जोधपुर. जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर लूणी विधानसभा क्षेत्र का ग्राम है सरेचा. इस गांव के रहने वाले मोहन लाल की करीब 2 माह पहले मृत्यु हो गई थी. ग्रामीणों का कहना है कि वे बीमार थे. उन्हें कोरोना हुआ या नहीं यह किसी को पता नहीं. लेकिन पांच बेटियों, एक बेटे, बूढ़ी मां और मानसिक तौर पर बीमार पत्नी का इकलौता सहारा मोहनलाल ही थे.
मोहनलाल की मौत हुई तो पूरा परिवार ही जैसे मानसिक रूप से टूट गया. दो बेटियां अपने ससुराल हैं. लेकिन 80 साल की की मां और मानसिक रूप से विक्षिप्त पत्नी और तीन बेटियां और बेटा अब भगवान भरोसे रह गए हैं.
एक बिटिया ने खोया संतुलन, जंजीर से बंधी
घर की चारदीवारी में घुट-घुट कर परिवार की एक बेटी निरमा मानसिक रूप से अवसाद में चली गई है. हालात ऐसे हो गए कि बीते 7-8 दिनों से उसे जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है. निरमा का मानसिक अवसाद चारदीवारी से बाहर आया तो गांव वालों को पता चला कि परिवार की हालत कितनी विकट है. खाने-पीने के सामान का संकट हो गया था. क्योंकि परिवार के किस सदस्य ने बाहर जाकर नहीं बताया कि हम किस स्थिति में हैं. जिसके बाद ग्रामीणों ने भोजन पानी का सामान उपलब्ध करवाया.
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लूणी उपखंड अधिकारी कार्यालय को भी सूचित किया कि एक बालिका मानसिक रूप से विक्षिप्त है. उसका उपचार करवाना है. फिलहाल अभी तक प्रशासन ने परिवार की सुध नहीं ली है. ग्रामीणों का कहना है कि हम चाहते हैं कि इस बालिका का उपचार सरकारी खर्च से हो जाए. क्योंकि इस परिवार के पास न तो बीपीएल कार्ड है और न ही किसी योजना में लाभान्वित होने साक्ष्य. यही कारण है ग्रामीण अपने इलाके में इन लोगों के लिए मदद की गुहार करने के वीडियो भेज रहे हैं. लेकिन अभी तक इनकी आवाज जिले के प्रशासन तक नहीं पहुंची है. जबकि स्थानीय पंचायत की ओर से सूचना भी दे दी गई है.
मां होते हुए भी अनाथ सी स्थिति
राजस्थान सरकार की पालनहार योजना के तहत अनाथ बच्चों को सरकार सहायता देती है. लेकिन मोहनलाल का मामला कुछ अलग है. मोहनलाल का देहांत हो गया लेकिन उसकी पत्नी जिंदा है. लेकिन वह जिंदा होते हुए भी अपने बच्चों का पालन नहीं कर सकती. क्योंकि वह खुद मानसिक रूप से बीमार है. ऐसी स्थिति में यह बच्चे मां होते हुए भी अनाथ हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या सरकार इन्हें पालनहार जैसी योजना का लाभ देगी.