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स्पेशल: दम तोड़ती बहरूपिया कला, कलाकार ने कहा- साहब इस काम में अब न इज्जत है और न पैसा

राजस्थान की प्रसिद्ध परंपरागत कलाओं में से एक है बहरूपिया कला. लेकिन, अब यह कला अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. हो सकता है शायद अगली दो-तीन पीढ़ी बाद यह कला पूरी तरह से विलुप्त ही हो जाए.

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अब बहरूपियों को नहीं मिलता उचित सम्मान
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Published : Jan 28, 2020, 11:03 AM IST

भोपालगढ़ (जोधपुर). राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जो अपनी कला और संस्कृति को सहेजने में कामयाब रहा है. लेकिन अब जाकर ऐसा लगने लगा है कि इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया के युग में विभिन्न कलाओं को सहेज पाना मुश्किल हो जाएगा.

अब बहरूपियों को नहीं मिलता उचित सम्मान

राजस्थान की प्रसिद्ध परंपरागत कलाओं में से एक है बहरूपिया कला. लेकिन, अब यह कला अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. हो सकता है शायद अगली दो-तीन पीढ़ी बाद यह कला पूरी तरह से विलुप्त ही हो जाए.

यह भी पढ़ेंः रेलवे ने बढ़ाए ट्रेनों के डिब्बें, यात्रियों को मिलेगी राहत

ईटीवी ने जब इन कलाकारों से बात की तो उन्होंने भीगी आंखों के साथ लड़खड़ाती ज़ुबान में कहा, "साहब इस काम में अब न इज्जत है, और न पैसा." बहरूपिया कलाकारों पर अब रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है. राजे-रजवाड़ो के समय इन्हें उचित मान-सम्मान मिलता था. लेकिन, अब स्थिति ये है कि लोग इन्हें भिखारी तक कह देते हैं. लोगों का तंज होता है, "मेहनत मजदूरी करके कुछ कमाओ, ऐसे भीख मांगने से कुछ नहीं होगा."

यह भी पढ़ेंः हाल-ए-मौसम: 12 से अधिक शहरों का तापमान 25 डिग्री के पार, Yellow alert भी जारी

धार्मिक सौहार्द के प्रतीक होते हैं बहरूपिये...

एक बहरूपिया अपनी कला के जरिए समाज में सौहार्द का भी संदेश देता है. इन कलाकारों में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं. मगर वे कला को मजहब की बुनियाद पर विभाजित नहीं करते. एक मुसलमान बहरूपिया कलाकार हिंदू देवी-देवताओं का रूप धारण करने में संकोच नहीं करता तो हिंदू भी पीर, फकीर या बादशाह बनने में गुरेज नहीं करते.

भोपालगढ़ (जोधपुर). राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जो अपनी कला और संस्कृति को सहेजने में कामयाब रहा है. लेकिन अब जाकर ऐसा लगने लगा है कि इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया के युग में विभिन्न कलाओं को सहेज पाना मुश्किल हो जाएगा.

अब बहरूपियों को नहीं मिलता उचित सम्मान

राजस्थान की प्रसिद्ध परंपरागत कलाओं में से एक है बहरूपिया कला. लेकिन, अब यह कला अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. हो सकता है शायद अगली दो-तीन पीढ़ी बाद यह कला पूरी तरह से विलुप्त ही हो जाए.

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ईटीवी ने जब इन कलाकारों से बात की तो उन्होंने भीगी आंखों के साथ लड़खड़ाती ज़ुबान में कहा, "साहब इस काम में अब न इज्जत है, और न पैसा." बहरूपिया कलाकारों पर अब रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है. राजे-रजवाड़ो के समय इन्हें उचित मान-सम्मान मिलता था. लेकिन, अब स्थिति ये है कि लोग इन्हें भिखारी तक कह देते हैं. लोगों का तंज होता है, "मेहनत मजदूरी करके कुछ कमाओ, ऐसे भीख मांगने से कुछ नहीं होगा."

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धार्मिक सौहार्द के प्रतीक होते हैं बहरूपिये...

एक बहरूपिया अपनी कला के जरिए समाज में सौहार्द का भी संदेश देता है. इन कलाकारों में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं. मगर वे कला को मजहब की बुनियाद पर विभाजित नहीं करते. एक मुसलमान बहरूपिया कलाकार हिंदू देवी-देवताओं का रूप धारण करने में संकोच नहीं करता तो हिंदू भी पीर, फकीर या बादशाह बनने में गुरेज नहीं करते.

Intro:बहरूपिया कला को सरकार के संरक्षण की जरूरत हैBody:राजस्थान की परंपरागत कला बहरूपिया कला धीरे-धीरे हो रही लुप्त, गांवों में अभी भी जीवित है बहरूपिया कला, सोशल मीडिया व यूट्यूब से बहरूपिया कला को लोग कम देख रहे, अपनी रोटी रोजी के जुगाड़ के लिए बेहरूपिया बनाते हुए विभिन्न रूपConclusion:SPECIAL---सोशल मीडिया से बहरूपिया का रोजगार हुआ कम
राजस्थान की परंपरागत कलाओं में प्रसिद्ध थी बहरूपिया कला

गांवों में आज भी जीवित बहरूपिया कला
भोपालगढ़ ।
राजस्थान भारत का विविधताओं में अनेकता वाला, परंपरागत त्योहारों को मनाने वाला व परंपरागत कलाओं को संरक्षण देने वाला प्रदेश के नाम से जाना जाता है। ऐसे में गांवों में आज भी अपना रुप बदल कर अलग -अलग तरीके के नागरिक बनने की कला आज भी जीवित दिखाई दे रही है। यह अपने पेट को पालने के लिए हर दिन सुबह व शाम चाहे भीषण गर्मी,शीतलहर की सर्दी हो या बारिश के मौसम के दौरान भी अनेक रुप अपने शरीर पर करके नागरिकों को रिझाने के अलग - अलग प्रयास करते रहते हैं। इस कला को गांवों में लोग बहरूपिया की कला के नाम से जानते हैं। वहीं सोशल मीडिया व मल्टीमीडिया फोन, यूट्यूब का ज्यादा प्रयोग होने के कारण लोगों के लिए मनोरंजन के विभिन्न साधन होने के कारण धीरे-धीरे बहरूपिया कला कम होती हुई जा रही हैं। ऐसे में अब रोजगार का भी बहरूपिया के सामने संकट पैदा होने लगा है।
कस्बे में जब भी बहरूपिया आता है ।तो छोटे बच्चे उनको देखने के लिए पीछे -पीछे भागते हैं।भोपालगढ़ कस्बे में भगवान महादेव का रूप धारण कर आने पर चारों ओर उत्सुकता से लोगों ने सर्दी के मौसम में उनको गर्म दूध पिलाकर स्वागत किया। इस दौरान हर नागरिक ने अपनी ओर से बहरूपिया के रूप में आए कलाकारों को इनाम भी प्रदान किया। कस्बे के शिंभूभाई प्रजापति ने बताया कि गांवों में लोग अपने रोजी-रोटी को कमाने के लिए अनेक रुप बना कर हर दिन अलग- अलग कस्बे में अपनी कला को प्रदर्शित करने के लिए कलाकार घूमता है ।उसे बहरूपिया कहा जाता है। ईटीवी भारत से बहरूपिया के रूप में आए हुए कलाकार जितेन्द्र जिला बारां ने बताया कि अपने पेट व परिवार को पालने के लिए हमें हर रोज अलग -अलग तरीके के कलाकार बनकर लोगों के सामने प्रदर्शन करना पड़ता है। हमारी कला को देख कर लोग हमें अपनी ओर से इनाम की राशि भेंट करते है। हम कलाकार सप्ताह के हर दिन अलग- अलग रूप धारण करते हैं। हमारी कला को ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में ही पसंद किया जाता है।

बाईट-- शिंभूभाई प्रजापत,ग्रामीण भोपालगढ़
बाईट--- मनोहर मेघवाल, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष एसपीएम कॉलेज भोपालगढ़
बाईट--- चेनाराम जाखड़, शिक्षाविद
बाईट-- जितेन्द्र, बहरूपिया,बारां
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