जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एक विस्तृत आदेश पारित करते हुए जैसलमेर की गडीसर झील की तरह ही राजस्थान की समस्त झीलों के संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने एवं झीलों-तालाबों के 30 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को नियमित नहीं करने का आदेश पारित किया है.
वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढा व न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने प्रसंज्ञान लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद विस्तृत आदेश पारित किया. जैसलमेर की गडीसर झील को संरक्षित करवाने के लिए अधिवक्ता मानस खत्री ने पैरवी की थी और राज्य सरकार ने गडीसर के जलभराव व संरक्षित क्षेत्र की सीमाए निर्धारित करते हुए गडीसर को मार्च 2021 में संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया था.
इसी तरह पूर्व में जोधपुर के प्राचीन मंदिरों एवं जलाशयों को लेकर स्वप्रेरणा से जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार के देव स्थान विभाग ने नई किराया नीति भी तैयार कर पेश की और उसे 01 अप्रैल 2021 से लागू भी कर दिया गया. प्रदेश की झीलों को संरक्षित करने के लिए जनहित याचिका पर लगातार सुनवाई जारी रही. न्यायमित्र भावित शर्मा व अधिवक्ता मानस खत्री ने न्यायालय को अपनी ओर से विस्तृत रिपोर्ट सौंपते उन झीलों की पैरवी की जिन्हें संरक्षण की आवश्यक है.
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष व्यास व सुनील बेनीवाल ने समय समय पर न्यायालय के निर्देशों की पालना की. अब न्यायालय ने विस्तृत आदेश पारित करते हुए आठ सप्ताह में अनुपालना रिपोर्ट मांगी है. राजस्थान में स्थित झीलों के संरक्षण के लिए राजस्थान झील संरक्षण एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम 2015 के प्रभाव में आने के बाद राज्य सरकार ने राज्य स्तर पर झील विकास प्राधिकरण एवं जिला स्तरीय झील संरक्षण एवं विकास प्राधिकरण बनाये थे.
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न्याायालय ने निर्देश दिया है कि प्रदेश के समस्त जिलों में जिला स्तरीय प्राधिकरण अपने अपने क्षेत्र की झीलों का सर्वेक्षण और अध्ययन कर सीमाएं, जल बहाव क्षेत्र एवं संरक्षित क्षेत्र का प्रस्ताव बनाकर राज्य स्तरीय झील विकास प्राधिकरण को छह सप्ताह में भेजेंगे. राज्य स्तरीय प्राधिकरण प्रस्ताव प्राप्त करने के चार सप्ताह में झीलों की सीमाएं और संरक्षित क्षेत्र को घोषित किये जाने के लिए राज्य सरकार को भेजेंगे और राज्य सरकार चार सप्ताह में अधिसूचना को प्रसारित कर देगी.
इसके अलावा राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि केन्द्र सरकार से समन्वय स्थापित करते हुए संरक्षित झीलों के लिए बजट आवंटित किया जाये. न्यायालय ने अपने आदेश के जरिये केन्द्र सरकार के पर्यावरण एवं वन विभाग के सचिव को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है.