ETV Bharat / city

स्पेशल स्टोरी: जेके लोन में नवजातों की मौत से मचा हड़कंप, अस्पताल प्रशासन फिर भी दिखा रहा कम होते आंकड़े

कोटा संभाग के सबसे बड़े जेके लोन अस्पताल बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कितना गंभीर है. इसका अंदाजा 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत से साफ हो गया है. जिसके बाद से ही पूरे प्रदेश में हंगामा मचा हुआ है. जिस पर खुद प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत भी गंभीर नजर आ रहे है. लेकिन अस्पताल प्रशासन आंकड़ों के जरिए अपना बचाव कर रहा है. देखिए कोटा से स्पेशल रिपोर्ट...

jk loan hospital, infants died in kota
कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला
author img

By

Published : Dec 27, 2019, 8:05 PM IST

Updated : Dec 28, 2019, 12:03 AM IST

कोटा. संभाग का सबसे बड़ा मातृ एवं शिशु चिकित्सालय जेके लोन के एचओडी आंकड़ों के नाम पर बच्चों की मौतों की संख्या कम होने का दावा कर रहे है. लेकिन सच्चाई ये है कि 48 घंटों में 10 बच्चों की जिंदगी इस अस्पताल ने निगली है. जो अस्पताल की गंभीरता पर सवाल उठाता है. वहीं बच्चों की मौत के बाद खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना पर चिंता जताई है. उधर, इस मामले को लेकर चिकित्सा शिक्षा सचिव वैभव गालरिया को पूरे मामले की रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.

कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला

जेके लोन अस्पताल की बात की जाए तो हर साल यहां पर करीब 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत पिछले 6 साल से होती आई है. लेकिन इस साल ये आंकड़ा 940 बच्चों के आसपास ही है. कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते 6 सालों में 6653 बच्चों की मौत हुई है. पिछले 6 सालों के आंकड़ों पर एक नजर..डाले तो

jk loan hospital, infants died in kota
पिछले 6 सालों में भर्ती 101724 में से 6623 की मौत

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का गुनहगार कौन?..जांच करने के लिए कोटा पहुंची कमेटी

हर साल कम हो रहा है आंकड़ा
चिकित्सकों का दावा है कि हर बच्चों की मौत का आंकड़ा कम होता जा रहा है. वर्ष 2014 में जहां हर 10000 बच्चों में से 762 की मौत हुई थी. यह आंकड़ा कम होकर 556 पर पहुंच गया है. इस पर मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष शिशु रोग डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि आंकड़ों से स्पष्ट की डेथ रेशों कम हो रहा है. मरीजों की भर्ती ज्यादा हो रही है और मौत का आंकड़ा कम हो रहा है.

70 फीसदी बच्चे रेफरल
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि कोटा में अधिकांश बच्चे बाहर से रेफर होकर आते है. कोटा मेडिकल कॉलेज में जहां पर झालावाड़, कोटा, बूंदी, बारां के साथ मध्यप्रदेश के एडज्वाइनिंग एरिया के मरीज आते हैं.

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत पर बोले सीएम गहलोत, कहा- रिपोर्ट मंगवाई है, उसके बाद होगी कार्रवाई

भर्ती होने के 24 से 48 घंटों में ज्यादा मृत्यु
जेके लोन अस्पताल में अधिकांश बच्चे सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों से लास्ट स्टेज के मरीज भी यहां पर भेजे जाते हैं. जिन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. अधिकांश मरीजों रेफरल होते हैं, उनकी 24 से 48 घंटों में ही उनकी मृत्यु हो जाती है.

रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे बड़ा कारण
इन बच्चों की मौत में सबसे प्रमुख कारण जो सामने आ रहे हैं. उन में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी सबसे बड़ा कारण है. साथ ही उन्हें प्रीमेच्योर, लो बर्थ वेट, पीलिया, गंदा पानी फेफड़ों में जाना, श्वांस संबंधी समस्या, दिल की बीमारी, दौरे आने, जन्म के समय दम घुटने, जन्मजात निमोनिया, दिमागी बुखार और इन्फेक्शन कारण है.

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत की होगी जांच, सीएम के निर्देश पर बनाई गई कमेटी

रैंकिंग में एसएमएस भी आगे
विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि एफबीएनसी और न्यू नेटल्स की डेथ की पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है. इसकी सेंट्रल गवर्नमेंट से ही मॉनिटरिंग होती है, हर महीने के डाटा शीट बनती है. उसमें कंपैरेटिव स्टेटमेंट भी आता है. कोटा मेडिकल कॉलेज में दो न्यू बोर्न केयर सेंटर हैं. जिनमें एक जेके लोन और दूसरा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में है. प्रदेश की 14 एसएनसीयू में जेके लोन अस्पताल दसवें और मेडिकल कॉलेज की तीसरे नंबर पर है. जबकि एसएमएस से जुड़े सभी अस्पताल दसवें नंबर से नीचे हैं. हमारा जो लेवल है वह सेटिस्फेक्ट्री है.

कोटा. संभाग का सबसे बड़ा मातृ एवं शिशु चिकित्सालय जेके लोन के एचओडी आंकड़ों के नाम पर बच्चों की मौतों की संख्या कम होने का दावा कर रहे है. लेकिन सच्चाई ये है कि 48 घंटों में 10 बच्चों की जिंदगी इस अस्पताल ने निगली है. जो अस्पताल की गंभीरता पर सवाल उठाता है. वहीं बच्चों की मौत के बाद खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना पर चिंता जताई है. उधर, इस मामले को लेकर चिकित्सा शिक्षा सचिव वैभव गालरिया को पूरे मामले की रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.

कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला

जेके लोन अस्पताल की बात की जाए तो हर साल यहां पर करीब 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत पिछले 6 साल से होती आई है. लेकिन इस साल ये आंकड़ा 940 बच्चों के आसपास ही है. कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते 6 सालों में 6653 बच्चों की मौत हुई है. पिछले 6 सालों के आंकड़ों पर एक नजर..डाले तो

jk loan hospital, infants died in kota
पिछले 6 सालों में भर्ती 101724 में से 6623 की मौत

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का गुनहगार कौन?..जांच करने के लिए कोटा पहुंची कमेटी

हर साल कम हो रहा है आंकड़ा
चिकित्सकों का दावा है कि हर बच्चों की मौत का आंकड़ा कम होता जा रहा है. वर्ष 2014 में जहां हर 10000 बच्चों में से 762 की मौत हुई थी. यह आंकड़ा कम होकर 556 पर पहुंच गया है. इस पर मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष शिशु रोग डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि आंकड़ों से स्पष्ट की डेथ रेशों कम हो रहा है. मरीजों की भर्ती ज्यादा हो रही है और मौत का आंकड़ा कम हो रहा है.

70 फीसदी बच्चे रेफरल
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि कोटा में अधिकांश बच्चे बाहर से रेफर होकर आते है. कोटा मेडिकल कॉलेज में जहां पर झालावाड़, कोटा, बूंदी, बारां के साथ मध्यप्रदेश के एडज्वाइनिंग एरिया के मरीज आते हैं.

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत पर बोले सीएम गहलोत, कहा- रिपोर्ट मंगवाई है, उसके बाद होगी कार्रवाई

भर्ती होने के 24 से 48 घंटों में ज्यादा मृत्यु
जेके लोन अस्पताल में अधिकांश बच्चे सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों से लास्ट स्टेज के मरीज भी यहां पर भेजे जाते हैं. जिन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. अधिकांश मरीजों रेफरल होते हैं, उनकी 24 से 48 घंटों में ही उनकी मृत्यु हो जाती है.

रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे बड़ा कारण
इन बच्चों की मौत में सबसे प्रमुख कारण जो सामने आ रहे हैं. उन में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी सबसे बड़ा कारण है. साथ ही उन्हें प्रीमेच्योर, लो बर्थ वेट, पीलिया, गंदा पानी फेफड़ों में जाना, श्वांस संबंधी समस्या, दिल की बीमारी, दौरे आने, जन्म के समय दम घुटने, जन्मजात निमोनिया, दिमागी बुखार और इन्फेक्शन कारण है.

पढ़ें- जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत की होगी जांच, सीएम के निर्देश पर बनाई गई कमेटी

रैंकिंग में एसएमएस भी आगे
विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि एफबीएनसी और न्यू नेटल्स की डेथ की पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है. इसकी सेंट्रल गवर्नमेंट से ही मॉनिटरिंग होती है, हर महीने के डाटा शीट बनती है. उसमें कंपैरेटिव स्टेटमेंट भी आता है. कोटा मेडिकल कॉलेज में दो न्यू बोर्न केयर सेंटर हैं. जिनमें एक जेके लोन और दूसरा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में है. प्रदेश की 14 एसएनसीयू में जेके लोन अस्पताल दसवें और मेडिकल कॉलेज की तीसरे नंबर पर है. जबकि एसएमएस से जुड़े सभी अस्पताल दसवें नंबर से नीचे हैं. हमारा जो लेवल है वह सेटिस्फेक्ट्री है.

Intro:जेकेलोन अस्पताल की बात की जाए तो हर साल यहां पर करीब 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत पिछले 6 साल से होती आई है, लेकिन इस साल ये आंकड़ा 940 बच्चों के आसपास ही है. कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते 6 सालों में 6653 बच्चों की मौत हुई है.


Body:कोटा.
कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते दिनों 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत हुई थी. जिसके बाद से ही पूरे प्रदेश में हंगामा मचा हुआ है. हालांकि जेकेलोन अस्पताल की बात की जाए तो हर साल यहां पर करीब 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत पिछले 6 साल से होती आई है, लेकिन इस साल ये आंकड़ा 940 बच्चों के आसपास ही है. कोटा के जेके लोन अस्पताल में बीते 6 सालों में 6653 बच्चों की मौत हुई है.

हर साल कम हो रहा है आंकड़ा
चिकित्सकों का दावा है कि हर बच्चों की मौत का आंकड़ा कम होता जा रहा है. वर्ष 2014 में जहां हर 10000 बच्चों में से 762 की मौत हुई थी. यह आंकड़ा ये आंकड़ा कम होकर 556 पर पहुंच गया है. इस पर मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष शिशु रोग डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि आंकड़ों से स्पष्ट की डेथ रेशों कम हो रहा है. मरीजों की भर्ती ज्यादा हो रही है और मौत का आंकड़ा कम हो रहा है.

70 फीसदी बच्चे रेफरल
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि कोटा में अधिकांश बच्चे बाहर से रेफर होकर आते है. कोटा मेडिकल कॉलेज में जहां पर झालावाड़, कोटा, बूंदी, बारां के साथ मध्यप्रदेश के एडज्वाइनिंग एरिया के मरीज आते हैं.

भर्ती होने के 24 से 48 घंटों में ज्यादा मृत्यु
जेके लोन अस्पताल में अधिकांश बच्चे सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों से लास्ट स्टेज के मरीज भी यहां पर भेजे जाते हैं. जिन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. अधिकांश मरीजों रेफरल होते हैं, उनकी 24 से 48 घंटों में ही उनकी मृत्यु हो जाती है.

रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे बड़ा कारण
इन बच्चों की मौत में सबसे प्रमुख कारण जो सामने आ रहे हैं. उन में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी सबसे बड़ा कारण है. साथ ही उन्हें प्रीमेच्योर लो बर्थ वेट, पीलिया, गंदा पानी फेफड़ों में जाना, श्वांस संबंधी समस्या, दिल की बीमारी, दौरे आने, जन्म के समय दम घुटने, जन्मजात निमोनिया, दिमागी बुखार और इन्फेक्शन कारण है.


Conclusion:रैंकिंग में एसएमएस भी आगे
विभागाध्यक्ष डॉ. एएल बैरवा का कहना है कि एफबीएनसी और न्यू नेटल्स की डेथ की पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है. इसकी सेंट्रल गवर्नमेंट से ही मॉनिटरिंग होती है, हर महीने के डाटा शीट बनती है. उसमें कंपैरेटिव स्टेटमेंट भी आता है. कोटा मेडिकल कॉलेज में दो न्यू बोर्न केयर सेंटर हैं. जिनमें एक जेकेलोन और दूसरा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में है. प्रदेश की 14 एसएनसीयू में जेके लोन अस्पताल दसवें और मेडिकल कॉलेज की तीसरे नंबर पर है. जबकि एसएमएस से जुड़े सभी अस्पताल दसवें नंबर से नीचे हैं. हमारा जो लेवल है वह सेटिस्फेक्ट्री है.


साल- अस्पताल में भर्ती - मरीज मौत- प्रतिशत
2014 - 15719 - 1198 - 7.62
2015 - 17569 - 1260 - 7.17
2016 - 17892 - 1193 - 6.60
2017 - 17216 - 1027 - 5.96
2018 - 16436 - 1005 - 6.11
2019 - 16892 - 940 - 5.56
कुल- 101724 - 6623 - 6.51


बाइट-- डॉ. एएल बैरवा, एचओडी, पीडियाट्रिक, कोटा
Last Updated : Dec 28, 2019, 12:03 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.