कोटा. राजस्थान पुलिस के महानिदेशक मोहनलाल लाठर शनिवार को कोटा जिले के दौरे पर आए. इस दौरान उन्होंने कोटा रेंज के पुलिस अधिकारियों की क्राइम मीटिंग ली. उन्होंने कहा कि साइबर क्राइम चुनौती बनता जा रहा है क्योंकि हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है और उसमें इंटरनेट भी है. ऐसे में साइबर क्राइम बढ़ रहे हैं. इस बढ़ते हुए अपराध के बारे में हमारी क्षमता और जानकारी भी पर्याप्त नहीं है, जितनी होनी चाहिए.
पढ़ें- जैसलमेर: पीने के पानी पर पुलिस का पहरा, जानिए क्या है कारण
लाठर ने कहा कि राज्य सरकार ने राजस्थान पुलिस अकादमी में साइबर फॉरेंसिक ट्रेनिंग लैब स्थापित की है. अब उसमें अभियोजन, न्यायिक और पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. धीरे-धीरे साइबर क्राइम के बारे में जानकारी बढ़ेगी, इससे इन्हें रोकने में भी आसानी होगी.
अभियोजन स्वीकृति साक्ष्य पूरे दिन के चलते नहीं मिलती
एमएल लाठर ने कहा कि इन्वेस्टिगेशन के बाद आरोप पत्र बनता है और उसकी प्रक्रिया है. अभियोजन के लिए जांच एजेंसी एसीबी है या पुलिस साक्ष्य एकत्रित करती है. उसके बाद एक गारंटी और सेफगार्ड अभियोजन स्वीकृति का दिया गया है. जिसका मकसद है कि राज्य सरकार के स्तर पर एविडेंस एजेंसी ने जो एकत्रित किए हैं, वो पेश किए जाएं और अगर उनमें कोई कमी है तो उन्हें पूरे करने का भी इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को मौका दिया जाता है. अगर पूरे साक्ष्य नहीं होते हैं, तो अभियोजन स्वीकृति देने से भी कोई फायदा नहीं होता क्योंकि न्यायालय में केस नहीं चलेगा.
बारां और झालावाड़ में नाबालिगों के खिलाफ बढ़ रहे मामले
डीजीपी ने कहा कि बारां और झालावाड़ में आर्म्स और एनडीपीएस एक्ट के मामले काफी बढ़ रहे हैं. वहां पर बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामले भी आ रहे हैं. ऐसे में पूरी तरह से कार्य योजना बनाकर ऐसे मामलों पर फोकस कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं.
भ्रष्ट और दुराचारी पुलिसकर्मी के खिलाफ होगी कार्रवाई
लाठर ने कहा कि किसी भी पुलिस कार्मिक पर भ्रष्टाचार या व्यभिचार का कोई मामला आएगा, तो उस पर सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी. अभी भी जहां इस तरह के मामले आए, सख्त कार्रवाई की गई है. महिलाओं से संबंधित अपराध अफसोस जनक वृद्धि जरूर हो रही है, लेकिन हमारा जो रेस्पांस राजस्थान पुलिस की तरफ से है, वह त्वरित होना चाहिए.
पेंडेंसी पर ज्यादा फोकस
डीजीपी लाठर का पूरा फोकस पेंडेंसी पर रहा. उन्होंने पेंडेंसी को लेकर कहा कि कई ऐसे मुकदमे होते हैं, जिनमें पार्शियल चार्जशीट फाइल कर दी जाती है, लेकिन उसके बाद मुकदमा पेंडिंग रह जाता है. ऐसे मुकदमे वैसे तो निस्तारित माने जाते हैं, लेकिन वह 10 सालों तक पेंडिंग रहते हैं और आंखों से भी ओझल हो जाते हैं. ऐसे सभी मामलों पर रिव्यू के निर्देशित किए गए हैं. साथ ही 3 महीने के अंदर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है.