कोटा. सुपर थर्मल पावर स्टेशन कोयले के संकट के चलते सुपरक्रिटिकल स्थिति में चला गया हैं. कोयले का स्टॉक गिरकर एक दिन से भी कम 10 हजार टन ही रह गया है. साथ ही तीन यूनिटें भी बंद पड़ी है. त्योहारी सीजन में बिजली की मांग बढ़ी है, लेकिन प्लांट क्षमता 1240 मेगावाट का आधा ही उत्पादन कर पा रहा है. सिर्फ 620 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है.
कोयले की कमी के चलते थर्मल प्रशासन पसीना-पसीना हो गया है. यार्ड में बचा कोयला कन्वेयर बेल्ट पर चढ़ने की स्थिति में नहीं है. यह कोयला यार्ड के गड्ढों में भरने से यार्ड समतल नजर आ रहा है. थर्मल प्रशासन इसे समेट कर कन्वेयर बेल्ट तक ले जाने में जुटा है, ताकि यूनिट्स चालू रख सके.
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कोटा थर्मल पावर स्टेशन में कोल हैंडलिंग यार्ड का काम देख रहे हैं अधीक्षण अभियंता मधुकांत सोमानी का कहना है कि सीईए के अनुसार कोयला खदानों में पानी भर जाने और हड़ताल के चलते कोयले की आपूर्ति में व्यवधान आया है, लेकिन कोटा थर्मल को आगामी कुछ दिनों में 5 रैंक रोजाना मिलेगी. इससे स्थिति में काफी सुधार होगा.
70 फीसदी क्षमता से चल रही चार यूनिट
कोयले की कमी से थर्मल में 110-110 मेगावाट क्षमता की एक व दो नंबर और 210 मेगावाट की तीन नम्बर यूनिट में उत्पादन बंद है. सिर्फ 210 क्षमता की चार और पांच व 195 क्षमता की छह व सात नंबर यूनिट चालू है, लेकिन इन्हें भी 70 फीसदी क्षमता पर चलाया जा रहा है.
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केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के रिकॉर्ड के अनुसार शुक्रवार सुबह को कोयले का स्टॉक मात्र 10 हजार टन कोयला ही बचा था. जबकि कोटा थर्मल की सभी यूनिटों को चलाने के लिए 18 से 20 हजार टन कोयले की खपत है. हालात ऐसे हैं कि अब जो भी कोयले कि रैक आएगी, उनको कोयला सीधा बंकरो में ही डाला जाएगा.
बंद यूनिट को चालू करने में होगा खर्चा
केएसटीपीएस की बंद यूनिट को दोबारा चालू करने के लिए करीब 25 लाख रुपए का खर्च आता है. इसके साथ ही यूनिट को चालू करने के 4 घंटे बाद बिजली का उत्पादन शुरू हो पाता है. तब तक उसे चालू रखने के लिए यूनिट की उत्पादन क्षमता का दस फीसदी बिजली खर्च करनी पड़ती है. ऐसे में करीब 1 यूनिट को लाइट अप करने में 25 लाख रुपए का खर्चा होता है. बता दें कि थर्मल पावर स्टेशनों में जब 4 दिन से कम का कोयला बचता है तो उन्हें सुपरक्रिटिकल और 7 दिन से कम का कोयला बचने पर क्रिटिकल कंडीशन में माना जाता है.