कोटा. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन में सभी उद्योग धंधे चौपट हो गए हैं. इसके चलते फैक्ट्रियों से लेकर सभी जगह उत्पादन बंद है. लॉकडाउन के कारण बिजली की खपत भी कम हो गई है, जिसके कारण कोटा थर्मल में भी बिजली का उत्पादन कम हो गया है. कोटा थर्मल में कई बिजली उत्पादन की कई यूनिटें बंद पड़ी हुई है. वहीं, कोटा सुपर थर्मल पावर स्टेशन की राख से जिले में ब्रिक्स इंडस्ट्री को संजीवनी मिली हुई है, लेकिन कोटा थर्मल में उत्पादन बंद होने के कारण रीको पर्यावरण एरिया की ब्रिक्स फैक्ट्रियों को राख नहीं मिल रहा है.
रीको पर्यावरण एरिया की ब्रिक्स फैक्ट्रियों को राख नहीं मिलने के कारण वहां पर उत्पादन ठप हो गया है. इस एरिया में 40 से 50 फैक्ट्रियां स्थापित है, जबकि अभी आधी की फैक्ट्रियों पर कामकाज हो रहा है. राख मिलने से ब्रिक्स इंडस्ट्री पर खतरा मंडरा गया है और यहां काम करने वाले मजदूरों पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
प्रतिदिन 3 टैंकर राख की है मांग
इस एरिया में ब्रिक्स बनाने के करीब 75 मशीनें फैक्ट्रियों में लगी हुई हैं. फैक्ट्रियों को रोज पूरी क्षमता से उत्पादन करने के लिए 15 टन यानी की 150 टैंकर राख चाहिए. लॉकडाउन के दौरान कोटा थर्मल में भी अधिकांश समय उत्पादन बंद ही रहा था, ऐसे में ब्रिक्स इंडस्ट्रीज को राख उपलब्ध नहीं कराई गई. एक इंडस्ट्री को जहां पर 2 से 3 टैंकर रोज राख की मांग होती है, उसकी जगह लॉकडाउन के 60 दिनों के बीच में महज 5 से 7 टैंकर ही राख दी गई है.
खत्म हो रहा स्टॉक
रीको पर्यावरण एरिया में कई ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जहां राख का स्टॉक खत्म हो जाने से वहां उत्पादन बंद हो गया है. फैक्ट्रियों में जहां रोज 10 लाख ईटों का उत्पादन होता था, यह संख्या घटकर महज 4 से 5 लाख ही है. वहीं, राख का स्टॉक कम होने के कारण अब फैक्ट्री मालिक जेसीबी से खुदाई करवाकर राख निकलवा रहे हैं और ये भी अब खत्म होने के कगार पर है.
5 हजार लोगों पर रोजगार का संकट
कोटा ब्रिक्स इंडस्ट्री में करीब 5 हजार लोग रोजगार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. बता दें कि इंडस्ट्री में करीब 1500 से ज्यादा लोग सीधे तौर पर मजदूरी का काम करते हैं. इसके अलावा ब्रिक्स के लदान और लोडिंग-अनलोडिंग के कार्य में भी कई ट्रैक्टर चालक और वाहन लगे हुए हैं. कुल मिलाकर देखें तो करीब 5 हजार लोग यहां रोजगार कर रहे हैं. इन सभी को लॉकडाउन में काम बंद होने के कारण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है.
अधिकांश मजदूर घर पर ही बैठे हैं...
लॉकडाउन के बाद कई फैक्ट्रियां शुरू हुई, लेकिन राख नहीं होने के कारण अधिकांश फैक्ट्रियों में कामकाज शुरू नहीं हो पाया है और वह बंद ही पड़ा है. इन फैक्ट्रियों में कार्यरत मजदूर घरों पर ही हैं. साथ ही जो मजदूर अभी काम कर रहे हैं उनका कहना है कि मजदूरी भी आधी से भी कम रह गई है क्योंकि पूरी क्षमता से फैक्ट्रियां संचालित नहीं हो रही है. मजदूरों का कहना है कि पहले 400 से 500 रुपए मजदूरी मिलती थी, ये भी अब 250 से 300 रुपए ही मिल पा रही है.
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'मजदूरों को रोकने के लिए थोड़ा-थोड़ा उत्पादन कर रहे'
फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि फैक्ट्रियों में राख नहीं होने की वजह से आधी ही ब्रिक्स का उत्पादन कर रहे हैं. उनका कहना है कि मजदूर रूके रहे इसलिए अभी थोड़ा-थोड़ा उत्पादन ही किया जा रहा है. फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि अगर इसी तरह से चलता रहा तो बची कुछ ही राख भी खत्म हो जाएगी और फैक्ट्री पूरी तरह से बंद हो जाएगी. इसके बाद अगर फैक्ट्रियां बंद हो गई और मजदूर यहां से पलायन कर गए तो काम को दोबारा शुरू करने में भी काफी समस्या का सामना करना पड़ेगा.
नहीं हो रही सुनवाई
रीको पर्यावरण इंडस्ट्री एरिया के अध्यक्ष संजय शर्मा का कहना है कि वह राख की मांग को लेकर कोटा थर्मल के चीफ इंजीनियर से लेकर जिला कलेक्टर, संभागीय आयुक्त और ऊर्जा सचिव तक को रोज मेल कर रहे हैं. इसके अलावा उन्हें राख उपलब्ध करवाने की भी गुहार कर रहे हैं, लेकिन कोई जवाब ऊर्जा विभाग से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों का भी नहीं आ रहा है, स्थिति जस की तस बनी हुई है.