जोधपुर. राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, जयपुर के आरटीआई नियमों की वैधानिकता को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. विश्वविद्यालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जांची गई उत्तर-पुस्तिकाओं की सत्यापित प्रति के लिए आवेदन की फीस 1000 रुपए निर्धारित कर रखी है. जबकि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के नियमों में आरटीआई आवेदन की फीस महज दस रुपए है.
बीएससी नर्सिंग की छात्रा विपिका की ओर से अधिवक्ता रजाक के. हैदर और सरवर खान ने रिट याचिका दायर कर कहा कि विश्वविद्यालय के नियम सूचना का अधिकार कानून की मूल भावना के खिलाफ है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने आरटीआई आवेदन की फीस मात्र 10 रुपए निर्धारित की है, जबकि विश्वविद्यालय ने इसी फीस को 100 गुना बढ़ाकर 1000 रुपए कर दिया है.
आरटीआई के तहत अपनी उत्तर-पुस्तिकाओं की प्रति चाहने वाले परीक्षार्थियों को हतोत्साहित करने और उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकार से वंचित करने की कोशिश है. आरटीआई कानून का उद्देश्य सिस्टम में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का संवर्धन करना है. यह कभी भी आय का जरिया नहीं हो सकता. आरटीआई कानून के उद्देश्यों को विफल करने वाले प्रावधान को अवैध घोषित करते हुए अपास्त किया जाए. याचिका पर प्रारम्भिक सुनवाई के बाद खण्डपीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव और लोक सूचना अधिकारी को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
दो रुपए से अधिक शुल्क वसूलना विधिविरुद्ध- हाईकोर्ट
वर्ष 2012 में अलका माटोरिया बनाम गंगासिंह विश्वविद्यालय और अन्य के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की खण्डपीठ ने यह निर्धारित किया था, कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत उत्तर-पुस्तिका की सूचना मांगने पर विश्वविद्यालय राजस्थान सूचना का अधिकार नियम, 2005 में उल्लेखित शुल्क यानी दो रुपए प्रति पेज से अधिक नहीं ले सकती.
सूचना की श्रेणी में है उत्तर-पुस्तका- सुप्रीम कोर्ट
वर्ष 2011 में सीबीएसई बनाम आदित्य बंधोपाध्याय के अहम न्यायिक दृष्टांत में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इण्डिया ने यह अभिनिर्धारित किया था कि जांची गई उत्तर-पुस्तिका आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना की श्रेणी में है. ऐसी स्थिति में आवेदक के पास अवलोकन करने अथवा उसकी प्रतिलिपि लेने के दोनों विकल्प हैं. विश्वविद्यालय उत्तर-पुस्तिका की प्रतिलिपि देने से इनकार नहीं कर सकता.