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नींबू की फसल के तीन सीजन मृग, अंबे और हस्त बहार...वॉटर मैनेजमेंट से साल भर कर सकते हैं खेती

देशभर में नींबू के दाम बढ़े हुए हैं. 50 से 60 रुपए किलो मिलने वाला नींबू अभी 250 से 300 रुपए किलो मिल रहा है. नींबू सालभर की जाने वाली फसल (Lemon Farming in kota) है. कोटा के नींबू वर्गीय फसलों के सेंटर फॉर एक्सीलेंस "सिट्रस" के एक्सपर्ट ने नींबू के पौधरोपण से लेकर उत्पादन (cultivate lemon throughout the year) तक की पूरी जानकारी ईटीवी भारत के साथ साझा की है.

cultivate lemon throughout the year
वॉटर मैनेजमेंट से साल भर कर सकते हैं नींबू की खेती
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Published : Apr 13, 2022, 10:19 PM IST

Updated : Jun 28, 2022, 12:38 PM IST

कोटा. देशभर में नींबू के दाम बढ़ने के चलते हड़कंप मचा हुआ है. नींबू के दाम जहां पर 50 से 60 रुपए किलो हुआ करते थे. अब यह 4 से 5 गुना बढ़े हुए हैं. करीब 250 से 300 रुपए किलो तक दाम बढ़ गए हैं. जबकि नींबू साल भर (cultivate lemon throughout the year) की जाने वाली फसल है. किसान नींबू को तीन बार सालभर में उत्पादित कर सकता है, लेकिन यह काफी मुश्किल भी माना जाता है. इसके तीन सीजन मृग, अंबे और हस्त बहार (mrig, Ambe and Hasta bahar are three seasons of lemon harvest) शामिल हैं.

कोटा के नींबू वर्गीय फसलों के सेंटर फॉर एक्सीलेंस "सिट्रस" के एक्सपर्ट ने नींबू के पौधरोपण से लेकर उत्पादन तक की पूरी जानकारी ईटीवी भारत के साथ साझा की है. इसमें सिट्रस के हॉर्टिकल्चर डिप्टी डायरेक्टर एस्सेल जांगिड़ का कहना है कि गर्मी में आने वाली फसल के सीजन को अंबे बहार कहा जाता है. जबकि सर्दी में होने वाली फसल को मृग बहार कहा जाता है. हस्त बहार को मेंटेन करना किसानों के लिए मुश्किल होता है. ज्यादातर किसानों का फोकस अंबे और मृग पर ही होता है.

वॉटर मैनेजमेंट से साल भर कर सकते हैं नींबू की खेती

पढ़ें. नींबू को लगी महंगाई की नजर, किचन से बनाई दूरी...पेट्रोल-डीजल से भी ढाई गुने बढ़े दाम

इस तरह से करते हैं बहार को मैनेज
उपनिदेशक जांगिड़ का कहना है कि अंबे बहार में जनवरी या फरवरी में करीब एक माह खेत या नींबू के बगीचे का पानी रोकना पड़ता है. ताकि पूरा एरिया शुष्क हो जाए. पानी नहीं होने की वजह से पेड़ के पत्ते गिर जाते हैं और उनके लिए पतझड़ जैसा सीजन हो जाता है. इसके बाद मार्च के सीजन में फ्लॉवरिंग शुरू होती है. कुछ दिन बाद फल भी आ जाते है. इसके बाद ड्रिप तकनीकी या दूसरे तरीके से पानी पहुंचाया जाता है. जिससे फल बड़ा होने लगता है. उसके बाद अप्रैल से जून तक फसल ली जा सकती है. एसएल जांगिड़ का मानना है कि वर्तमान में अंबे बहार का परिस्थिति तंत्र थोड़ा बिगड़ गया है. इससे उत्पादन भी तटीय क्षेत्रों में ही ज्यादा होता है. जहां पर साइक्लोन की वजह से नींबू की फसल की फ्लावरिंग में दिक्कत आ गई थी और वह नष्ट हो गई थी. अब जो भी उत्पादन बचा है, उसमें फल आ गए हैं. फ्रूट्स अब बड़े होकर मार्केट में करीब 20 से 30 दिन के बीच में आएंगे.

राजस्थान में ज्यादा फोकस मृग बहार पर
जांगिड़ के अनुसार मृग बहार की फसल के लिए मई अंत और जून में बगीचे का पानी रोक दिया जाता है. इसमें जुलाई में फूल आना शुरू होता है. इसके बाद फल आते हैं. इसके बाद मानसून सक्रिय होने पर पानी खेतों में पहुंच जाता है .साथ ही ड्रिप तकनीक के जरिए पानी पहुंचाया जाता है. फल बड़ा होने लगता है. इसका उत्पादन अक्टूबर अंत से नवंबर व दिसंबर तक चलता है. राजस्थान में इस फसल पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है. ज्यादा गर्मी होने के चलते मई-जून में पानी भी जमीन में नहीं रहता है. ऐसे में दोबारा जुलाई में फल और फूल आने लगते हैं.

पढ़ें. यहां नींबू हुआ घी के दाम के बराबर...400 रुपए किलो बिका, भाव सुन लोगों को लग रहा झटका

यह मौसम के अनुसार सतत प्रक्रिया है. ऐसे में इस फसल के लिए जुलाई के बाद सितंबर तक पर्याप्त पानी बारिश से मिल जाता है. साथ ही सर्दी के सीजन में तापमान भी नींबू के लिए जरूरी तापमान के आसपास ही प्रदेश में रहता है. जबकि हस्त बहार में अक्टूबर-नवंबर में पानी को खेत में रोका जाता है. उसके बाद में जनवरी-फरवरी में फूल और फल आने लगते हैं. बाद में मार्च और अप्रैल में उत्पादन हो जाता है. हस्त बहार पर ज्यादा किसान ध्यान नहीं देते हैं. क्योंकि मावठ के सीजन में सर्दी होने के चलते खेत को शुष्क रख पाना काफी मुश्किल है.

सैंकड़ो किस्म, प्रदेश में दो और ज्यादा फोकस
एग्रीकल्चर ऑफिसर हेमंत यादव का कहना है कि नींबू की सैकड़ों किस्म देशभर में उगाई जाती है. राजस्थान नींबू के उत्पादन में इतना अग्रणी नहीं है. उनका कहना है कि हाड़ौती में जो नींबू की खेती होती है, उनमें एनआरसी 7 व एनआरसी 8 शामिल है. इन पर ही ज्यादा किसान ध्यान देते हैं. इसके अलावा विक्रम, बालाजी परमालिनी, शाही शरबती और थाई लेमन की किस्में भी सेंटर फॉर एक्सीलेंस पर उगाई गई हैं.

एक पौधे से 35 से 50 किलो उत्पादन
एक्सपर्ट ने बताया कि जब नींबू को बीज बोकर उगाया जाता है, तब 4 से 5 साल में पौधा उत्पादन शुरू करता है. जबकि पौधा लेकर जब उसे उगाया जाता है तब यह 3 से 4 साल में उत्पादन शुरू कर देता है. इसके अलावा एक किस्म थाई लेमन की होती, यह 1 से 2 साल में बाद ही उत्पादन शुरू कर देता है. एक नींबू के पौधे से शुरू के 3 से 4 सालों में 10 से 15 किलो नींबू का उत्पादन होता है. जब पौधा 5 से 6 साल हो जाता है, तब यह उत्पादन 35 से 50 किलो पहुंच जाता है. एक पेड़ करीब 25 से 30 साल तक उत्पादन नींबू का करता है.

पढ़ें. फलों से महंगी सब्जियां : केला पर भारी प्याज, अनार और सेब से महंगे टिंडे...नींबू के आगे सब पस्त

एक बीघा में लग सकते है 62 पौधे
सुपरवाइजर मदन लाल बैरवा का कहना है कि एक बीघा में नींबू के 62 पौधे लग सकते हैं. इनमें 18 फीट की दूरी रहती है. पौधों को एक लाइन से लगाना चाहिए. साथ ही हर कतार को पौधा लगाने के लिए ढाई फीट ऊंचा मिट्टी से उठाना चाहिए. इस उठी हुई क्यारी में ही पौधे लगाने चाहिए. नींबू का पेड़ भी करीब 10 से 12 फीट तक ऊंचा हो जाता है. पेड़ की चौड़ाई भी करीब 7 से 8 फीट तक हो जाती है.

प्रकाश का सिद्धांत होता है लागूः नींबू की बुआई के तुरंत बाद पेड़ की कटाई छंटाई होनी चाहिए. इसके लिए प्रकाश का सिद्धांत उपयोग में लिया जाता है. देखा जाता है कि उत्तर से पश्चिम की तरफ पेड़ में पूरा प्रकाश हर पत्ती और डाल को मिले. इसी तरह से जब सूरज पश्चिम में चला जाए तब भी पश्चिम से पूर्व की तरफ भी पूरा प्रकाश मिले.

पढ़ें. जानें कहां गर्मी की वजह से कोल्ड ड्रिंक से भी महंगा हो गया एक नींबू

खेत के शुष्क रहते समय 45 और फसल आने पर 37 डिग्री तापमान
नींबू के पेड़ में सीजन की शुरुआत में 45 डिग्री टेंपरेचर तक तापमान पेड़ सहन कर सकता है. इसके बाद जब फूल आने लगते हैं और बाद में फल आते हैं उस समय तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से कम होना चाहिए. तापमान ज्यादा होने पर फल को नुकसान पहुंच जाता है. इससे उत्पादन कम होता है. यहां तक कि ज्यादा तापमान से छोटे फल गिर कर खराब हो जाते हैं.

कटाई छटाई मैनेजमेंट भी बढ़ाता है उत्पादन
एग्रीकल्चर ऑफिसर हेमंत यादव का कहना है कि नींबू के पौधे में बीमारी मैनेजमेंट बेहतर होता है. पेड़ की कटाई और छंटाई अच्छा होने पर भी उत्पादन बढ़ता है. साथ ही फंगल और बीमारियों का प्रबंधन भी काफी करना पड़ता है. खाद व पेस्टिसाइड को भी ध्यान से किसानों को देना पड़ता है. पानी और सिंचाई प्रबंधन का भी उत्पादन पर असर पड़ता है. हेमंत यादव ने बताया कि ड्रिप सिंचाई से ही सभी प्लांटेशन बेहतर होते हैं. खुली सिंचाई में इतना उत्पादन अच्छा नहीं होता है.

कोटा. देशभर में नींबू के दाम बढ़ने के चलते हड़कंप मचा हुआ है. नींबू के दाम जहां पर 50 से 60 रुपए किलो हुआ करते थे. अब यह 4 से 5 गुना बढ़े हुए हैं. करीब 250 से 300 रुपए किलो तक दाम बढ़ गए हैं. जबकि नींबू साल भर (cultivate lemon throughout the year) की जाने वाली फसल है. किसान नींबू को तीन बार सालभर में उत्पादित कर सकता है, लेकिन यह काफी मुश्किल भी माना जाता है. इसके तीन सीजन मृग, अंबे और हस्त बहार (mrig, Ambe and Hasta bahar are three seasons of lemon harvest) शामिल हैं.

कोटा के नींबू वर्गीय फसलों के सेंटर फॉर एक्सीलेंस "सिट्रस" के एक्सपर्ट ने नींबू के पौधरोपण से लेकर उत्पादन तक की पूरी जानकारी ईटीवी भारत के साथ साझा की है. इसमें सिट्रस के हॉर्टिकल्चर डिप्टी डायरेक्टर एस्सेल जांगिड़ का कहना है कि गर्मी में आने वाली फसल के सीजन को अंबे बहार कहा जाता है. जबकि सर्दी में होने वाली फसल को मृग बहार कहा जाता है. हस्त बहार को मेंटेन करना किसानों के लिए मुश्किल होता है. ज्यादातर किसानों का फोकस अंबे और मृग पर ही होता है.

वॉटर मैनेजमेंट से साल भर कर सकते हैं नींबू की खेती

पढ़ें. नींबू को लगी महंगाई की नजर, किचन से बनाई दूरी...पेट्रोल-डीजल से भी ढाई गुने बढ़े दाम

इस तरह से करते हैं बहार को मैनेज
उपनिदेशक जांगिड़ का कहना है कि अंबे बहार में जनवरी या फरवरी में करीब एक माह खेत या नींबू के बगीचे का पानी रोकना पड़ता है. ताकि पूरा एरिया शुष्क हो जाए. पानी नहीं होने की वजह से पेड़ के पत्ते गिर जाते हैं और उनके लिए पतझड़ जैसा सीजन हो जाता है. इसके बाद मार्च के सीजन में फ्लॉवरिंग शुरू होती है. कुछ दिन बाद फल भी आ जाते है. इसके बाद ड्रिप तकनीकी या दूसरे तरीके से पानी पहुंचाया जाता है. जिससे फल बड़ा होने लगता है. उसके बाद अप्रैल से जून तक फसल ली जा सकती है. एसएल जांगिड़ का मानना है कि वर्तमान में अंबे बहार का परिस्थिति तंत्र थोड़ा बिगड़ गया है. इससे उत्पादन भी तटीय क्षेत्रों में ही ज्यादा होता है. जहां पर साइक्लोन की वजह से नींबू की फसल की फ्लावरिंग में दिक्कत आ गई थी और वह नष्ट हो गई थी. अब जो भी उत्पादन बचा है, उसमें फल आ गए हैं. फ्रूट्स अब बड़े होकर मार्केट में करीब 20 से 30 दिन के बीच में आएंगे.

राजस्थान में ज्यादा फोकस मृग बहार पर
जांगिड़ के अनुसार मृग बहार की फसल के लिए मई अंत और जून में बगीचे का पानी रोक दिया जाता है. इसमें जुलाई में फूल आना शुरू होता है. इसके बाद फल आते हैं. इसके बाद मानसून सक्रिय होने पर पानी खेतों में पहुंच जाता है .साथ ही ड्रिप तकनीक के जरिए पानी पहुंचाया जाता है. फल बड़ा होने लगता है. इसका उत्पादन अक्टूबर अंत से नवंबर व दिसंबर तक चलता है. राजस्थान में इस फसल पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है. ज्यादा गर्मी होने के चलते मई-जून में पानी भी जमीन में नहीं रहता है. ऐसे में दोबारा जुलाई में फल और फूल आने लगते हैं.

पढ़ें. यहां नींबू हुआ घी के दाम के बराबर...400 रुपए किलो बिका, भाव सुन लोगों को लग रहा झटका

यह मौसम के अनुसार सतत प्रक्रिया है. ऐसे में इस फसल के लिए जुलाई के बाद सितंबर तक पर्याप्त पानी बारिश से मिल जाता है. साथ ही सर्दी के सीजन में तापमान भी नींबू के लिए जरूरी तापमान के आसपास ही प्रदेश में रहता है. जबकि हस्त बहार में अक्टूबर-नवंबर में पानी को खेत में रोका जाता है. उसके बाद में जनवरी-फरवरी में फूल और फल आने लगते हैं. बाद में मार्च और अप्रैल में उत्पादन हो जाता है. हस्त बहार पर ज्यादा किसान ध्यान नहीं देते हैं. क्योंकि मावठ के सीजन में सर्दी होने के चलते खेत को शुष्क रख पाना काफी मुश्किल है.

सैंकड़ो किस्म, प्रदेश में दो और ज्यादा फोकस
एग्रीकल्चर ऑफिसर हेमंत यादव का कहना है कि नींबू की सैकड़ों किस्म देशभर में उगाई जाती है. राजस्थान नींबू के उत्पादन में इतना अग्रणी नहीं है. उनका कहना है कि हाड़ौती में जो नींबू की खेती होती है, उनमें एनआरसी 7 व एनआरसी 8 शामिल है. इन पर ही ज्यादा किसान ध्यान देते हैं. इसके अलावा विक्रम, बालाजी परमालिनी, शाही शरबती और थाई लेमन की किस्में भी सेंटर फॉर एक्सीलेंस पर उगाई गई हैं.

एक पौधे से 35 से 50 किलो उत्पादन
एक्सपर्ट ने बताया कि जब नींबू को बीज बोकर उगाया जाता है, तब 4 से 5 साल में पौधा उत्पादन शुरू करता है. जबकि पौधा लेकर जब उसे उगाया जाता है तब यह 3 से 4 साल में उत्पादन शुरू कर देता है. इसके अलावा एक किस्म थाई लेमन की होती, यह 1 से 2 साल में बाद ही उत्पादन शुरू कर देता है. एक नींबू के पौधे से शुरू के 3 से 4 सालों में 10 से 15 किलो नींबू का उत्पादन होता है. जब पौधा 5 से 6 साल हो जाता है, तब यह उत्पादन 35 से 50 किलो पहुंच जाता है. एक पेड़ करीब 25 से 30 साल तक उत्पादन नींबू का करता है.

पढ़ें. फलों से महंगी सब्जियां : केला पर भारी प्याज, अनार और सेब से महंगे टिंडे...नींबू के आगे सब पस्त

एक बीघा में लग सकते है 62 पौधे
सुपरवाइजर मदन लाल बैरवा का कहना है कि एक बीघा में नींबू के 62 पौधे लग सकते हैं. इनमें 18 फीट की दूरी रहती है. पौधों को एक लाइन से लगाना चाहिए. साथ ही हर कतार को पौधा लगाने के लिए ढाई फीट ऊंचा मिट्टी से उठाना चाहिए. इस उठी हुई क्यारी में ही पौधे लगाने चाहिए. नींबू का पेड़ भी करीब 10 से 12 फीट तक ऊंचा हो जाता है. पेड़ की चौड़ाई भी करीब 7 से 8 फीट तक हो जाती है.

प्रकाश का सिद्धांत होता है लागूः नींबू की बुआई के तुरंत बाद पेड़ की कटाई छंटाई होनी चाहिए. इसके लिए प्रकाश का सिद्धांत उपयोग में लिया जाता है. देखा जाता है कि उत्तर से पश्चिम की तरफ पेड़ में पूरा प्रकाश हर पत्ती और डाल को मिले. इसी तरह से जब सूरज पश्चिम में चला जाए तब भी पश्चिम से पूर्व की तरफ भी पूरा प्रकाश मिले.

पढ़ें. जानें कहां गर्मी की वजह से कोल्ड ड्रिंक से भी महंगा हो गया एक नींबू

खेत के शुष्क रहते समय 45 और फसल आने पर 37 डिग्री तापमान
नींबू के पेड़ में सीजन की शुरुआत में 45 डिग्री टेंपरेचर तक तापमान पेड़ सहन कर सकता है. इसके बाद जब फूल आने लगते हैं और बाद में फल आते हैं उस समय तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से कम होना चाहिए. तापमान ज्यादा होने पर फल को नुकसान पहुंच जाता है. इससे उत्पादन कम होता है. यहां तक कि ज्यादा तापमान से छोटे फल गिर कर खराब हो जाते हैं.

कटाई छटाई मैनेजमेंट भी बढ़ाता है उत्पादन
एग्रीकल्चर ऑफिसर हेमंत यादव का कहना है कि नींबू के पौधे में बीमारी मैनेजमेंट बेहतर होता है. पेड़ की कटाई और छंटाई अच्छा होने पर भी उत्पादन बढ़ता है. साथ ही फंगल और बीमारियों का प्रबंधन भी काफी करना पड़ता है. खाद व पेस्टिसाइड को भी ध्यान से किसानों को देना पड़ता है. पानी और सिंचाई प्रबंधन का भी उत्पादन पर असर पड़ता है. हेमंत यादव ने बताया कि ड्रिप सिंचाई से ही सभी प्लांटेशन बेहतर होते हैं. खुली सिंचाई में इतना उत्पादन अच्छा नहीं होता है.

Last Updated : Jun 28, 2022, 12:38 PM IST
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