कोटा. घाटे में चल रही सरकारी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड अपने कार्मिकों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम लेकर आई है. इसमें 50 साल की आयु को पूरे कर चुके या उससे अधिक उम्र के नियमित और स्थाई कर्मचारियों को वीआरएस दिया जा रहा है.
इसमें कोटा के भी बड़ी संख्या में कार्मिक शामिल हो गए हैं और उन्होंने इस स्कीम के लिए आवेदन कर दिया है. इस स्कीम के तहत वीआरएस लेने के बाद कोटा संभाग में बीएसएनएल के आधे से भी कम कर्मचारी रह जाएंगे. ये कार्मिक वर्तमान कार्मिकों की संख्या के मात्र 42 फ़ीसदी ही होंगे.
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कोटा संभाग में जहां बीएसएनएल में 565 कार्मिक कार्य कर रहे हैं. इनमें से बीएसएनएल की वीआरएस स्कीम में 368 लोग आ रहे हैं. जिनमें से भी 328 ने इसके लिए आवेदन कर दिया है, जो जल्द ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हो जाएंगे. इसके बाद बीएसएनएल में कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ चारों जिलों में महज 237 कार्मिक ही रहेंगे.
पूरे देश की बात करें तो बीएसएनएल और एमटीएनएल के 1 लाख 70 हजार कार्मिक हैं. इनमें से अब तक 93 हजार कार्मिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कर चुके हैं. जिनमें बीएसएनएल के 79 हजार और एमटीएनएल के 14 हजार कार्मिक शामिल है.
अधिकारियों का कहना है कि देशभर में बीएसएनएल और एमटीएनएल को 700 करोड़ रुपए माह की बचत होगी. उससे नए संसाधन बसाने और सरकारी दूरसंचार कंपनियों को बचाने में मदद मिलेगी.
मजदूर से लेकर डीटीई, सब ले रहे VRS...
वीआरएस स्कीम में जिन लोगों की उम्र 50 से ज्यादा है. उन्हें ही एलिजिबल माना गया था. ऐसे में कोटा संभाग में मजदूर, लाइनमैन, जेटीओ, एसडीओ, डीटीई और क्लर्क भी सेवानिवृत्त हो रहे हैं. बीएसएनएल कोटा के जीएम सिंहल का कहना है कि हाड़ौती के चारों जिलों में एलिजिबल स्टाफ में से 85 फ़ीसदी ने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया है.
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कोटा संभाग की बात की जाए तो ब्रॉडबैंड मोबाइल और लैंडलाइन उपभोक्ताओं को मिलाकर करीब 3 लाख उपभोक्ता हैं. इनके लिए संभाग के चारों जिलों में टेलीफोन एक्सचेंज काम कर रहे हैं. इनके अलावा करीब 670 बीटीएस पूरे हाड़ौती के चारों जिलों में स्थापित किए हुए हैं, जो 2जी और 3जी सेवा के हैं. इनके लिए 400 टावर खड़े किए हुए है.
70 फीसदी पैसा खर्च हो रहा था तनख्वाह में...
प्राइवेट सेक्टर की टेलीकॉम कंपनियां भी वैसे तो घाटे में चल रही है, लेकिन उन कंपनियों में महज 7 से 15 फ़ीसदी के बीच ही मेन पावर की सैलरी पर पैसा खर्च होता है. अधिकांश पैसा संसाधनों के विस्तार में लगाया जाता है, लेकिन बीएसएनएल और एमटीएनएल में 60 से 70 फ़ीसदी तक पैसा कार्मिकों की सैलरी में खर्च हो रहा था.
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इसके चलते संसाधन विस्तार के लिए बीएसएनएल व एमटीएनएल के पास पैसा ही नहीं बच रहा था. जिसके चलते घटिया सर्विस उपभोक्ताओं को मिल रही थी और यह कंपनियां लगातार घाटे में जा रही थी. सरकारों ने भी इन सरकारी उपक्रमों के लिए उचित समय पर कदम नहीं उठाए है.
हाड़ौती में कार्मिकों का ये है गणित...
- बीएसएनएल के कार्मिक- 565
- वीआरएस स्कीम में एलिजिबल - 368
- वीआरएस स्कीम में आवेदक - 328
- वीआरएस के बाद बीएसएनएल के पास रहेंगे - 237
बीएसएनएल के उपभोक्ता के आंकड़े --
- बीएसएनएल के मोबाइल उपभोक्ता- ढाई लाख
- लैंडलाइन उपभोक्ता- 30 हजार
- ब्रॉडबैंड उपभोक्ता- 12 हजार
- संभाग में 2जी व 3जी बीटीएस - 670
- बीटीएस के लिए टावर- 400
- टेलीफोन एक्सचेंज - 115
दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में कहा कि बीएसएनएल और एमटीएनएल देश के रणनीतिक एसेट्स हैं. यही कारण है कि इनको रिवाइव करने का फैसला किया गया है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कर्मचारी लागत के ज्यादा बोझ को वीआरएस के जरिए कम किया जा सकता है. अब केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की स्कीम लाकर कार्मिकों को वीआरएस दे रहे हैं ताकि सैलरी में जाने वाले पैसे की बचत हो सके.