जोधपुर. दिवाली भारतीय परंपरा का सबसे पुराना त्योहार है. इससे कई परंपराएं भी जुड़ी हुई है. दिवाली पर हर क्षेत्र की अपनी-अपनी परंपराएं होती है. जोधपुर में भी दीपोत्सव को लेकर एक अलग तरह की पंरपरा है. जिसका नाम है धन की पूजा.
खास बात यह है कि यह धन कोई सोना, चांदी, हीरे जवाहरात या नगदी के रूप में नहीं बल्कि मिट्टी के रूप में है. धन तेरस पर जहां लोग बाजार में बड़ी खरीद करते हैं वहीं उससे पहले जोधपुर में सुबह इस मिट्टी रूपी धन को घर ले जाते हैं और उसके बाद धनतेरस की खरीदारी करते हैं. जोधपुर के भीतरी शहर परकोटा के निवासी गोर्वधन तालाब की जमीन खोद कर मिट्टी निकालते हैं और उसे अपने घर लेकर जाते हैं.
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बरसों पहले तक इस मिट्टी रूप धन को घर ले जाने के साथ खेजड़ी वृक्ष की हरी डाली रखी जाती थी. लेकिन अब खेजड़ी लुप्त हो रही है तो प्रतिक के रूप में कंडील की पत्तियां रखी जाती है. धन लेने का सिलसिला धनतेरस के दिन अलसुबह शुरू हो जाता है. ज्यादातर पति पत्नी जोड़े से ही लेने आते हैं. इसके बाद वे घर पर पहुंचने भी सभी सदस्य इसकी पूजा करते हैं. दिवाली तक तीन दिन तक पूजा की जाती है. फिर इसे तुलसी के गमले में रखा जाता है. इसके अलावा इस मिट्टी से कुछ लड्डू बना जाते हैं. जिने पूरे साल सुरक्षित रखा जाता है और अगली धनतेरस से ठीक पहले पानी में विर्सजित कर दिया जाता है.
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इस बार दो दिन तक चलेगा सिलसिला
इस बार धनतेरस शुक्रवार से शुरू होकर शनिवार दोपहर तक रहेगी. ऐसे में दो दिन तक धन ले जाने का सिलसिला चलेगा. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन में इसे रखा जाता है. शुक्रवार को शहर के चांदपोल क्षेत्र के गोर्वधन तालाब और बगीची में अलसुबह से महिलाओं के सज-धज कर आने का क्रम शुरू हो गया.