कोटा. केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट का कहना है कि एमएसएमई और रक्षा मंत्रालय की कंपनियां में जो ज्यादा अच्छा प्रोडक्ट तैयार करेगी, उसको ही सप्लाई का मौका मिलेगा. आज विश्व हमारी तरफ देख रहा है और भारत की तरफ कोई भी आंख उठाकर भी नहीं देख सकता. बीते 5 सालों में हमने 38,500 करोड़ रुपए के रक्षा उत्पादों का निर्यात किया (Ajay Bhatt on defense export) है. सिपरी के सर्वे में हम विश्व की टॉप 25 रक्षा उत्पाद निर्यात कर रही कंपनियों में शामिल हैं. विश्व में हम एक मजबूत शक्ति बनकर सामने आ रहे हैं.
एमएसएमई कॉन्क्लेव और एग्जीबिशन में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि एमएसएमई कॉन्क्लेव और एग्जिबिशन का आयोजन ही बड़ी कंपनियों से एमएसएमई सेक्टर की छोटी कंपनियों का तालमेल बैठाना है. जो प्रोडक्ट में बाहर से या दूसरी कंपनियों से खरीद रहे हैं, जिनको एमएसएमई सेक्टर की कंपनियां बना सकें और बेहतर रक्षा उत्पाद भारत में हो सकें.
सबसे ऊंची चोटी ओम लिंगला पर सड़क: अजय भट्ट ने कहा कि सिंधु नदी पर पुल बनाने की बात हो या फिर ओम लिंगला सबसे ऊंची चोटी पर सड़क बनाने में हम अव्वल रहे हैं. उन्होंने चाइना का बिना नाम लिए हुए कहा कि हम अब पड़ोसी देश के सामने खड़े हैं, वह मैदान से पहुंचा है और हम पहाड़ को पार कर वहां पहुंचे हैं. यहां पर ऑक्सीजन की कमी थी. इसके बावजूद हमने गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवाया है और सारे रिकॉर्ड तोड़े हैं. इसी तरह से सिक्किम और लद्दाख में भी ऊंचाई पर भी पुल बना दिया है. अटल टनल की बात की जाए या अन्य दूसरी सुरंगों की, अटल टनल से हर दिन करीब 7 करोड़ रुपए की बचत हो रही है. डीआरडीओ ने बिना आदमी के जहाज चला दिया है. एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल बनाई है, जिसे हेलीकॉप्टर से लांच किया है.
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रक्षा उत्पाद निर्यात बीते 5 सालों में 8 गुना बढ़ाः रक्षा मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी रक्षा उत्पाद संजय जाजू ने कहा कि रक्षा उत्पाद का निर्यात 8 गुना बढ़ गया है. पहले यह 1600 करोड़ ही था. अब वह 13,000 करोड़ से पार चला गया है. हर साल रक्षा उत्पादों की एक लाख करोड़ की खरीद हो रही है. आज भी हम प्रोडक्ट विदेशों से ले रहे हैं, जिन्हें यहां की स्टार्टअप कंपनी उपलब्ध करवा सकती हैं. इसीलिए यह एमएसएमई कॉन्क्लेव और एग्जीबिशन आयोजित की गई है. बीते 4 साल पहले ही इनोवेशन एंड डिफेंस एक्सीलेंस प्रोग्राम शुरू किया गया था. जिसने 4 सालों में 150 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर काम किया है. स्टार्टअप का एक पूरा नेटवर्क तैयार हो गया है. इनमें से कुछ कंपनियां डिफेंस की यूनिकॉर्न के तौर पर उभर सकती हैं.
हमने कोटा की कुछ इंडस्ट्री विजिट भी की है और इस एग्जीबिशन के जरिए यहां के एमएसएमई सेक्टर से जुड़ने की कोशिश की है. भारत सरकार ने पॉलिसी में बदलाव किया है. जिसके तहत डिफेंस के कुछ आइटम को बाहर से खरीदने पर रोक लगा दी गई है. यह साफ संकेत है कि यह सामान भारतीय कंपनियां बनाएं और उसको रिक्वायरमेंट की मुताबिक देश से ही खरीदा जाएगा. सबसे बड़ी बात है कि पहले हम तो गोला-बारूद भी बाहर से मंगा रहे थे, लेकिन आज ड्रोन भी यहां ईजाद किए जा रहे हैं.
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छोटी कंपनियां रिसर्च और इनोवेशन में निभा रही बड़ी भागीदारीः कार्यक्रम में सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चर (एसआईडीएम) और महिंद्रा एंड महिंद्रा के सीईओ एसपी शुक्ला ने कहा कि रक्षा उत्पाद बनाने में जुटी हुई कंपनियों को कई छोटे प्रोडक्ट की आवश्यकता होती है. ऐसे में एमएसएमई सेक्टर इसमें काफी मदद कर सकता है. एसयूवी कार बनाने में भी 200 छोटे सप्लायर होते हैं. बिना छोटी कंपनियों के बड़ी कंपनी काम भी नहीं कर सकती है. यह सब कुछ जॉइंट वेंचर से ही होता है और सप्लाई चेन के बिना यह कार्य अधूरा है.
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छोटी कंपनियां इनोवेशन रिसर्च भी करती हैं, जिन के प्रोडक्ट ठीक बनने पर उनकी टेस्टिंग होती है और बड़ी कंपनियां ऐसे प्रोडक्ट को अडॉप्ट भी करती हैं. मेटल, इलेक्ट्रॉनिक्स व इंजीनियरिंग सेक्टर की एमएसएमई फैक्ट्रियां भी रक्षा उत्पाद बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभा सकती हैं. उन्होंने कहा कि यह मत सोचिए कि डिफेंस में बड़ी कंपनियां ही काम करती हैं, छोटी कंपनियां भी कुछ अच्छे प्रोडक्ट और स्टार्टअप लाकर इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कर सकती हैं. यह पूरा एक इकोसिस्टम है. जिसमें छोटी कंपनियां ही बड़ी कंपनियों की मदद करती है. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.