कोटा. हाड़ौती के किसानों ने इस बार करीब 1,15,000 हेक्टेयर में लहसुन का बंपर उत्पादन किया है. कुल उत्पादन 7 लाख मीट्रिक टन के आसपास हुआ है, लेकिन इस बार अचानक भाव धड़ाम होने से किसान परेशान हैं. मंडी में अधिकांश किसानों को लहसुन के 2 से 20 रुपए किलो तक ही दाम मिल रहे हैं. कुछ किसानों का लहसुन इससे ज्यादा कीमत पर बिक रहा है, लेकिन फिर भी उनकी लागत नहीं निकल पा रही है.
उद्यानिकी विभाग ने इसकी लागत 29.57 रुपए निकाली है. उचित दाम नहीं मिल पाने के चलते किसान परेशान हैं. ऐसे में किसान संगठनों ने बाजार हस्तक्षेप योजना की मांग उठाई है. सरकार भी बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत खरीद की कोशिश करने में जुटी है. हालांकि ईटीवी भारत ने जब पड़ताल की तो सामने आया कि सरकार ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में दाम नीचे गिर जाने पर बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन की खरीद की थी.
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लहसुन को ज्यादा समय तक स्टोरेज करके नहीं रखा जा सकता. ऐसे में सरकार ने खरीदने के तुरंत बाद ही इसे बेचना शुरू कर दिया था. हाड़ौती में खरीदा गया लहसुन ओने पौने दामों पर बेचना पड़ा था जिसमें सरकार को 191.45 करोड़ का घाटा हुआ था.
मंडी में माल खरीदने पर हुआ था 255 करोड़ का खर्च
बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत साल 2018 में अप्रैल से जून तक की गई खरीद में कोटा, बारां, बूंदी और झालावाड़ चारों जिलों में लहसुन खरीद किया गया था जिसमें 20,603 किसानों का माल खरीदा गया था. यह करीब 7,52,451 क्विंटल था. इस लहसुन का किसानों को 245 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था. इसके बाद मंडी टैक्स, समिति व राजफैड कमीशन और मंडी हैंडलिंग चार्ज भी लगा था. कुल मिलाकर मंडी में खरीदने का खर्चा करीब 258 करोड़ रुपए हुआ था. यह पूरा नुकसान सरकार को वहन करना पड़ा था.
![Farmers upset due to falling garlic prices](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/15209658_kota-1.jpg)
8 से 17 रुपए किलो बेचना पड़ा सरकार को
राजफैड ने हाड़ौती के चारों जिलों में 25 सेंटरों पर 3257 रुपए क्विंटल खरीद की थी जिसमें बड़ी संख्या में किसानों का माल खरीदा गया. हालांकि इस माल को स्थानीय स्तर पर भी बेचा गया और फिर दिल्ली की आजादपुर मंडी में भी नैफेड के जरिए बेचा था जिसमें यहां से माल को ट्रकों के जरिए भेजा गया. वहां मंडी में बेचने का कमीशन और लेबर खर्च हुआ था जिसका दाम महज साढ़े 9 रुपए किलो था. जबकि बाकी लहसुन को ऑनलाइन बेचा गया था जिस के दाम 8 से 17 रुपए किलो तक मिले थे. इस माल को रखने के लिए बारदाना भी बड़ी मात्रा में खरीदा गया था.
![Farmers upset due to falling garlic prices](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/15209658_kotagfx.jpg)
इस तरह से हुआ करोड़ो का नुकसान
केंद्र व राज्य सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत राजफैड ने 2018 में लहसुन की खरीद की थी. राजफैड के अकाउंट ऑफिसर विष्णु दत्त शर्मा का कहना है कि इस पर करीब 258 करोड़ रुपए का खर्च आया था. लहसुन को दिल्ली में बेचने पर 9 करोड़ 43 लाख और कोटा में 57 करोड़ 22 लाख रुपए सरकार की आय हुई थी. इन्हें मिलाकर करीब 67 करोड रुपए सरकार को मिले थे. इस पूरे लहसुन खरीद में 191.45 करोड़ का खर्च सरकार का हुआ था जिसे राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने वहन किया था.
![Farmers upset due to falling garlic prices](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/15209658_kota.jpg)
इधर, सरकारी कॉस्ट 2957 प्रति क्विंटल
उद्यानिकी विभाग के संयुक्त निदेशक पीके गुप्ता का मानना है कि इस बार हाड़ौती में करीब प्रति हेक्टेयर उत्पादन 5.65 मीट्रिक टन हुआ है. इसके हिसाब से करीब साढ़े छह से पौने सात लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है. ज्वाइंट डायरेक्टर गुप्ता का कहना है कि वे प्रति क्विंटल उत्पादन की लागत 2957 रुपए आई है जिसमें बुवाई, निराई, गुड़ाई व उगाने से लेकर बीज, फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड, कटाई-छंटाई और मजदूरी शामिल है. इसके अलावा लागत में लहसुन को भरने के प्लास्टिक के बैग, पैकिंग मंडी में लाने का किराया और किसान का खेती की लिए लोन का 3 फीसदी ब्याज भी शामिल है जबकि मंडी में प्रति क्विंटल 200 से 2000 रुपए तक के भाव मिल रहे हैं.
किसान संगठन बोले- कर्ज के बोझ के तले दबे किसान आत्महत्या को मजबूर
भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष गिर्राज चौधरी का कहना है कि किसानों ने भारी मात्रा में लहसुन का उत्पादन किया है. किसानों को उम्मीद थी कि उन्हें मुनाफा होगा, लेकिन नुकसान हो रहा है. लहसुन के अच्छे दाम देखते हुए ही किसानों ने अपने परिवार का पेट पालने के लिए ऐसा किया था. बीते सालों में इसके दाम अच्छे रहे हैं, लेकिन इस बार अचानक गिर गए हैं. इसीलिए सरकार को किसानों की मदद करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाती है. उनमें भी भारी खर्च होता है. किसान आम जनता को खाद्यान्न और अन्य सामग्री उपलब्ध करवाने के लिए ही फसल का उत्पादन करता है. ऐसे में लागत नहीं निकलने के चलते किसान को नुकसान होता है, तब गंभीर परिणाम आएंगे. आने वाले समय में लहसुन के कम दामों के चलते कर्ज के बोझ के तले दबे किसान आत्महत्या को मजबूर हो जाएंगे.
किसान मांग रहे 50 रुपए किलो के दाम
मंडी में किसानों को अधिकतम 40 रुपए किलो के भाव मिल रहे हैं, जबकि उनकी मांग है कि उन्हें 50 रुपए किलो के अनुसार दाम मिले. बीकेएस के जिलाध्यक्ष गिर्राज चौधरी का कहना है कि लहसुन की खेती में ही 25 हजार रुपए बीघा का खर्चा आता है. इसके अलावा जमीन मुनाफे पर लेकर खेती करने वाले किसानों को और ज्यादा नुकसान हो रहा है. इन किसानों को लहसुन उगाने में 35 से 45 हजार रुपए बीघा का खर्चा पड़ा है, जबकि अधिकांश की उपज 10 क्विंटल बीघा के अनुसार हुई है. ऐसे में उन्हें 20 हजार रुपए बीघा ही मिल रहा है. यह लागत का भी आधा ही है.
स्पीकर बिरला ने की थी कृषि मंत्री कटारिया से बात
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कृषि मंत्री लालचंद कटारिया से बात की थी. इसमें उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार की तरफ से केंद्र सरकार को बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन की खरीद का प्रस्ताव भेजा जाए जिसपर वह 7 दिन में अनुमति दिला देंगे. इसके बाद हाड़ौती सहित प्रदेश के अन्य एरिया में बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत निश्चित राशि पर किसानों के लहसुन की खरीद शुरू हो जाएगी. इस पर मंत्री कटारिया ने जल्द ही केंद्र सरकार को लहसुन के लिए प्रस्ताव भिजवाने पर सहमति जताई थी.