जोधपुर. कोरोना वायरस के बाद अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा है. दोनों के बीच कॉम्पीटिशन है. वर्तमान में चीन अपने चारों ओर विवाद को जन्म दे चुका है. साउथ चाइना सी, ताईवान, भारत सभी से विवाद चल रहे हैं. वहां वामपंथी सरकार है जो सभी देशों को सिर्फ यही दिखाना चाहती है कि हम शक्तिशाली हैं.
ऐसे में भारत के साथ लद्दाख में तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि भारत अपने इंफ्रांस्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है. इसके चलते सोची समझी योजना के तहत चीन की सेना ने भारत को पिंच करने के लिए गलवान में इस घटना को अंजाम दिया है. जिसमें भारत के एक कर्नल सहित 20 जवान शहीद हो गए हैं. यह कहना है भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल शेरसिंह राठौड़ का. यह बात उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कही.
2013 से ही बढ़ रहा है विवाद
मेजर जनरल राठौड़ ने मुताबिक 2013 से ही विवाद बढ़ा है. लद्दाख में भारत अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है, जो चीन को बर्दाश्त नहीं है. यही कारण है कि वह 5 और 6 मई को पांच जगहों पर एलएसी से आगे आ गया. ये पांच सीमाएं हैं, गलवान, पेगांग झील, हॉट स्प्रिंग, गौरा और डेमचोक.
चीनी सैनिक पेगांग झील में तीन चार किलोमीटर आगे आ गए थे. गलवान में भी यही स्थिति थी. लेकिन बातचीत के बाद चीन को वापस पीछे जाना था, यही गलवान में भी तय हुआ था. चीन ने यह दर्शाया भी था कि वह पीछे जा रहा है. इसे देखने के लिए ही भारतीय सेना के कर्नल संतोष बाबू गए थे, लेकिन चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों की पीठ पर छूरा घोपने का काम किया है.
मेजर राठौड़ भारत-चीन बॉर्डर पर रह चुके हैं तैनात
मेजर जनरल राठौड़ खुद उत्तर पूर्व भारत-चीन बार्डर पर लंबे समय तक तैनात रह चुके हैं. ऐसे में उन्हें वहां की विषम परिस्थितियों की जानकारी है. उन्होंने बताया कि जहां घटना हुई, वह बहुत संकरी जगह है. चीनी सैनिक उंचाई पर थे. उनके पास कंटीले तार, बंधे हुए डंडे और रॉड थी, जिससे उन्होंने हमला किया.
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कर्नल ने बताया कि हमारे सैनिक चीन के साथ हुए समझौते के तहत हथियार का उपयोग नहीं करते है. ऐसे में कर्नल स्तर की टुकड़ी हथियार लेकर नहीं जाती है, क्योंकि एक गोली चलने से स्थितियां बदल सकती है. लेकिन फिर भी हमारे सैनिकों ने बहादुरी से मुकाबला किया. भारतीय सिपाहियों ने चीनी सैनिकों के ही साधन उनसे छीन कर उन्हें नुकसान पहुंचाया है.
क्या कहता है चीन-भारत समझौता
- भारत और चीन के बीच 5 एग्रीमेंट्स हैं.
- अगर सैनिक एलएसी पार करते हैं तो उन्हें दूसरी ओर से आगाह करने पर वापस लौटना होगा.
- अगर तनाव की स्थिति बढ़ती है तो दोनों पक्ष एलएसी पर जाकर हालातों का जायजा लेंगे.
- अगर किसी मतभेद की वजह से दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने हो जाते हैं तो उन्हें संयम रखना पड़ेगा.
- मिलिट्री एक्सरसाइज के समय यह तय है कि गलती से भी बुलेट या मिसाइल दूसरे देश की सीमा में नहीं गिरनी चाहिए.
- एलएसी के पास के 2 किमी दायरे तक फायरिंग नहीं की जा सकती.
पेट्रोलिंग के दौरान किन नियमों का होता है पालन
- पेट्रोलिंग के दौरान सेना के जवान बैनर लेकर जाते हैं. जिसका मतलब है आप इंडियन टेरिटरी में आ रहे हैं वापस चले जाइए. इस दौरान हथियार उल्टे होने चाहिए.
- नियम कहता है कि अगर पेट्रोलिंग के लिए जवान आगे बढ़ते हैं, तो उन्हें रोका नहीं जा सकता और ना ही उनका पीछा किया जा सकता है. दोनों अपनी-अपनी लाइनों तक पेट्रोलिंग कर सकते हैं.
गलवान क्यों है महत्वपूर्ण
मेजर जनरल राठौड़ बताते है कि गलवान घाटी 18 हजार फीट की उंचाई पर स्थित काराकोरम दर्रा के पास है. जिस पर भारत काबिज है. इसके आगे शक्शगम घाटी शुरू हो जाती है. जिसे पाकिस्तान ने चीन को दे दिया है. उसके आगे अक्साई चीन और देपसांग घाटी जो समतल है. यहीं चीन की चिंता का कारण है.
1962 में भी हुई थी ऐसी ही घटना
मेजर बताते हैं कि एसएसी पर साल 1962 में रेजांगला पोस्ट पर हुए युद्ध में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के 124 जवानों में से 114 जवान कुर्बान हो गए थे. इन जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था. विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों और बर्फीले मौसम के बावजूद वीर सैनिकों ने चीन की सेना का डटकर मुकाबला करते हुए उन्हें पराजित कर दिया था. लेकिन इस बार चीन ने पीठ पीछे वार किया है. जो काफी शर्मनाक है.
क्या है वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)
भारत दूसरे देशों से करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. जिन्हें 3 सेक्टर में बांटा गया है. जिसमें पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश आते हैं.
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जानकारों के मुताबिक अब तक दोनों देशों के बीच पूरी तरह से सीमांकन नहीं हो पाया है, क्योंकि दोनों के बीच सीमा को लेकर विवाद सालों से चला आ रहा है. भारत पश्चिमी सेक्टर के अक्साई चीन पर अपना दावा करता है, जो फ़िलहाल चीन के नियंत्रण में है. बता दें कि भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था.
वहीं पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है. चीन कहता है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है. चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है. वो अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी खारिज करता है.
आज तक नहीं हो पाई सीमा निर्धारित
जमीनी विवादों की वजह से आज तक दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका है. लेकिन स्थिति को कंट्रोल में रखने के लिए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा है. हालांकि अभी ये भी स्पष्ट नहीं है कि दोनों की सीमा का निर्धारित पैमाना क्या है. लेकिन दोनों ही देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं.
मेजर के मुताबिक चीन को हमेशा यह डर सताता रहता है कि अगर भारत गलवान में मजबूत होता हो जाता है तो देपसांग घाटी को खतरा हो सकता है. इसके अलावा जब से भारत ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है तब से ही अक्साई चीन लेने की मांग उठ रही है. ऐसे में चीन ऐसी हरकते करके भारत को डराने का कोशिश कर रहा है.
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मेजर जनरल बताते हैं कि भारत गलवान में 8 किलोमीटर की फीडर रोड बना रहा है. जो भारत के हिस्से में पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 के पास है. लेकिन चीन इसे अपने लिए खतरा मान रहा है.
1000 लोग थे संकरी घाटी में
मेजर जनरल राठौड़ ने बताया कि गलवान की बहुत संकरी जगह पर यह घटना हुई. वहां करीब 1 हजार लोग मौजूद थे. चीनी ऊपर की तरफ थे. उन्होंने पत्थर भी फेंके. ऐसे में संघर्ष बहुत भयानक रहा होगा. लेकिन ऐसी मिसाल कही नहीं मिलेगी, जब आपके पास हथियार नहीं हो और आप मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त करें.
चीन पूरी सीमा पर सुई चुभाता है
मेजर राठौड़ चीन सीमा पर लंबे समय तक तैनात रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह 3200 किमी की पूरी सीमा पर हमेशा तनाव देता रहा है. चीन हमेशा सोचता है कि भारत उभर रहा है, तो उसे वापस कैसे पीछे लाया जाए. भारत को दक्षिणी एशिया में कैसे नीचे दिखाया जाए. जिससे हमेशा तनाव बना रहे. चीन ऐसे हालात पैदा करना चाहता है जिससे भारत अंरराष्ट्रीय स्तर पर नीचे आ जाए और चीन को समर्थन मिल सके.
एनएसए स्तर पर हो सकती है बात
मेजर जनरल राठौड़ का कहना है कि वर्तमान में सीईओ और जनरल स्तर पर बात चल रही है. विदेश मंत्री भी बात कर रहे हैं. आगे एनएसए स्तर पर बात हो सकती है. राजनीतिक रूप से हस्तक्षेप यानी की अभी पीएम लेवल पर बात करना आवश्यक नहीं है.