जयपुर. आगामी 21 अक्टूबर को होने जा रहे खींवसर और मंडावा सीट पर उप चुनाव के लिए शनिवार शाम को प्रचार-प्रसार का शोर बंद हो जाएगा. उप चुनाव में किस के सिर जीत का सेहरा सजेगा, इसका फैसला 24 अक्टूबर को नतीजे घोषित होने के बाद ही पता चल सकेगा.
इस उप चुनाव को लेकर दोनों पार्टियां तैयार दिखाई दे रही हैं. जहां मंडावा सीट पर सत्ताधारी दल कांग्रेस अपने लिए जीत के आसार ज्यादा मानकर चल रही है. क्योंकि, मंडावा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. मंडावा राजस्थान की वह एकमात्र सीट है, जिसने राजस्थान कांग्रेस को तीन अध्यक्ष दिए हैं.
क्षेत्र से पहले अध्यक्ष मंडावा विधानसभा के हनुमानपुरा दुल्हनों का बास के रहने वाले सरदार हरलाल सिंह रहे. हालांकि, सरदार हरलाल सिंह ने मंडावा विधानसभा से चुनाव नहीं लड़ा और वह झुंझुनू जिले की चिड़ावा और नवलगढ़ से विधायक रहे थे. इसके बाद दूसरे नंबर पर आता है चौधरी राम नारायण का नाम. जो मंडावा विधानसभा के हेतमसर गांव के रहने वाले थे. चौधरी रामनारायण ने मंडावा को ही अपनी कर्म स्थली बनाया और 7 बार इसी सीट से विधायक बने. शायद यही कारण है कि मंडावा को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है.
वहीं राम नारायण चौधरी ने अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी रीटा चौधरी को सौंपी और साल 2008 में उनकी बेटी रीटा चौधरी भी इस सीट से विधायक बनीं. हालांकि, साल 2013 और साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से फिसल गई. अब आगामी उप चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रीटा चौधरी पर अपना दांव खेला है.
मंडावा से एक और बड़े नेता है डॉ. चंद्रभान. जिन्होंने क्षेत्र में कांग्रेस का आधार बनाया है. चंद्रभान मंडावा विधानसभा के जयसिंहपुरा के रहने वाले हैं, उन्होंने जनता दल में रहते हुए मंडावा सीट से चुनाव जीता था. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा लिया और कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए 2013 में मंडावा से टिकट मिला, जिसमें वे चुनाव हार गए थे.
इस तरह कहा जा सकता है कि आज तक हुए चुनावों में मंडावा सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं मंडावा ने कांग्रेस को तीन प्रदेश अध्यक्ष भी दिए हैं. ऐसे में कांग्रेस अपने इन तीन दिग्गजों की साथ के नाम पर और अपने पुराने घर को वापस जीतने के लिए जोर-आजमाइश कर रही है. हालांकि, हार-जीत का फैसला 24 अक्टूबर को ही सामने आ पाएगा.