लूणी (जोधपुर). केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, काजरी में खजूर और बेर के बाद अब सब्जियों पर भी पैदावार करनी शुरू की है. इस बार काजरी में शिमला मिर्च लाल, नारंगी, पीली और चॉकलेटी रंग की 30 किस्मों में लगाई गई है. फिलहाल, सभी किस्मों पर अच्छे फल फूल आए हुए हैं. काजरी ठंडे प्रदेश (15 से 30 डिग्री तापमान) की इस फसल की रेगिस्तान में बेहतर किस्म की तलाश में जुटे हुए हैं.
काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि बेहतर किस्म किसानों को देकर थार में शिमला मिर्च की बड़े पैमाने पर खेती की जाएगी. वहीं हरी शिमला मिर्च की तुलना में रंगीन शिमला मिर्च में पोषक तत्व लगभग दोगुना होते हैं. आमतौर पर शिमला मिर्च सितंबर में लगती है, वहीं हरी शिमला मिर्च 90 दिन में आती है. रंगीन बनने में 20 से 25 दिन और लगते हैं. इस कारण रंगीन शिमला मिर्च महंगी होती है. शिमला मिर्च के पौधे की बात करें तो एक पौधे से 3-4 किलो और एक एकड़ में 35 टन शिमला मिर्च की पैदावार ले सकते हैं. साथ ही किसान 100 रुपए प्रति किलो तक होलसेल में बेच सकते हैं.
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नहीं खरीदते महंगी मिर्च
शिमला मिर्च पर शोध करने वाले वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार कहते हैं कि लोग सेब और कीवी जैसे फल 150 से 200 रुपए में खरीद लेते हैं. लेकिन शिमला मिर्च सब्जी होने के नाते महंगी नहीं खरीदते. रंगीन शिमला मिर्च एक तरह से पक्की हुई सब्जी या फल ही है, जो मीठा होता है. रंगीन शिमला मिर्च का उपयोग सलाद, सूप, पिज्जा, पास्ता, पोहा और दलिया आदि में प्रमुखता से लिया जाता है. इसमें पोषक तत्व सेब और कीवी से अधिक होते हैं. यहां की जनता और किसानों का ट्रेड बदलने की कोशिश में शिमला मिर्च पर प्रयोग किया गया है. काजरी में हरी और लाल शिमला मिर्च की 8-8, पीली की 10, नांरगी की तीन और चॉकलेटी रंग वाली शिमला मिर्च की एक प्रायोगिक तौर पर उगाई गई है.