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आजादी के सुपर हीरो: खादी पहन आजादी की जंग में कूद पड़े थे व्यापारी बाल मुकुंद बिस्सा

आजादी की जंग में जोधपुर के रेशमी कपड़े के व्यवसायी बाल मुकंद बिस्सा (Freedom Fighter Bal Mukand Bissa) का नाम आज भी राजस्थान के लोगों की यादों में अमर है. गांधी जी से प्रभावित होकर खादी अपनाने वाले बिस्सा ने रेशमी कपड़ों की होली जलाकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. आज हम आपको जोधपुर के इस आजादी के दीवाने से परिचत कराने जा रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर

आजादी के सुपर हीरो बाल मुकुंद बिस्सा
आजादी के सुपर हीरो बाल मुकुंद बिस्सा
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Published : Aug 9, 2022, 7:05 AM IST

Updated : Aug 9, 2022, 8:02 AM IST

जोधपुर. देश को आजादी असंख्य लोगों के बलिदान से मिली थी लेकिन इनमे कई नाम गुमनाम ही रह गए. इनके संघर्ष और त्याग के बारे में बहुत से लोग जान ही नहीं सके. राजस्थान में भी ऐसे कई आंदोलनकारी थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आजादी के दीवानों में से एक जोधपुर के बाल मुकंद बिस्सा (Jodhpur freedom Fighter) भी हैं जिन्होंने अंग्रेजों व तत्कालीन सरकार के अत्याचार सहते हुए देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. बिस्सा परिवार का कलकत्ता में रेशमी वस्त्रों का बड़ा व्यापार था. वे मूलत नागौर जिले के डीडवाना के रहने वाले थे.

जोधपुर में आकर उन्होंने व्यापार शुरू किया लेकिन उनपर गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन का इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी दुकान के कपड़ों की होली जलाई. और तो और पत्नी के रेशमी वस्त्रों को भी उन्होंने जला दिया और फिर खादी धारण कर लिया. इतना ही नहीं वह खादी बेचने के लिए खुद ठेला लेकर घूमते थे. इसके साथ ही बिस्सा आजादी के आंदोलन में कूद पडे़. पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में उत्तरदायी शासन की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए. 1940 में मारवाड़ में आततायी शासन को लेकर आंदेालन तेज हो गए थे. जयनारायण व्यास मथुरादास माथुर जैसे नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. बालमुकंद बिस्सा को जेल से बाहर आंदोलन चलाने की जिम्मेदारी दी गई जिसके चलते उनको भी गिरफ्तार किया गया. तीन माह तक जेल में रखने के बाद सरकार से समझौते के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

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बिस्सा ने जेल में किया आमरण अनशन, लाठियां मिलीं
1942 की शुरुआत से ही देश में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के प्रयास तेज हो गए थे. गांधी ने बडे़ आंदोलन के लिए रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी थी. अगस्त में कांग्रेस के अधिवेशन से पहले ही इस पर चर्चा होनी शुरू हो गई, लेकिन मारवाड़ में मई 1942 में आंदोलन का बिगुल बज गया. जयनारायण व्यास सहित कई लोग गिरफ्तार हो चुके थे. अत्याचार के विरोध में बिस्सा ने जेल के बाहर अनशन शुरू कर दिया. इसपर उन्हें भी जेल में डाल दिया गया. जेल में भी आंदोलन हुआ. बंदियों ने सरकार से मांग रखी कि उन्हें कोठरी के बजाय खुले में रखा जाए. इसको लेकर बिस्सा अनशन करने लगे जिसे दबाने के लिए बंदियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. करीब दस दिन से भूखे बिस्सा उनके निशाने पर थे. उन्हें लाठियां मारी गईं जिससे सिर में गहरी चोटें आईं, लेकिन समय से अस्पताल तक नहीं ले जाया गया. बाद में हालत खराब होने पर जब अस्पताल ले गए तब तक उनकी मृत्यु हो गई.

आजादी के सुपर हीरो बाल मुकुंद बिस्सा

बिस्सा की शवयात्रा में जमकर हुआ हंगामा, जुटी थी हजारों की भीड़
बालमुकंद बिस्सा का शव तत्कालीन विंडम अस्पताल जो अब महात्मा गांधी अस्पताल है, वहां रखा गया था. जनता को इसकी जानकारी मिलते ही लोग एकत्र होने लगे. शवयात्रा निकलाने की तैयारी की जानकारी सरकार को लगी तो जोधपुर में आने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए. इससे लोग और ज्यादा क्रोधित हो गए. सरकार ने आदेश दिया कि शहर की बजाय बाहर के रास्ते से चांदपोल श्मशान तक शव ले जाना होगा. नाराज लोगों ने तोड़फोड़ करना शुरू कर दी. सोजती गेट जलाने के प्रयास हुए. पुलिस ने लाठी चार्ज और फायरिंग भी की लेकिन लोग जुटे रहे. बुजुर्गों की समझाइश पर गतिरोध खत्म हुआ तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार हुआ. कहा जाता है कि बिस्सा की अंतिम यात्रा में जो भीड़ जुटी थी वह अकल्पनीय थी.

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इंदिरा गांधी ने बनवाया था बिस्सा का स्मारक, अधिवेशन में द्वार बनाया
बिस्सा के पौत्र सुरेश बिस्सा बताते हैं कि 1908 में जन्मे बालमुकंद बिस्सा ने 34 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपना बलिदान दिया था. इसकी जानकारी कांग्रेस में सभी के पास पहुंची. अखबारों में गांधी सहित सभी नेताओं ने प्रतिक्रियाएं दीं. कांग्रेस के गांधी नगर अधिवेशन में शहीद बाल मुकंद बिस्सा को सम्मान देने के लिए उनके नाम का द्वार बनाया गया. आजादी के बाद जब इंदिरा गांधी पीएम बनी तो उन्होंने जोधपुर में बाल मुकंद बिस्सा का स्मार्क शहर की प्रमुख जगह पर बनाने के निर्देश दिए जिसके बाद जालौरी गेट पर उनकी मूर्ति लगाई गई. उन्होंने बताया कि दादा के खादी के आह्वान का उनकी दादी ने जीवन पर्यंत पालन किया. आजादी के बाद भी वह खादी ही पहनती थीं.

अत्याचार से व्यथित होकर बने आंदोलन कारी
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागध्यक्ष डॉ एसपी व्यास बताते हैं कि अपना पुश्तैनी काम छोड़ कर बिस्साजी खादी के काम से जुड़ गए थे. 1936 में खादी भंडार की स्थापना की. मारवाड़ में जनचेतना बढ़ने लगी थी. इसके चलते तत्कालीन रियासत की सरकार और अंग्रेज दमन पर उतर आए थे. 1934 मे प्रजामंडल का गठन हुआ. बिस्सा उसमें कार्यकर्ता बन गए. दूसरी ओर सरकार और जागीरदारों के अत्याचार बढ़ रहे थे. अंग्रेजों के इशारे पर उत्पीड़न चल रहा था.

पढ़ें. आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

1936 में कराची में देशी राज्य लोक परिषद का अधिवेशन हुआ उसमें भी बिस्सा ने भाग लिया. इस बीच तत्कालीन मारवाड़ सरकार ने आदेश जारी कर आठवीं से कॉलेज की फीस में वृद्धि कर दी. बिस्सा ने इसका विरोध किया. इसके बाद वे जनता से जुड़ी समस्याओं को लेकर आंदोलनरत रहे. एक प्रस्ताव पारित कर उन्होंने सरकार के कार्यकमों में भाग नहीं लेने के आह्वान किया. 1938 में जोधपुर आए सुभाष चंद्र बोस से मिले और हालात बताए. बोस के आने से पहले सरकार ने कांग्रेस का झंडा फहराने पर रोक लगा दी, लेकिन उसने अपनी खादी की दुकान पर झंडा लगाया जिसको लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई हुई. उनकी दुकान आंदोलनकारियों की बैठक बन गई थी.

आज स्मारक है प्रतिबंधित
बालमुकंद बिस्सा का बलिदान व्यर्थ नहीं गया. देश को आजादी मिली. उनके सम्मान में स्मारक भी बनाया गया. शुरुआत में यह एक उद्यान के रूप में विकसित हुआ. समय के साथ यातायात का दबाव बढ़ने से इसे छोटा किया गया, लेकिन वर्तमान में इस स्मारक के सर्किल में प्रवेश पर पाबंदी लगी है. दो माह पहले इसलिए बालमुकंद बिस्सा का नाम चर्चा में आया था क्योंकि दो मई की रात व तीन मई की सुबह साप्रदायिक तनाव हो गया था जिसके बाद इसे प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया. दो मई की रात बिस्सा की मूर्ति पर धर्म विशेष का झंडा लगाने से बवाल भी हुआ था. दस दिन कर्फ्यू भी लगा था. अब सिर्फ यहां तिरंगा लगता है. बिस्सा के परिजन भी यही चाहते हैं कि उनकी मूर्ति पर तिरंगा लगे.

जोधपुर. देश को आजादी असंख्य लोगों के बलिदान से मिली थी लेकिन इनमे कई नाम गुमनाम ही रह गए. इनके संघर्ष और त्याग के बारे में बहुत से लोग जान ही नहीं सके. राजस्थान में भी ऐसे कई आंदोलनकारी थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आजादी के दीवानों में से एक जोधपुर के बाल मुकंद बिस्सा (Jodhpur freedom Fighter) भी हैं जिन्होंने अंग्रेजों व तत्कालीन सरकार के अत्याचार सहते हुए देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. बिस्सा परिवार का कलकत्ता में रेशमी वस्त्रों का बड़ा व्यापार था. वे मूलत नागौर जिले के डीडवाना के रहने वाले थे.

जोधपुर में आकर उन्होंने व्यापार शुरू किया लेकिन उनपर गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन का इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी दुकान के कपड़ों की होली जलाई. और तो और पत्नी के रेशमी वस्त्रों को भी उन्होंने जला दिया और फिर खादी धारण कर लिया. इतना ही नहीं वह खादी बेचने के लिए खुद ठेला लेकर घूमते थे. इसके साथ ही बिस्सा आजादी के आंदोलन में कूद पडे़. पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में उत्तरदायी शासन की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए. 1940 में मारवाड़ में आततायी शासन को लेकर आंदेालन तेज हो गए थे. जयनारायण व्यास मथुरादास माथुर जैसे नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. बालमुकंद बिस्सा को जेल से बाहर आंदोलन चलाने की जिम्मेदारी दी गई जिसके चलते उनको भी गिरफ्तार किया गया. तीन माह तक जेल में रखने के बाद सरकार से समझौते के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

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बिस्सा ने जेल में किया आमरण अनशन, लाठियां मिलीं
1942 की शुरुआत से ही देश में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के प्रयास तेज हो गए थे. गांधी ने बडे़ आंदोलन के लिए रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी थी. अगस्त में कांग्रेस के अधिवेशन से पहले ही इस पर चर्चा होनी शुरू हो गई, लेकिन मारवाड़ में मई 1942 में आंदोलन का बिगुल बज गया. जयनारायण व्यास सहित कई लोग गिरफ्तार हो चुके थे. अत्याचार के विरोध में बिस्सा ने जेल के बाहर अनशन शुरू कर दिया. इसपर उन्हें भी जेल में डाल दिया गया. जेल में भी आंदोलन हुआ. बंदियों ने सरकार से मांग रखी कि उन्हें कोठरी के बजाय खुले में रखा जाए. इसको लेकर बिस्सा अनशन करने लगे जिसे दबाने के लिए बंदियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. करीब दस दिन से भूखे बिस्सा उनके निशाने पर थे. उन्हें लाठियां मारी गईं जिससे सिर में गहरी चोटें आईं, लेकिन समय से अस्पताल तक नहीं ले जाया गया. बाद में हालत खराब होने पर जब अस्पताल ले गए तब तक उनकी मृत्यु हो गई.

आजादी के सुपर हीरो बाल मुकुंद बिस्सा

बिस्सा की शवयात्रा में जमकर हुआ हंगामा, जुटी थी हजारों की भीड़
बालमुकंद बिस्सा का शव तत्कालीन विंडम अस्पताल जो अब महात्मा गांधी अस्पताल है, वहां रखा गया था. जनता को इसकी जानकारी मिलते ही लोग एकत्र होने लगे. शवयात्रा निकलाने की तैयारी की जानकारी सरकार को लगी तो जोधपुर में आने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए. इससे लोग और ज्यादा क्रोधित हो गए. सरकार ने आदेश दिया कि शहर की बजाय बाहर के रास्ते से चांदपोल श्मशान तक शव ले जाना होगा. नाराज लोगों ने तोड़फोड़ करना शुरू कर दी. सोजती गेट जलाने के प्रयास हुए. पुलिस ने लाठी चार्ज और फायरिंग भी की लेकिन लोग जुटे रहे. बुजुर्गों की समझाइश पर गतिरोध खत्म हुआ तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार हुआ. कहा जाता है कि बिस्सा की अंतिम यात्रा में जो भीड़ जुटी थी वह अकल्पनीय थी.

पढ़ें. आजादी के सुपर हीरो: अजमेर में क्रांति की अलख जगा कर अंग्रजों की उड़ाई थी नींद...ऐसे थे क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी

इंदिरा गांधी ने बनवाया था बिस्सा का स्मारक, अधिवेशन में द्वार बनाया
बिस्सा के पौत्र सुरेश बिस्सा बताते हैं कि 1908 में जन्मे बालमुकंद बिस्सा ने 34 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपना बलिदान दिया था. इसकी जानकारी कांग्रेस में सभी के पास पहुंची. अखबारों में गांधी सहित सभी नेताओं ने प्रतिक्रियाएं दीं. कांग्रेस के गांधी नगर अधिवेशन में शहीद बाल मुकंद बिस्सा को सम्मान देने के लिए उनके नाम का द्वार बनाया गया. आजादी के बाद जब इंदिरा गांधी पीएम बनी तो उन्होंने जोधपुर में बाल मुकंद बिस्सा का स्मार्क शहर की प्रमुख जगह पर बनाने के निर्देश दिए जिसके बाद जालौरी गेट पर उनकी मूर्ति लगाई गई. उन्होंने बताया कि दादा के खादी के आह्वान का उनकी दादी ने जीवन पर्यंत पालन किया. आजादी के बाद भी वह खादी ही पहनती थीं.

अत्याचार से व्यथित होकर बने आंदोलन कारी
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागध्यक्ष डॉ एसपी व्यास बताते हैं कि अपना पुश्तैनी काम छोड़ कर बिस्साजी खादी के काम से जुड़ गए थे. 1936 में खादी भंडार की स्थापना की. मारवाड़ में जनचेतना बढ़ने लगी थी. इसके चलते तत्कालीन रियासत की सरकार और अंग्रेज दमन पर उतर आए थे. 1934 मे प्रजामंडल का गठन हुआ. बिस्सा उसमें कार्यकर्ता बन गए. दूसरी ओर सरकार और जागीरदारों के अत्याचार बढ़ रहे थे. अंग्रेजों के इशारे पर उत्पीड़न चल रहा था.

पढ़ें. आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

1936 में कराची में देशी राज्य लोक परिषद का अधिवेशन हुआ उसमें भी बिस्सा ने भाग लिया. इस बीच तत्कालीन मारवाड़ सरकार ने आदेश जारी कर आठवीं से कॉलेज की फीस में वृद्धि कर दी. बिस्सा ने इसका विरोध किया. इसके बाद वे जनता से जुड़ी समस्याओं को लेकर आंदोलनरत रहे. एक प्रस्ताव पारित कर उन्होंने सरकार के कार्यकमों में भाग नहीं लेने के आह्वान किया. 1938 में जोधपुर आए सुभाष चंद्र बोस से मिले और हालात बताए. बोस के आने से पहले सरकार ने कांग्रेस का झंडा फहराने पर रोक लगा दी, लेकिन उसने अपनी खादी की दुकान पर झंडा लगाया जिसको लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई हुई. उनकी दुकान आंदोलनकारियों की बैठक बन गई थी.

आज स्मारक है प्रतिबंधित
बालमुकंद बिस्सा का बलिदान व्यर्थ नहीं गया. देश को आजादी मिली. उनके सम्मान में स्मारक भी बनाया गया. शुरुआत में यह एक उद्यान के रूप में विकसित हुआ. समय के साथ यातायात का दबाव बढ़ने से इसे छोटा किया गया, लेकिन वर्तमान में इस स्मारक के सर्किल में प्रवेश पर पाबंदी लगी है. दो माह पहले इसलिए बालमुकंद बिस्सा का नाम चर्चा में आया था क्योंकि दो मई की रात व तीन मई की सुबह साप्रदायिक तनाव हो गया था जिसके बाद इसे प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया. दो मई की रात बिस्सा की मूर्ति पर धर्म विशेष का झंडा लगाने से बवाल भी हुआ था. दस दिन कर्फ्यू भी लगा था. अब सिर्फ यहां तिरंगा लगता है. बिस्सा के परिजन भी यही चाहते हैं कि उनकी मूर्ति पर तिरंगा लगे.

Last Updated : Aug 9, 2022, 8:02 AM IST
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