. विकलांग मित्र एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश जैन ने सरकार से बालिका की हर संभव मदद की अपील की.

सामाजिक सुरक्षा दिलाने की मांग भी उठाई

मनोज जैन आदिनाथ में ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक ओम तोषनीवाल व सामाजिक सुरक्षा अधिकारी अर्पित जैन से बात कर पूरा मामले की जानकारी दी. जिसपर दोनों विभागीय अधिकारियों ने कहा कि वह त्वरित कार्रवाई कर बेटी मैना के भरण पोषण व शिक्षा के लिए समस्त सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का भरपूर प्रयास कर हर संभव मदद करेंगे.

कोटा. महामारी ने हजारों लोगों के घर तबाह कर दिए हैं. न जाने कितने परिवारों ने अपनों को खो दिया. किसी ने अपना घर का चिराग खो दिया तो किसी ने माता-पिता. कुछ परिवार ऐसे भी रहे जिसमें घर का सिर्फ एक ही सदस्य बचा रह गया. जिले में भी एक ऐसा ही परिवार सामने आया है जिसमें अब 16 वर्षीय एक बालिका ही बची है. क्योंकि उसकी मां का देहांत जन्म के 1 साल बाद ही हो गया था. और अब कोरोना से उसकी दिव्यांग पिता की भी मृत्यु हो गई.

पिता की कोरोना से मौत के बाद बेसहारा हुई बालिका मैना

बालिका मैना कुमारी बॉम्बे योजना सुभाष नगर में अपने दिव्यांग पिता चंद्रमोहन बैरवा के साथ ही रहती थीं. उसके पिता को कोरोना हो गया था और मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 15 साल से उसके विकलांग पिता ही उसका सहारा थे लेकिन कोविड-19 महामारी ने उससे उन्हें भी छीन लिया. 24 मई को उनका देहांत हो गया जिसके बाद अब इस परिवार में अकेली बालिका ही बची है. बालिका की मदद के लिए आसपास के लोगों ने भी अपील की है ताकि वह आगे अपना भरण-पोषण ठीक से कर सके और पढ़ाई भी जारी रख सके.

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डॉक्टर बनाने का सपना दिखाने वाले पिता नहीं रहे साथ

बालिका मैना का कहना है कि जब वह 1 वर्ष की थी तो उसकी मां का निधन हो गया. उसके बाद पिता चन्द्र मोहन ने अपाहिज होते हुए भी माता-पिता दोनों का प्यार देकर 15 साल तक उसकी देखभाल की, लेकिन भगवान ने उन्हें भी छीन लिया. किराए के मकान में रहकर मजदूरी कर घर चलाने वाले चन्द्र मोहन का सपना था कि मैना बड़ी होकर डॉक्टर बने और नाम कमाए. अभी वह कक्षा 9वीं में पढ़ रही है. हालांकि इस अनहोनी के बाद बाद मैना अकेली रह गई. फिलहाल पास में ही मजदूरी करके अपनी जीविका चलाने वाले उसके चाचा उसकी देखभाल कर रहें हैं.

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मदद के लिए आगे आ रहीं संस्थाएं

मां-पिता के गुजर जाने के बाद अनाथ हुई बालिका मीना कुमारी के लिए अब सामाजिक संस्थाएं आगे आ रही हैं. सबसे पहले ह्युमन हेल्पलाइन के संयोजक मनोज जैन आदिनाथ को इस संबंध में जानकारी मिली. वे लोकेश जैन और योगेश जैन सिंघम के साथ बालिका के घर पर पहुंचे. उन्होंने मैना को आर्थिक सहायता, राशन किट, मास्क, सेनिटाइजर उपलब्ध कराया. विकलांग मित्र एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश जैन ने सरकार से बालिका की हर संभव मदद की अपील की.

सामाजिक सुरक्षा दिलाने की मांग भी उठाई

मनोज जैन आदिनाथ में ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उपनिदेशक ओम तोषनीवाल व सामाजिक सुरक्षा अधिकारी अर्पित जैन से बात कर पूरा मामले की जानकारी दी. जिसपर दोनों विभागीय अधिकारियों ने कहा कि वह त्वरित कार्रवाई कर बेटी मैना के भरण पोषण व शिक्षा के लिए समस्त सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का भरपूर प्रयास कर हर संभव मदद करेंगे.

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