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जोधपुरः टिड्डियों का खात्मा करने वाले कर्मचारियों पर हो रहा कीटनाशक का दुष्प्रभाव

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Published : Feb 11, 2020, 7:50 PM IST

राजस्थान में टिड्डियों के हमले को रोकने के लिए किए गए भारी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग किया गया, लेकिन इसका असर अब इसे उपयोग करने वाले कर्मचारियों पर पड़ने लगा है. इन कर्मचारियों को आंखो सहित चर्म रोग जैसी बीमारियां होने की आशंका बढ़ गई है.

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टिड्डियों का सफाया करने वाले कर्मचारी खुद हो रहे बीमार

जोधपुर. प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में गत 9 माहिनों से हो रहे टिड्डी दलों के हमलों से दो-दो हाथ कर रहे टिड्डी चेतावनी संगठन के तकनीकी कर्मचारियों पर खतरा मंडराने लगा है. इस कार्य के लिए काम मे लिए जा रहे पेस्टिसाइड्स के दुष्प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है.

टिड्डियों का सफाया करने वाले कर्मचारी खुद हो रहे बीमार

दरअसल, जोधपुर स्थित टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के कई तकनीशियनों के शरीर में एसिटाइल कॉलिन एंजाइम बढ़ने गया है, जिससे मस्तिष्क विकार से संबंधित और आंखों में दिक्कत की शिकायतें मिल रही हैं. यह परेशानी मैलाथिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड के उपयोग से हो रही है. जिसका सीधा असर मस्तिष्क क्रियाओं पर होता है.

यह भी पढे़ं- बूंदीः बुजुर्ग के साथ दो युवकों ने की ठगी, दो सोने की मुरकियां समेत एक हजार ले उड़े

सैंपल भेजे जाएंगे ग्वालियर...

एसिटाइल कॉलिन एंजाइम की जांच जोधपुर में नहीं होती है. ऐसे में एलडब्ल्यूओ की ओर से केंद्र सरकार को इसकी सूचना देने पर ग्वालियर से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों की टीम जोधपुर में इन कर्मचारियों के रक्त के सैंपल मथुरादास माथुर अस्पताल में ले रही है. टीम 2 से 3 दिनों में 60 से अधिक तकनीशियन के सैंपल लेकर ग्वालियार जाएगी.

टिड्डी चेतावनी संगठन के उपनिदेशक डॉ. के एल गुर्जर ने बताया कि जांच रिपोर्ट के बाद तकनीशियनों का इलाज किया जाएगा. संगठन के कर्मचारी ओमप्रकाश के मुताबिक आंखों की परेशानी के साथ-साथ स्किन पर प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही कुछ लोगों की बॉडी लैंग्वेज बदल गई है. इससे पहले लगातर काम कर रहे एक कर्मचारी को हार्ट की परेशानी हुई, जबकि संगठन के कई ड्राइवर की तबियत बिगड़ने पर इलाज के लिए भेजा जाता रहा है.

आंखों पर पड़ रहा प्रभाव...

संगठन के अन्य कर्मचारी प्रमोद गौड़ बताते है कि आंखों की परेशानी ज्यादा है. इसके अलावा थकावट महसूस होने लगी है. गौड़ का कहना है कि, विपरीत हवा के दौरान आए टिड्डी दल को नियंत्रित करने के लिए जब पेस्टिसाइड्स का छिड़काव होता है, तो ज्यादा खतरनाक साबित होता है. एमडीएम अस्पताल के नेत्र रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद चौहान का कहना है कि, कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें दिखना कम हो रहा है. हम इनकी जांच कर रहे हैं.

यह भी पढे़ं- स्पेशल: सत्ता बदलने वाली सड़कों में सियासत के 'हिचकोले'

हिटलर ने किया था प्रयोग...

मेथालिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड का इतिहास बहुत बुरा है. दूसरे विश्व युद्ध में इसका प्रयोग हिटलर ने किया था. इसे नर्व एजेंट के नाम से भी जाना जाता है. जिसका सीधा असर मस्तिष्क पर होता है. इसके दुष्प्रभाव से आंख की पुतली छोटी हो जाती है. ऑर्गेनोफास्फेट के अत्यधिक उपयोग से लकवा, कोमा, स्मृति दोष, दृष्टिदोष हो सकता है.

26 साल बाद हुआ भारी उपयोग...

राजस्थान में करीब साल बाद टिड्डियों का इतना बड़ा हमला हुआ है. इससे निपटने के टिड्डी चेतावनी संगठन के 100 से भी ज्यादा तकनीशियन अब तक 3 लाख लीटर से अधिक मैलाथिन पेस्टीसाइड का उपयोग कर चुके हैं. यह हमला पिछले साल 21 मई को हुआ था, जो अभी तक जारी है

जोधपुर. प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में गत 9 माहिनों से हो रहे टिड्डी दलों के हमलों से दो-दो हाथ कर रहे टिड्डी चेतावनी संगठन के तकनीकी कर्मचारियों पर खतरा मंडराने लगा है. इस कार्य के लिए काम मे लिए जा रहे पेस्टिसाइड्स के दुष्प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है.

टिड्डियों का सफाया करने वाले कर्मचारी खुद हो रहे बीमार

दरअसल, जोधपुर स्थित टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के कई तकनीशियनों के शरीर में एसिटाइल कॉलिन एंजाइम बढ़ने गया है, जिससे मस्तिष्क विकार से संबंधित और आंखों में दिक्कत की शिकायतें मिल रही हैं. यह परेशानी मैलाथिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड के उपयोग से हो रही है. जिसका सीधा असर मस्तिष्क क्रियाओं पर होता है.

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सैंपल भेजे जाएंगे ग्वालियर...

एसिटाइल कॉलिन एंजाइम की जांच जोधपुर में नहीं होती है. ऐसे में एलडब्ल्यूओ की ओर से केंद्र सरकार को इसकी सूचना देने पर ग्वालियर से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों की टीम जोधपुर में इन कर्मचारियों के रक्त के सैंपल मथुरादास माथुर अस्पताल में ले रही है. टीम 2 से 3 दिनों में 60 से अधिक तकनीशियन के सैंपल लेकर ग्वालियार जाएगी.

टिड्डी चेतावनी संगठन के उपनिदेशक डॉ. के एल गुर्जर ने बताया कि जांच रिपोर्ट के बाद तकनीशियनों का इलाज किया जाएगा. संगठन के कर्मचारी ओमप्रकाश के मुताबिक आंखों की परेशानी के साथ-साथ स्किन पर प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही कुछ लोगों की बॉडी लैंग्वेज बदल गई है. इससे पहले लगातर काम कर रहे एक कर्मचारी को हार्ट की परेशानी हुई, जबकि संगठन के कई ड्राइवर की तबियत बिगड़ने पर इलाज के लिए भेजा जाता रहा है.

आंखों पर पड़ रहा प्रभाव...

संगठन के अन्य कर्मचारी प्रमोद गौड़ बताते है कि आंखों की परेशानी ज्यादा है. इसके अलावा थकावट महसूस होने लगी है. गौड़ का कहना है कि, विपरीत हवा के दौरान आए टिड्डी दल को नियंत्रित करने के लिए जब पेस्टिसाइड्स का छिड़काव होता है, तो ज्यादा खतरनाक साबित होता है. एमडीएम अस्पताल के नेत्र रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद चौहान का कहना है कि, कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें दिखना कम हो रहा है. हम इनकी जांच कर रहे हैं.

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हिटलर ने किया था प्रयोग...

मेथालिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड का इतिहास बहुत बुरा है. दूसरे विश्व युद्ध में इसका प्रयोग हिटलर ने किया था. इसे नर्व एजेंट के नाम से भी जाना जाता है. जिसका सीधा असर मस्तिष्क पर होता है. इसके दुष्प्रभाव से आंख की पुतली छोटी हो जाती है. ऑर्गेनोफास्फेट के अत्यधिक उपयोग से लकवा, कोमा, स्मृति दोष, दृष्टिदोष हो सकता है.

26 साल बाद हुआ भारी उपयोग...

राजस्थान में करीब साल बाद टिड्डियों का इतना बड़ा हमला हुआ है. इससे निपटने के टिड्डी चेतावनी संगठन के 100 से भी ज्यादा तकनीशियन अब तक 3 लाख लीटर से अधिक मैलाथिन पेस्टीसाइड का उपयोग कर चुके हैं. यह हमला पिछले साल 21 मई को हुआ था, जो अभी तक जारी है

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Body:टिड्डियों का सफाया करने वाले हो रहे पेस्टिसाइड्स के दुष्प्रभाव का शिकार
जोधपुर।

प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में गत 9 माह से हो रहे टिड्डी दलों के हमलों से दो-दो हाथ कर रहे टिड्डी चेतावनी संगठन के तकनीकी कर्मचारियों पर इस कार्य के लिए काम मे लिए जा रहे पेस्टिसाइड्स के दुष्प्रभाव की आशंका गहरा गई है। जोधपुर स्थित टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के कई तकनीशियनों के शरीर में एसिटाइल कॉलिन एंजाइम बढ़ने गया है, जिससे मस्तिष्क विकार से संबंधित व आंखों में दिक्कत शिकायतें मिल रही हैं। यह परेशानी मैलाथिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड के उपयोग से हो रही है। जिसका सीधा असर मस्तिष्क क्रियाओं पर होता है। एसिटाइल कॉलिन एंजाइम की जांच जोधपुर में नही होती है ऐसे में  एलडब्ल्यूओ द्वारा केंद्र सरकार को इसकी सूचना देने पर ग्वालियर से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों की टीम जोधपुर में इन कर्मचारियों के रक्त के सैंपल मथुरादास माथुर अस्पताल में ले रही हैI टीम दो से तीन दिनों में 60 से अधिक तकनीशियन के सैंपल लेकर ग्वालियार जाएगी। टिड्डी चेतावनी संगठन के उपनिदेशक डॉ के एल गुर्जर ने बताया कि 

जांच रिपोर्ट के बाद तकनीशियनो का इलाज किया जाएगा। संगठन के कर्मचारी ओमप्रकाश के मुताबिक आंखों की परेशानी के साथ साथ स्किन पर प्रभावित हो रही है। बॉडी लैंग्वेज कुछ लोगों की बदल गई है। इससे पहले लगातर काम कर रहे एक कर्मचारी को हार्ट की परेशानी हुई जबकि संगठन के कई ड्राइवर की तबियत बिगड़ने पर इलाज के लिये भेजा जाता रहा है।

संगठन के अन्य कर्मचारी प्रमोद गौड़ बताते है कि आंखों की परेशानी ज्यादा है। इसके अलावा थकावट महसूस होने लगी है। गौड़ का कहना है विपरीत हवा के दौरान आये टिड्डी दल को नियंत्रित करने के लिए जब पेस्टिसाइड्स का छिड़काव होता है तो ज्यादा खतरनाक साबित होता है। एमडीएम अस्पताल के नेत्र रोग के विभागाध्यक्ष डॉ अरविंद चौहान का कहना है कि कर्मचारियों की शिकायत है कि उन्हें दिखना कम हो रहा है। हम इनकी जांच कर रहे है। 


हिटलर ने लिया था प्रयोग


मेथालिन ऑर्गेनाफोस्फेट पेस्टीसाइड का इतिहास बहुत बुरा है। दूसरे विश्व युद्ध मे इसका प्रयोग हिटलर ने किया था। इसे नर्व एजेंट के नाम से भी जाना जाता है। इसका असर मस्तिष्क पर होता है 

इसके दुष्प्रभाव से आंख की पुतली छोटी हो जाती है।ऑर्गेनोफास्फेट के अत्यधिक उपयोग से लकवा, कोमा, स्मृति दोष, दृष्टिदोष हो सकता है। 


 26 साल बाद हुआ भारी उपयोग

 राजस्थान में करीब साल बाद टिड्डियों का इतने बड़े हमले हुए है। इससे निपटने के टिड्डी चेतावनी संगठन के 100 सब ज्यादा तकनीशियन अब तक 3 लाख लीटर से अधिक मैलाथिन पेस्टीसाइड का उपयोग कर चुके हैं।  गत वर्ष पहले हमला 21 मई को हुआ था। जो अभी तक जारी है

bite 1 ओमप्रकाश, कर्मचारीटिड्डी चेतावनी संगठन
bite 2 प्रमोद गोड़, कर्मचारीटिड्डी चेतावनी संगठन
बाईट 3 डॉ अरविंद चौहान, एचओडी नेत्र विभाग
बाईट 4 डॉ केएल गुर्जर, उपनिदेशक टिड्डी चेतावनी संगठन




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