कोटा. सुप्रीम कोर्ट ने खुद को पूर्व जासूस बताने वाले महमूद अंसारी के मामले में फैसला (Ex Spy Mahmood Ansari) देते हुए केंद्र सरकार को 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने के निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद देशभर में कोटा के महमूद अंसारी चर्चा में आ गए हैं. खुद को पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले महमूद अंसारी का कहना है कि उन्होंने पाकिस्तान की जेल में साढ़े 13 साल बिताए हैं. वे 32 साल बाद आए इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं कि इतना मेरा पूरा कर्जा है.
कोटा निवासी महमूद अंसारी का दावा है कि वे पूर्व जासूस हैं और पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे. इसके चलते उनकी डाक विभाग की सरकारी नौकरी भी चली गई. यहां तक की वापसी पर कोई मुआवजा या पेंशन भी नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की जेल में वे साढ़े 13 साल बंद रहे. उन्हें काफी यातनाएं दी गईं. जिसके चलते उनका पूरा शरीर खराब हो गया है. इसके बाद छूट कर आए, तब तक सब कुछ बदल गया था. उन्हें नौकरी वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाए हैं. महमूद की नौकरी 2007 तक चलती, लेकिन केस लंबा चला और यह नहीं हो सका.
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32 साल तक लड़ते रहे केस : महमूद अंसारी का कहना है कि वह पेंशन और नौकरी के दौरान (Story of Mahmood Ansari) मिलने वाले लाभ के लिए लड़ते रहे और मामला 32 साल तक चलता रहा. इस मामले में 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख रुपए देने के निर्देश दिए हैं, जिससे वे संतुष्ट भी नहीं हैं. उनका कहा है कि इतना तो मेरा पूरा कर्जा है. बीमारी में बीते सालों इतना खर्च हो गया है. महमूद का कहना है कि मैने देशभक्ति निभाई और मेरा पूरा परिवार इसकी भेंट चढ़ गया है. हालात ऐसे हैं कि मेरे पास खुद का घर भी नहीं है. उन्होंने कहा कि जब 1976 में पाकिस्तान गए थे, तब 11 महीने की बेटी थी. उसके बाद कोई संतान भी उनके नहीं है. अब उसी बेटी फातिमा अंसारी के भरोसे उनका जीवन कट रहा है. उनकी पत्नी वहीदन भी बीमार रहती हैं.
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अंसारी का दावा है कि पड़ोसी मुल्क में जासूसी और पकड़े जाने की पूरी कीमत उनके परिवार ने चुकाई है. आरोप है कि उनका विभाग और भारत सरकार ने भी उनकी पूरी मदद नहीं की है. इसका ही खामियाजा अब वह भुगत रहे हैं. उन्होंने कहा कि वापसी के बाद अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के चक्कर लगाए, लेकिन राहत और मदद नहीं मिली. सभी ने कहा कि कोर्ट से ही आपको न्याय मिलेगा. अब न्यायालय से 32 साल बाद में मिली राहत नाकाफी है. उनका कहना है कि अगर वे इंटेलिजेंस के लोगों के संपर्क में आने के बाद (Struggled for 32 Years After Leaving Pakistan) जासूसी के चक्कर में नहीं पड़ते और डाक विभाग में पूरी नौकरी करते तो लाखों रुपए आज उनके पास होते.