जोधपुर. अक्सर यह सुनने को मिलता है कि, निकट भविष्य में कचरे से ईंधन बनेगा और इसी ईंधन से गाड़ियां भी चलेंगी. हालांकि इसे लेकर धरातल पर बहुत कम चीजें निकल कर आती हैं. लेकिन जोधपुर आईआईटी (IIT) की रिसर्च ने इस काम को और मजबूती दी है. जिससे संभवत आने वाले समय में कचरे से बने ईंधन से सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियां भी नजर आएंगी. खास बात यह है कि जोधपुर आईआईटी के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने तो ऑर्गेनिक वेस्ट और राजस्थानी मिट्टी से ऐसा बायोफ्यूल तैयार किया है जिसकी लागत भी कम आती है और वह डीजल ग्रेड का है.
घरेलू कचरे से बना बायोफ्यूलः
हमारे घरों में बचे वेस्ट ऑयल, सूखी रोटी, सब्जी के छिलके और खेत की खरपतवार जिसे बेकार समझ कर बाहर फेंक दिया जाता है, इनका इस्तेमाल कर के जोधपुर आईआईटी के केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉ. राकेश शर्मा ने बायोफ्यूल तैयार किया है.
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प्रोफेसर डॉ. शर्मा की इस रिसर्च को केमिस्ट्री वर्ल्ड के जाने माने रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के प्रख्यात आरएससी जनरल सस्टेनेबल एनर्जी एंड फ्यूल्स के कवर पेज पर जगह दी गई है. इस रिसर्च का पेटेंट भी फाइल किया है जो जल्द ही मिल जाएगा. डॉ. शर्मा के अनुसार इसमें उत्प्रेरक विधि का इस्तेमाल किया गया है.
डीजल से सस्ता बायोफ्यूलः
आर्गेनिक वेस्ट के साथ-साथ इसमें राजस्थानी मिट्टी का भी उपयोग किया गया है. बेकार समझे जाने वाली चीजों को डॉ. शर्मा ने अपनी लैब में एकत्र कर उत्प्रेकर विधि से यह कारनामा किया है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जो डीजल की जगह बायोफ्यूल उपलब्ध है वे काफी महंगे हैं. लेकिन इस विधि से जो बायोफ्यूल बनाया है वह सस्ता है. क्योंकि इस प्रोसेस में 250 डिग्री सेल्सियस पर ही प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है.
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लेकिन अन्य रिसर्च में हाई टेम्प्रेचर की जरूरत पड़ती है, जो 500 डिग्री सेल्सियस तक होता है. इससे लागत बढ़ जाती है. डॉ. शर्मा ने यह शोध कार्य भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सहयोग से नेशनल बायो-एनर्जी मिशन के तहत शोधार्थी डॉ. कृष्णा प्रिया के सहयोग से पूरा किया है.