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कोटा जेके लोन हॉस्पिटलः रखा जा रहा प्रीमेच्योर बेबी का खास ख्याल, घट रही नवजातों की मृत्यु दर संख्या... - कोटा की खबर

कोटा का जेके लोन अस्पताल अब नवजात बच्चों की केयर के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है. प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चे काफी कमजोर होते हैं और इनमें इंफेक्शन भी जल्दी फैल जाता है. साथ ही इनकी डेथ रेट भी काफी ज्यादा होती है, लेकिन जेके लोन अस्पताल ऐसे सैकड़ों बच्चों को बचाने के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है.

कोटा जेके लोन अस्पताल, JK Lone Hospital of kota
घट रही नवजातों की मृत्यु दर संख्या
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Published : Sep 2, 2021, 8:13 PM IST

कोटा. जैसा की हम सभी जानते हैं कि प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चे काफी कमजोर होते हैं और इनमें इंफेक्शन भी जल्दी फैल जाता है. साथ ही इनकी डेथ रेट भी काफी ज्यादा होती है, लेकिन अब इस मामले में कोटा का जेके लोन अस्पताल सैकड़ों बच्चों को बचाने के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है.

पढ़ेंः Special : पंचायत राज चुनाव में भाजपा ने राजस्थान के साथ ही UP में भी की अपने प्रत्याशियों की बाड़ाबंदी

जेके लोन अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि प्रीमेच्योर नवजात को बचाने के मामले में उनकी दर प्रदेश के अन्य संस्थानों से काफी अच्छी है. जोकि नेशनल लेवल के इंस्टिट्यूट से भी ठीक है. ऐसा संसाधनों और प्रत्येक बच्चे की अच्छी तरह से मॉनिटरिंग करने के चलते ही हुआ है.

रखा जा रहा प्रीमेच्योर बेबी का खास ख्याल

कोटा मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृता मयंगर का कहना है कि हमारे पास करीब प्रीमेच्योर और लो बर्थ वेट के काफी संख्या में बच्चे रेफर होकर आते हैं और यहां भर्ती भी होते हैं. उपलब्ध संसाधनों से करीब 22 की जान बचाई है, जिनका वजन 1 किलो से भी कम था, जबकि इन नवजात की मृत्यु संख्या काफी होती है. बेस्ट संसाधनों के बावजूद भी अच्छे से अच्छे इंस्टिट्यूट में इनकी मोटिलिटी 70 से 80 फीसदी रहती है.

वहीं, 1 किलो से डेढ़ किलो के ग्रुप में मृत्यु दर काफी में कम की है, ये केवल 26 फीसदी रही है. जो कि अन्य संस्थानों में 30 से 35 रहती है. डेढ़ किलो से ढाई किलो के बच्चे जिसमें केवल 6 फीसदी मृत्युदर है. अन्य संस्थानों में 10 से 15 फीसदी मृत्यु दर रहती है. उन्होंने कहा कि हमारा टारगेट कम वजन के नवजात में 10 फीसदी से भी कम मृत्यु दर रखने का है. वहीं आगे हम चाहेंगे कि यह 5 फीसदी से भी कम रहे, ताकि बेस्ट इंस्टिट्यूट के मुकाबले हमारे यहां मृत्यु दर कम हो.

1.5 किलो से कम वजन के 83 बच्चों को मिला नया जीवन

कोटा के जेके लोन अस्पताल में पेरीफेरी से भी बच्चे रेफर होकर आते हैं. ऐसे में कोटा बूंदी, बारां, झालावाड़ और मध्य प्रदेश के भी कई इलाकों से प्रीमेच्योर नवजात यहां रेफर होकर आए हैं. डेढ़ किलो से कम उम्र के 83 बच्चों को इस साल जेके लोन अस्पताल में बचाया है. जो कि काफी कमजोर हालत में पैदा हुए थे. इनमें से 500 ग्राम से लेकर 1 किलो तक के बच्चों की बात की जाए, तो ऐसे 22 नवजात थे.

पढ़ेंः पंचायती राज चुनाव : सेंधमारी के डर से बाड़ाबंदी में माननीय, करोड़ों हो रहे खर्च...अभी असल परीक्षा बाकी

चिकित्सकों के अनुसार ऐसे बच्चों को बचाना की एक उपलब्धि होता है. वहीं, ढाई साल से कम वजन के सभी नवजात की बात की जाए, तो ऐसे 1462 केस जेके लोन अस्पताल में पहुंचे थे. इनमें से 189 बच्चों की मौत उपचार के दौरान हुई. जबकि 1273 बच्चे सरवाइव कर पाए हैं. इन बच्चों की मौत का तेरा फीसदी है.

कंगारू केयर से लेकर सुधारा इंफ्रास्ट्रक्चर

प्रीमेच्योर के सर्वाइवर सबसे ज्यादा केयर महत्वपूर्ण है. उनकी केयर जितनी अच्छी होगी, उतनी ही प्रीमेच्योर नवजात की मृत्यु दर कम होगी. ऐसे प्रीमेच्योर नवजातों के लिए मुख्य रूप से उनका तापमान नियंत्रित करने के लिए कई तरह की मशीन नई खरीदी गई हैं, सरकार ने ये उपलब्ध कराई है. हमारे चिकित्सकों का विशेष ध्यान रहता है. कंगारू मदर केयर की एक प्रक्रिया होती है, परिजनों के साथ यह की रूटीन प्रोसेस में लाएं है. बच्चों को काफी फायदा होता है. प्रीमेच्योर नवजात के उपचार के लिए पूरा प्रोटोकॉल बना दिया है उसके तहत ही सभी चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ उनकी केयर में जुटे रहते हैं.

लाखों रुपए की दवा निशुल्क, मां को भी प्रीमेच्योर के पहले देते हैं इंजेक्शन

जेके लोन अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. जीके शर्मा का कहना है कि में प्रीमेच्योर बच्चों में इंफेक्शन से बचाने के लिए सर्फेक्टेंट इंजेक्शन उन्हें दिया जाता है. ताकि उन्हें सांस की तकलीफ नहीं हो. यह इंजेक्शन बच्चों को निशुल्क लगाया जा रहा है. इसके अलावा भी नवजात बच्चों के लिए दवाइयां निशुल्क ही मिल रही हैं. जिससे तुरंत प्रीमेच्योर नवजात को राहत दी जाती है. प्रीमेच्योर डिलीवरी होने के संबंध में बच्चे के जन्म के पहले ही डिलीवरी के समय स्टेरॉयड इंजेक्शन दिया जाने लगा है, यह सुविधा जेके लोन अस्पताल में उपलब्ध करवाई जा रही है. यह इंजेक्शन प्रीमेच्योर नवजात के सर्वाइवल को बढ़ाता है.

भारत में 13 फ़ीसदी प्रीमेच्योर डिलीवरी

चिकित्सकों के अनुसार प्रीमेच्योर डिलीवरी का मतलब 37 सप्ताह से पूर्व हुए शिशु के जन्म को कहते हैं. इन बच्चों का वजन भी सामान्य नवजात से कम होता है. हालांकि गर्भावस्था के 26 सप्ताह में ही पैदा होने वाले नवजात में लो बर्थ वेट वाले ज्यादा होते हैं. सामान्य तौर पर जन्म के समय शिशु का वजन ढाई किलो से लेकर साढ़े तीन किलो के बीच होना चाहिए. भारत में करीब 100 में से 13 प्रीमेच्योर पैदा होते हैं. इनमें 500 ग्राम से लेकर 1 किलो तक के नवजात भी शामिल हैं.

प्रीमेच्योर बच्चों की मौत की स्थिति

वजन (किलो)भर्तीबचे मौत डेथ का प्रतिशत
1 किलो से कम70 22 48 31
एक से डेढ़235 174 61 26
डेढ़ से ढाई11571077 80 6.9
ढाई से ज्यादा13251269 56 4.2
कुल278725422458.8


चिकित्सकों का दावा कम है मृत्यु दर

वजन (किलो) जेके लोनअन्य इंस्टिट्यूट (प्रतिशत)
1 किलो से कम30 से 4075 से 80
एक से डेढ़26 30 से 40
डेढ़ से ढाई6.910 से 15
ढाई से ज्यादा4.3 10 से ज्यादा

कोटा. जैसा की हम सभी जानते हैं कि प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चे काफी कमजोर होते हैं और इनमें इंफेक्शन भी जल्दी फैल जाता है. साथ ही इनकी डेथ रेट भी काफी ज्यादा होती है, लेकिन अब इस मामले में कोटा का जेके लोन अस्पताल सैकड़ों बच्चों को बचाने के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है.

पढ़ेंः Special : पंचायत राज चुनाव में भाजपा ने राजस्थान के साथ ही UP में भी की अपने प्रत्याशियों की बाड़ाबंदी

जेके लोन अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि प्रीमेच्योर नवजात को बचाने के मामले में उनकी दर प्रदेश के अन्य संस्थानों से काफी अच्छी है. जोकि नेशनल लेवल के इंस्टिट्यूट से भी ठीक है. ऐसा संसाधनों और प्रत्येक बच्चे की अच्छी तरह से मॉनिटरिंग करने के चलते ही हुआ है.

रखा जा रहा प्रीमेच्योर बेबी का खास ख्याल

कोटा मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृता मयंगर का कहना है कि हमारे पास करीब प्रीमेच्योर और लो बर्थ वेट के काफी संख्या में बच्चे रेफर होकर आते हैं और यहां भर्ती भी होते हैं. उपलब्ध संसाधनों से करीब 22 की जान बचाई है, जिनका वजन 1 किलो से भी कम था, जबकि इन नवजात की मृत्यु संख्या काफी होती है. बेस्ट संसाधनों के बावजूद भी अच्छे से अच्छे इंस्टिट्यूट में इनकी मोटिलिटी 70 से 80 फीसदी रहती है.

वहीं, 1 किलो से डेढ़ किलो के ग्रुप में मृत्यु दर काफी में कम की है, ये केवल 26 फीसदी रही है. जो कि अन्य संस्थानों में 30 से 35 रहती है. डेढ़ किलो से ढाई किलो के बच्चे जिसमें केवल 6 फीसदी मृत्युदर है. अन्य संस्थानों में 10 से 15 फीसदी मृत्यु दर रहती है. उन्होंने कहा कि हमारा टारगेट कम वजन के नवजात में 10 फीसदी से भी कम मृत्यु दर रखने का है. वहीं आगे हम चाहेंगे कि यह 5 फीसदी से भी कम रहे, ताकि बेस्ट इंस्टिट्यूट के मुकाबले हमारे यहां मृत्यु दर कम हो.

1.5 किलो से कम वजन के 83 बच्चों को मिला नया जीवन

कोटा के जेके लोन अस्पताल में पेरीफेरी से भी बच्चे रेफर होकर आते हैं. ऐसे में कोटा बूंदी, बारां, झालावाड़ और मध्य प्रदेश के भी कई इलाकों से प्रीमेच्योर नवजात यहां रेफर होकर आए हैं. डेढ़ किलो से कम उम्र के 83 बच्चों को इस साल जेके लोन अस्पताल में बचाया है. जो कि काफी कमजोर हालत में पैदा हुए थे. इनमें से 500 ग्राम से लेकर 1 किलो तक के बच्चों की बात की जाए, तो ऐसे 22 नवजात थे.

पढ़ेंः पंचायती राज चुनाव : सेंधमारी के डर से बाड़ाबंदी में माननीय, करोड़ों हो रहे खर्च...अभी असल परीक्षा बाकी

चिकित्सकों के अनुसार ऐसे बच्चों को बचाना की एक उपलब्धि होता है. वहीं, ढाई साल से कम वजन के सभी नवजात की बात की जाए, तो ऐसे 1462 केस जेके लोन अस्पताल में पहुंचे थे. इनमें से 189 बच्चों की मौत उपचार के दौरान हुई. जबकि 1273 बच्चे सरवाइव कर पाए हैं. इन बच्चों की मौत का तेरा फीसदी है.

कंगारू केयर से लेकर सुधारा इंफ्रास्ट्रक्चर

प्रीमेच्योर के सर्वाइवर सबसे ज्यादा केयर महत्वपूर्ण है. उनकी केयर जितनी अच्छी होगी, उतनी ही प्रीमेच्योर नवजात की मृत्यु दर कम होगी. ऐसे प्रीमेच्योर नवजातों के लिए मुख्य रूप से उनका तापमान नियंत्रित करने के लिए कई तरह की मशीन नई खरीदी गई हैं, सरकार ने ये उपलब्ध कराई है. हमारे चिकित्सकों का विशेष ध्यान रहता है. कंगारू मदर केयर की एक प्रक्रिया होती है, परिजनों के साथ यह की रूटीन प्रोसेस में लाएं है. बच्चों को काफी फायदा होता है. प्रीमेच्योर नवजात के उपचार के लिए पूरा प्रोटोकॉल बना दिया है उसके तहत ही सभी चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ उनकी केयर में जुटे रहते हैं.

लाखों रुपए की दवा निशुल्क, मां को भी प्रीमेच्योर के पहले देते हैं इंजेक्शन

जेके लोन अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. जीके शर्मा का कहना है कि में प्रीमेच्योर बच्चों में इंफेक्शन से बचाने के लिए सर्फेक्टेंट इंजेक्शन उन्हें दिया जाता है. ताकि उन्हें सांस की तकलीफ नहीं हो. यह इंजेक्शन बच्चों को निशुल्क लगाया जा रहा है. इसके अलावा भी नवजात बच्चों के लिए दवाइयां निशुल्क ही मिल रही हैं. जिससे तुरंत प्रीमेच्योर नवजात को राहत दी जाती है. प्रीमेच्योर डिलीवरी होने के संबंध में बच्चे के जन्म के पहले ही डिलीवरी के समय स्टेरॉयड इंजेक्शन दिया जाने लगा है, यह सुविधा जेके लोन अस्पताल में उपलब्ध करवाई जा रही है. यह इंजेक्शन प्रीमेच्योर नवजात के सर्वाइवल को बढ़ाता है.

भारत में 13 फ़ीसदी प्रीमेच्योर डिलीवरी

चिकित्सकों के अनुसार प्रीमेच्योर डिलीवरी का मतलब 37 सप्ताह से पूर्व हुए शिशु के जन्म को कहते हैं. इन बच्चों का वजन भी सामान्य नवजात से कम होता है. हालांकि गर्भावस्था के 26 सप्ताह में ही पैदा होने वाले नवजात में लो बर्थ वेट वाले ज्यादा होते हैं. सामान्य तौर पर जन्म के समय शिशु का वजन ढाई किलो से लेकर साढ़े तीन किलो के बीच होना चाहिए. भारत में करीब 100 में से 13 प्रीमेच्योर पैदा होते हैं. इनमें 500 ग्राम से लेकर 1 किलो तक के नवजात भी शामिल हैं.

प्रीमेच्योर बच्चों की मौत की स्थिति

वजन (किलो)भर्तीबचे मौत डेथ का प्रतिशत
1 किलो से कम70 22 48 31
एक से डेढ़235 174 61 26
डेढ़ से ढाई11571077 80 6.9
ढाई से ज्यादा13251269 56 4.2
कुल278725422458.8


चिकित्सकों का दावा कम है मृत्यु दर

वजन (किलो) जेके लोनअन्य इंस्टिट्यूट (प्रतिशत)
1 किलो से कम30 से 4075 से 80
एक से डेढ़26 30 से 40
डेढ़ से ढाई6.910 से 15
ढाई से ज्यादा4.3 10 से ज्यादा
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