कोटा. नगर निगम के चुनाव प्रदेश में जोरों पर हैं. जयपुर, जोधपुर व कोटा के 6 नगर निगमों में होने वाले चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच टक्कर का माहौल है. कोटा में भी इस बार 6वां बोर्ड बनने जा रहा है, जिसको लेकर दोनों नगर निगमों के 150 वार्ड में 514 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. इस चुनावी गहमागहमी के बीच ईटीवी भारत ने कोटा की पहली और प्रदेश की भी पहली महिला मेयर सुमन श्रृंगी से नगर निगम चुनाव को लेकर बातचीत की.
कोटा की पहली मेयर सुमन श्रंगी ने कहा कि अब महापौर के पास कोई पावर नहीं है. सरकार ने मेयर को पावरलेस सरकार ने बना दिया है. जब तक मेयर के पास पावर नहीं होगी, वे शहर के विकास के सपने को जनता के अनुरूप नहीं गढ़ सकता है. सुमन श्रृंगी ने कहा कि हमारे समय सरकार ने एक्स्ट्रा प्रशासनिक पावर अपने पास नहीं रख कर शहर के विकास के लिए मेयर को डेलीगेट किए हुए थे. इसलिए अबके मेयर की शक्तियों में और पहले के मेयर की शक्तियों में रात दिन का अंतर है. अब जो मेयर बनते हैं, उनके पास न तो प्रशासनिक शक्ति होती है, ना ही वित्तीय पावर. वह अपनी मर्जी से इंडिपेंडेंटली 2 लाख रुपए का काम भी नहीं करवा सकते हैं. उन्हें फाइल सीईओ (आयुक्त) से ही चलवानी होती है. पहले मेयर खुद कमा कर खर्च करते थे, मेहनत भी ज्यादा करते थे.
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सुमन श्रृंगी ने कहा कि पहले नगर निगम को सरकार से पैसा नहीं मिलता था, सारा पैसा चुंगी से ही आता था. उससे ही खर्चा चलता था, सरकार से स्कीम के अलावा एक भी पैसा नहीं आता था. चुंगी के जरिए ही शहर का विकास कार्य करवाया जाता था. कर्मचारियों की सैलरी और राष्ट्रीय दशहरा मेला भी उसी से भरवाया जाता था. साथ ही नाली से लेकर पानी व बिजली सब पर खर्चा होता था. हमें शौक था कि ज्यादा से ज्यादा रेवेन्यू जनरेट हो, इसलिए ज्यादा काम करते थे. पैसा कमाना और अपने हिसाब से खर्च कर शहर का विकास करवाना था, उसमें काफी मेहनत किया करते थे. अब मेयर सीईओ (आयुक्त) की मर्जी के बिना कोई काम नहीं करा सकता.
सुमन श्रृंगी ने कहा कि मैंने नवंबर 1994 में कार्यभार संभाला, तब नगर निगम में दो लाख की पावर थी, जो कि मेयर खुद खर्च कर सकता था. दो लाख से ज्यादा के खर्चे के लिए कलेक्टर से परमिशन लेनी पड़ती थी, लेकिन 4 महीने बाद ही हमें सरकार ने पावर डेलीगेट कर दिए थे, मेयर 25 लाख तक के काम में बिना बोर्ड की बैठक की करवा सकता थे, इसके लिए कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करनी होती थी. वहीं दो करोड़ का काम करवाने के लिए बोर्ड की बैठक में अप्रूवल ले ली होती थी, लेकिन किसी भी अधिकारी का दखल अंदाज नहीं था. उन्होंने कहा कि आज स्थिति उलट है, अब 80 लाख तक की पावर सीईओ (आयुक्त) को सरकार ने दी हुई है. उससे ज्यादा 2 करोड़ तक के काम बोर्ड की बैठक में हो सकते हैं. वहीं इससे ज्यादा के काम सरकार की अनुमति से होंगे, लेकिन सीईओ (आयुक्त) ने जो काम सेंक्शन कर दिए, उनमें मेयर कोई रोक-टोक नहीं लगा सकता है. सरकार फायदा देख मेयर का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट चुनाव करवाती है.
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पूर्व मेयर सुमन श्रृंगी का कहना है कि सीधा चुनाव अच्छा है. कई जगह पर भारत में होता है. छोटे-छोटे वार्ड में प्रतिनिधि चुन कर आते हैं, जिन छोटे-छोटे काम के लिए एक मेयर नहीं जा सकता, वह पार्षद जाकर करवा सकता है. एक तरह से डायरेक्ट चुनाव में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सरकारों पर डिपेंड करता है. फायदा डायरेक्ट चुनाव में महसूस करते हैं तो डायरेक्ट करा लेती है, पार्षदों के जरिए कराना हो तो इनडायरेक्ट करा देते हैं. कांग्रेस ने एक बार चुनाव कराकर अनुभव लिया, जिसमें पार्षदों के झगड़े ज्यादा हुए, इसलिए अब उस नियम को वापस ले लिया.
हाइब्रिड फॉर्मूले को बताया असंवैधानिक
हाइब्रिड फॉर्मूले पर कोटा की पहली मेयर सुमन श्रृंगी का कहना है कि यह गलत फार्मूला है, संवैधानिक रूप से भी यह सही नहीं है. इसका विरोध भी काफी हुआ है. इसमें कमी यह है कि कोई रिजर्व सीट से कैंडिडेट नहीं जीता है, तो बाहरी व्यक्ति को लाकर मेयर बना देंगे, तो यह संविधान में खिलाफ है. नियमों के खिलाफ है.
एसी कमरे में बैठने के लिए नहीं होता मेयर
श्रृंगी ने कहा कि ऐसा मेयर वो बनना चाहिए, जो पहले स्वयं चैलेंज एक्सेप्ट करे कि मैं कर सकता हूं. अगर आपकी इच्छा शक्ति नहीं है और काम नहीं हो सकते है. मेयर का मतलब ये नहीं है कि गाड़ी, एसी कमरा मिल गया. मैं उसमें बैठ जाऊं, मेरे का नाम हो गया. उद्धाटन व भाषण करता रहूं, तो मेयर का रुतबा राजनीतिक रुतबा तो जरूर बनेगा, लेकिन अपना नाम स्थाई तौर से जनता के बीच में गुडविल नहीं कमा पाएगा. उसके लिए उसे सड़क पर घूमना पड़ेगा. बिजली, नाली, विकास और सफाई के लिए जुटना पड़ेगा.