जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक याचिका को स्वीकार करते हुए उपखंड अधिकारी पाली की ओर से सह आचार्य डॉक्टर विरेन्द्र चौधरी के निलंबन आदेश और हेड क्वार्टर बदलने के आदेश पर रोक लगा दी है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एमएस राजपुरोहित ने याचिका पेश किया.
याचिका में बताया कि, डॉक्टर विरेन्द्र चौधरी सह आचार्य जनरल मेडिसिन कॉलेज पाली की ओर से 19 मार्च 2020 को कोरोना मरीज माधोसिंह का इलाज किया था. चूंकि कोरोना बीमारी तत्कालीन समय में नई थी और अस्पताल में कार्य की अधिकता थी इस वजह से डॉक्टर ने बिना ग्लवज के कोरोना मरीज माधोसिंह का परीक्षण किया था. और 21 मार्च 2020 को डॉक्टर स्वयं बीमार हो गया.
डॉक्टर को स्वयं के बीमार होने का अंदेशा होने पर प्रिसिंपल मेडिकल कॉलेज पाली को एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया. जिसमे निवेदन किया गया कि, परिसर में पृथकवास जाना चाहता है. कोरोना टेस्ट हेतु उसका सैंपल शीघ्र लिया जाए. इस प्रार्थना पत्र के विपरित दिनांक 23 मार्च 2020 को प्रशासनिक अधिकारी उपखंड अधिकारी पाली की ओर से डॉक्टर के खिलाफ छोटी सी लापरवाही करने के संबंध में पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने और निलम्बित करने की अनुशंसा कर दी. उसी दिन 23 मार्च को ही निदेशक राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सोसायटी जयपुर की ओर से हठधर्मिता और डॉक्टर के प्रति घृणा के चलते निलम्बित करने के आदेश जारी कर दिए गए. 03 अप्रेल 2020 को निलंबन के बाद डॉक्टर का हेड क्वार्टर पाली से बाड़मेर कर दिया गया.
अधिवक्ता ने कहा कि, पूरी कार्रवाई द्वेषतापूर्ण की गई है. एकतरफा बिना किसी आधार के निलंबन किया गया न ही कोई चार्जशीट दी गई. हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिका को स्वीकार किया. साथ ही निलंबन आदेश और हेड क्वार्टर बदलने के आदेश पर रोक लगाते हुए पाली में ही बहाल करने के निर्देश जारी किए हैं.
हाइकोर्ट ने बर्खास्त सफाई कर्मचारियों को फिर से नियुक्त करने के दिए आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट में डॉ. जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की पीठ ने बुधवार को नगर निगम जोधपुर में 29 मार्च 2019 को बर्खास्त किए गए करीब 50 से अधिक सफाई कर्मचारियों को फिर से नियुक्त करने और पिछला समस्त परिलाभ भुगतान करने के निर्देश दिए. साथ ही उनकी ओर से दायर सभी 14 याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है. स्थानीय निकाय विभाग की ओर से जारी विज्ञापन संख्या 1/2018 के तहत 1 सितम्बर 2018 को नियुक्त इन सभी कर्मचारियों के खिलाफ भर्ती आवेदन में गलत सूचनाएं, जिसमें विशेष रूप से संतान से सम्बंधित गलत जानकारी पेश करने की शिकायत मिलने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं मदनलाल और अन्य की ओर से दायर 14 याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि, सफाई कर्मचारी भर्ती के लिए अप्रार्थी विभाग ने अपनी पॉलिसी बनायी हुई है. लेकिन उनको छंटनी का स्तर कुछ उदार होना चाहिए. क्योंकि यह पद सबसे पिछड़ा हुआ है. इसके दावेदारों के लिए है. इस लिए निर्णय उनके पक्ष में होना चाहिए जो कि, सरकारी नौकरी की अंतिम पायदान पर है.
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वहीं अप्रार्थी नगर निगम की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता सुनील पुरोहित ने कहा कि, बर्खास्त किए गए कर्मचारियों ने गलत शपथ पत्र दाखिल करते हुए अपने बच्चों, वर्ग और अनुभव आदि की गलत सूचनाएं पेश की. हालांकि बाद में सरकार की ओर से नगर पालिकाओं में सफाइ कर्मचारी भर्ती नियम वर्ष 2012 के नियम 9 ए में वैसे ही ढील दे दी है, लेकिन अन्य शिकायतों के आधार पर याचिकाकर्ताओं को बर्खास्त किया जाना उचित है. इस पर कोर्ट ने यह मानते हुए आदेश दिए कि, यदि ये शिकायतें सिद्ध भी हो जाती है तो याचिकार्ताओं की फिटनेस पर असर नहीं डालता.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्तागण लोकेश माथुर, एचएस सिद्धू, रिषभ तायल, एडी उज्वल, सज्जन सिंह राजपुरोहित की ओर से झामक नागदा, एमस एस गोदारा,तिरूपति चन्द्रा, एसएस निर्बाण, अक्षय नागौरी, जीएस पंवार, मनोज जोशी और संजय पंडित ने पक्ष रखा. वहीं अप्रार्थी नगर निगम की ओर से सुनील पुरोहित ने पैरवी की.