कोटा. जेके लोन अस्पताल में लगातार नवजात बच्चों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं. साल 2014 से बात की जाए तो अब तक 7 हजार 540 नवजात बच्चों की मौत अस्पताल में हो चुकी है. जबकि अस्पताल प्रबंधन कहता है कि यह बच्चे रेफर होकर आए थे. साथ ही गंभीर स्थिति के चलते ही इनकी मौत हुई है. वहीं साल 2020 की बात की जाए तो 10 दिसंबर के एक दिन में नौ नवजात बच्चों की मौत का मामला सामने आया. वही दिसंबर महीने में अब तक 29 बच्चों की मौत हो चुकी है.
पूरे साल की बात की जाए तो अब तक 917 नवजात बच्चों की मौत होने की बात सामने आ रही है. बीते साल भी जब इस तरह का हंगामा हुआ था और 48 घंटे में 10 बच्चों की मौत हुई थी. उसके बाद राज्य और केंद्र सरकार ने यहां पर सुधार के प्रयास किए थे. राज्य सरकार ने निर्माण कार्य स्वीकृत किया है. नए ओपीडी और इनडोर ब्लॉक बनवाए जा रहे हैं. केंद्र की टीम भी यहां पर भेजी गई थी. साथ ही व्यवस्थाओं के लिए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और बीजेपी विधायकों ने उपकरण की खरीद करवाई थी. साथ ही राज्य सरकार ने भी अधिक संख्या में उपकरण भेजे थे. पुराने सभी उपकरणों की एएमसी और सीएमसी से हुई थी. उसके बावजूद भी हालात नहीं सुधरे.
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42 वार्मर पर भर्ती हैं 65 से ज्यादा नवजात
जेके लोन अस्पताल के नियो नेटल इंसेंटिव केयर में ज्यादा समस्या है. यहां पर ऑक्यूपेंसी 150 फीसदी से भी ज्यादा रहती है. एनआईसीयू में अलग-अलग जगह पर 42 वार्मर लगे हुए हैं, लेकिन इन पर 65 से 100 तक बच्चे भर्ती रहते हैं. यानी की दो नवजात हमेशा एक वार्मर पर जेके लोन अस्पताल में देखे जा सकते हैं. वहीं जब ज्यादा संख्या में नवजात भर्ती हो जाते हैं, तो यह संख्या तीन तक पहुंच जाती है. ऐसे में नवजातों में एक दूसरे से संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है. अस्पताल में ये उपकरण हैं मौजूद...
- 24 में से नौ वेंटिलेटर बंद, अस्पताल में बड़ी संख्या में उपकरण भी लगातार खराब पड़े हुए हैं.
- तीन डिफिब्रिलेटर में से एक खराब है.
- 114 इन्फ्यूजन पंप में 25 बंद हैं.
- 56 नेबुलाइजर में से 36 ही काम कर रहे हैं.
- 24 वेंटिलेटर में से 15 ही काम कर रहे हैं.
- अस्पताल में 71 वार्मर हैं, जिनमें से 60 ही काम कर रहे हैं.
- 13 सेक्शन मशीनों में से 11 काम कर रही हैं. तीन एबीजी मशीन में से एक में मशीन ही काम कर रही है और दो खराब हैं.
- दो एक्सरे मशीन भी अस्पताल में बंद हैं. यहां पर 14 बीपी इंस्ट्रूमेंट खराब हैं और दो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खराब हैं.
- चार सिपेपे से पांच मशीनें बेकार पड़ी हैं.
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पेरीफेरी में चिकित्सा व्यवस्था नहीं सुधर रही, यह भी एक कारण, रेफर्ड बच्चों में 30 फीसदी की मौत
कोटा की बात की जाए या फिर संभाग के बारां, बूंदी और झालावाड़ के ग्रामीण एरिया की. वहां पर चिकित्सा व्यवस्थाएं पूरी तरह से बदहाल ही है. इसके चलते वहां पर जन्म लेने वाले गंभीर बीमार नवजात शिशुओं के इलाज की भी पूरी व्यवस्था नहीं होती है. उन्हें सीधा वहां से कोटा के जेके लोन अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है. लाने में भी उन्हें समय लग जाता है. इसके चलते भी नवजात की जान पर बन आती है और वह गंभीर हो जाता है. यहां चिकित्सकों के लिए उसे बचाना भी चैलेंज हो जाता है. अस्पताल में बाहर से आने वाले नवजात शिशुओं की मौत की बात की जाए तो यह 30 फीसदी है. अधिकांश नवजात गंभीर रूप से ही आकर भर्ती होते हैं.
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ये निर्णय जिन पर काम नहीं हुआ...
1. फैकल्टी और स्टाफ:
नवजात केयर में सबसे ज्यादा स्टाफ की आवश्यकता होती है, और वही जेके लोन अस्पताल के पास नहीं है. यहां पर डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी है. पिछली बार हंगामा होने पर मेडिकल कॉलेज में सीनियर डॉक्टर को पद स्थापित किया गया था. इनमें जयपुर से प्रोफेसर डॉ. जगदीश सिंह को लगाया गया था, जिन्होंने वापस स्थानांतरण करवा लिया. इनके साथ पांच अन्य चिकित्सक भी थे, जिनका स्थानांतरण जयपुर और अन्य जगह हो गया है. सीनियर चिकित्सकों प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के 7 में से 5 पद खाली हैं. यहां तक कि जो अस्पताल की ऑक्यूपेंसी रहती है, वह 150 बेड से ज्यादा है. ऐसे में स्वीकृत पद ही खाली हैं, जबकि स्वीकृत पदों को भी बढ़ाना चाहिए.
2. अस्पताल में कई शिकायतें, कोई कार्रवाई नहीं:
अस्पताल के स्टाफ की लगातार शिकायतें आती हैं, यहां तक कि बदतमीजी भी स्टाफ अटेंडेंट के साथ करते हैं. उनकी केयर भी अच्छे से नहीं की जाती है. तीन नवजात जो अपनी मां के साथ ही पोस्ट नेटल वार्ड में थे, उनकी भी मौत हुई है. उनके परिजन तबीयत बिगड़ने और बच्चों के रोने पर लगातार स्टाफ और चिकित्सकों के पास ले जाते रहे थे, लेकिन उन्होंने बच्चों के रोने की बात ही कही थी. बच्चे इसी तरह से रोते हैं और स्टाफ व डॉक्टर उन्हें देखते भी नहीं हैं. यह अक्सर जेकेलोन में होता है. भर्ती मरीजों के परिजनों से भी वे दुर्व्यवहार कर देते हैं.
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3. पोस्ट नेटल में पीडियाट्रिक का राउंड लो:
पिछली बार तय किया गया था कि पोस्ट नेटल वार्ड में भी भर्ती नवजातों की लगातार शिशु रोग विभाग के डॉक्टर राउंड लेकर जांच करेंगे, लेकिन यह कुछ समय तो चला उसके बाद पूरी तरह से बंद हो गया है. वहां पर अपनी माताओं के साथ रहने वाले बच्चों की देखरेख नहीं हो पाती है. ऐसे बच्चों की भी मौत हो रही है.
4. क्वालिटी ऑफ केयर:
अस्पताल में क्वालिटी ऑफ केयर गंभीर बीमार नवजातों को नहीं मिल रही है. नर्सिंग स्टाफ से लेकर हर व्यक्ति लापरवाही बरतता है. अस्पताल में जांच के लिए भी लंबा समय लग जाता है. इसके अलावा परामर्श पर्ची से लेकर भर्ती की पर्ची और जांचे करवाने की पर्ची में हर बार कतारों को झेलना पड़ता है. यहां पर चिकित्सक को दिखाने में भी एक से डेढ़ घंटा लग जाता है.
6. ठेका श्रमिक की समस्या:
अस्पताल में सबसे बड़ी समस्या ठेका श्रमिकों की है. यहां पर अनुबंध पर संवेदक के जरिए कार्मिकों को लगाया गया है, लेकिन नर्सिंग स्टाफ, स्वीपर से लेकर कंप्यूटर ऑपरेटर और सब कुछ अनुबंध पर है. लैब में भी कार्मिक अनुबंध पर हैं. इन्हें पूरा मानदेय नहीं मिल पाता है. इसके चलते यह लोग कई बार हड़ताल करते हैं. इनको महीने का भुगतान भी देरी से मिलता है. इसके चलते भी यह कभी हंगामा कर देते हैं. वहीं कम वेतन के चलते पूरी तरह से काम भी नहीं करते हैं.