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जोधपुर की IIT रिसर्च टीम का कमाल, राजस्थानी मिट्टी और आर्गेनिक वेस्ट को मिलाकर बनाया Biofuel - राजस्थानी मिट्टी से बना बायोफ्यूल

जोधपुर आईआईटी (IIT) की रिसर्च टीम ने ऑर्गेनिक वेस्ट और राजस्थानी मिट्टी से ऐसा बायोफ्यूल तैयार किया है जो डीजल ग्रेड का है, लेकिन डीजल से सस्ता है. इस बायोफ्यूल को घरों के कचरे से बनाया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इस बायोफ्यूल से सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियां भी नजर आएंगी.

जोधपुर की IIT रिसर्च टीम, Jodhpur IIT Research Team
IIT की टीम ने ऑर्गेनिक वेस्ट से बनाया बायोफ्यूल
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Published : Jul 7, 2020, 4:19 PM IST

जोधपुर. अक्सर यह सुनने को मिलता है कि, निकट भविष्य में कचरे से ईंधन बनेगा और इसी ईंधन से गाड़ियां भी चलेंगी. हालांकि इसे लेकर धरातल पर बहुत कम चीजें निकल कर आती हैं. लेकिन जोधपुर आईआईटी (IIT) की रिसर्च ने इस काम को और मजबूती दी है. जिससे संभवत आने वाले समय में कचरे से बने ईंधन से सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियां भी नजर आएंगी. खास बात यह है कि जोधपुर आईआईटी के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने तो ऑर्गेनिक वेस्ट और राजस्थानी मिट्टी से ऐसा बायोफ्यूल तैयार किया है जिसकी लागत भी कम आती है और वह डीजल ग्रेड का है.

IIT की टीम ने राजस्थानी मिट्टी से बनाया बायोफ्यूल

घरेलू कचरे से बना बायोफ्यूलः

हमारे घरों में बचे वेस्ट ऑयल, सूखी रोटी, सब्जी के छिलके और खेत की खरपतवार जिसे बेकार समझ कर बाहर फेंक दिया जाता है, इनका इस्तेमाल कर के जोधपुर आईआईटी के केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने बायोफ्यूल तैयार किया है.

कचरे से बायोफ्यूल, biofuel from Waste material
आरएससी जनरल सस्टेनेबल एनर्जी एंड फ्यूल्स के कवर पेज पर मिली जगह

पढ़ेंः COVID-19 : प्रदेश में 234 नए पॉजिटिव केस, बीते 12 घंटों में 4 की मौत, एक्टिव केस बढ़े

प्रोफेसर डॉ. शर्मा की इस रिसर्च को केमिस्ट्री वर्ल्ड के जाने माने रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के प्रख्यात आरएससी जनरल सस्टेनेबल एनर्जी एंड फ्यूल्स के कवर पेज पर जगह दी गई है. इस रिसर्च का पेटेंट भी फाइल किया है जो जल्द ही मिल जाएगा. डॉ. शर्मा के अनुसार इसमें उत्प्रेरक विधि का इस्तेमाल किया गया है.

कचरे से बायोफ्यूल, biofuel from Waste material
जोधपुर की IIT रिसर्च टीम

डीजल से सस्ता बायोफ्यूलः

आर्गेनिक वेस्ट के साथ-साथ इसमें राजस्थानी मिट्टी का भी उपयोग किया गया है. बेकार समझे जाने वाली चीजों को डॉ. शर्मा ने अपनी लैब में एकत्र कर उत्प्रेकर विधि से यह कारनामा किया है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जो डीजल की जगह बायोफ्यूल उपलब्ध है वे काफी महंगे हैं. लेकिन इस विधि से जो बायोफ्यूल बनाया है वह सस्ता है. क्योंकि इस प्रोसेस में 250 डिग्री सेल्सियस पर ही प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है.

पढ़ेंः कोरोना से जंग: लोगों को जागरूक करने के लिए नागौर में प्रदर्शनी का आगाज

लेकिन अन्य रिसर्च में हाई टेम्प्रेचर की जरूरत पड़ती है, जो 500 डिग्री सेल्सियस तक होता है. इससे लागत बढ़ जाती है. डॉ. शर्मा ने यह शोध कार्य भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सहयोग से नेशनल बायो-एनर्जी मिशन के तहत शोधार्थी डॉ. कृष्णा प्रिया के सहयोग से पूरा किया है.

जोधपुर. अक्सर यह सुनने को मिलता है कि, निकट भविष्य में कचरे से ईंधन बनेगा और इसी ईंधन से गाड़ियां भी चलेंगी. हालांकि इसे लेकर धरातल पर बहुत कम चीजें निकल कर आती हैं. लेकिन जोधपुर आईआईटी (IIT) की रिसर्च ने इस काम को और मजबूती दी है. जिससे संभवत आने वाले समय में कचरे से बने ईंधन से सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियां भी नजर आएंगी. खास बात यह है कि जोधपुर आईआईटी के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने तो ऑर्गेनिक वेस्ट और राजस्थानी मिट्टी से ऐसा बायोफ्यूल तैयार किया है जिसकी लागत भी कम आती है और वह डीजल ग्रेड का है.

IIT की टीम ने राजस्थानी मिट्टी से बनाया बायोफ्यूल

घरेलू कचरे से बना बायोफ्यूलः

हमारे घरों में बचे वेस्ट ऑयल, सूखी रोटी, सब्जी के छिलके और खेत की खरपतवार जिसे बेकार समझ कर बाहर फेंक दिया जाता है, इनका इस्तेमाल कर के जोधपुर आईआईटी के केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने बायोफ्यूल तैयार किया है.

कचरे से बायोफ्यूल, biofuel from Waste material
आरएससी जनरल सस्टेनेबल एनर्जी एंड फ्यूल्स के कवर पेज पर मिली जगह

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प्रोफेसर डॉ. शर्मा की इस रिसर्च को केमिस्ट्री वर्ल्ड के जाने माने रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के प्रख्यात आरएससी जनरल सस्टेनेबल एनर्जी एंड फ्यूल्स के कवर पेज पर जगह दी गई है. इस रिसर्च का पेटेंट भी फाइल किया है जो जल्द ही मिल जाएगा. डॉ. शर्मा के अनुसार इसमें उत्प्रेरक विधि का इस्तेमाल किया गया है.

कचरे से बायोफ्यूल, biofuel from Waste material
जोधपुर की IIT रिसर्च टीम

डीजल से सस्ता बायोफ्यूलः

आर्गेनिक वेस्ट के साथ-साथ इसमें राजस्थानी मिट्टी का भी उपयोग किया गया है. बेकार समझे जाने वाली चीजों को डॉ. शर्मा ने अपनी लैब में एकत्र कर उत्प्रेकर विधि से यह कारनामा किया है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जो डीजल की जगह बायोफ्यूल उपलब्ध है वे काफी महंगे हैं. लेकिन इस विधि से जो बायोफ्यूल बनाया है वह सस्ता है. क्योंकि इस प्रोसेस में 250 डिग्री सेल्सियस पर ही प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है.

पढ़ेंः कोरोना से जंग: लोगों को जागरूक करने के लिए नागौर में प्रदर्शनी का आगाज

लेकिन अन्य रिसर्च में हाई टेम्प्रेचर की जरूरत पड़ती है, जो 500 डिग्री सेल्सियस तक होता है. इससे लागत बढ़ जाती है. डॉ. शर्मा ने यह शोध कार्य भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सहयोग से नेशनल बायो-एनर्जी मिशन के तहत शोधार्थी डॉ. कृष्णा प्रिया के सहयोग से पूरा किया है.

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