जोधपुर. मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा मंदिर में जहां नवरात्र के पहले दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लंबी-लंबी कतारों से श्रद्धालुओं आते है. ऐसे में इतिहास में पहली बार बुधवार को इस मंदिर का दरवाजा श्रद्धालुओं के लिए नहीं खुला.
इतना ही नहीं नवरात्र के पहले दिन पूरा राज परिवार भी यहां मां चामुंडा की पूजा-अर्चना करता है. वह भी आज आरती में शामिल नहीं हो सके. कोरोना संकट के चलते मेहरानगढ़ पिछले 5 दिनों से पूरी तरह से बंद है. हालांकि किले में रहने वाले मंदिर के स्थाई पुजारी ने बुधवार को नवरात्र के पहले दिन मां चामुंडा की आरती की जिसका मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट ने फेसबुक पेज पर लाइव किया. जिससे कि लोगों को दर्शन हो सके.
सामान्यत नवरात्र के 9 दिन तक यहां श्रद्धालुओं को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक दर्शन के लिए प्रवेश दिया जाता है. जिसके चलते जोधपुर शहर ही नहीं आसपास के लोग भी मंदिर दर्शन के लिए आते हैं.
मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के निदेशक करणी सिंह जसोल ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि वह अपने घर पर ही मां चामुंडा की पूजा अर्चना करें और काम ना करे. जोधपुर भारत और पूरा विश्व इस संकट के दौर से सुरक्षित निकल सके. उन्होंने बताया कि यह पहला मौका है जब राज परिवार का कोई भी सदस्य नवरात्र के पहले दिन आरती में शामिल नहीं हो सका.
500 साल से चल रहा है सिलसिला
मेहरानगढ़ स्थित मंदिर में मां चामुंडा की मूर्ति साढ़े 500 साल पहले विक्रम संवत 1517 में जोधपुर के तत्कालीन शासक ने स्थापित की थी यह परिहार वंश की कुलदेवी है. जिसे राव जोधा ने भी अपने इष्ट देवी माना था. जिसके चलते पूरे मारवाड़ में मां चामुंडा के प्रति लोगों की अटूट आस्था है.
ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक के बीच जो युद्ध हुआ था. उस दौरान जोधपुर पर बम गिराया गए थे लेकिन मां चामुंडा की कृपा से जोधपुर में एक भी बम से नुकसान नहीं हुआ. इसके बाद लोगों की आस्था चामुंडा मंदिर के प्रति और अटूट हो गई.
सबसे बड़ी घटना पर भी बंद नहीं हुआ मंदिर
मेहरानगढ़ में वर्ष 2008 में भगदड़ के चलते 216 युवाओं की नवरात्र के पहले दिन मृत्यु हो गई थी, इसके अगले दिन भी मंदिर नियमित खुला था. इस घटना के बाद श्रद्धालुओं के दर्शन करने की व्यवस्था में परिवर्तन कर बैरिकेडिंग कर दी गई जिससे कि कभी हादसा नहीं हो.