जोधपुर. लॉकडाउन लागू होने के बाद से निजी बसों के चक्के थमे हुए हैं. बस ऑपरेटर परेशान हैं. पिछले डेढ़ माह से बसें चल नहीं रही है. वहीं इन खड़ी बसों का ऑपरेटरों को टैक्स भी चुकाना पड़ रहा है. जिससे परेशान होकर बस ऑपरेटर सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं.
राजस्थान में ऑल इंडिया परमिट की बस का प्रतिमाह 40 हजार रुपए टैक्स देना पड़ता है. चाहे बस चले या नहीं. अगर परमिट है तो ऑपरेटरों को टैक्स देना ही पड़ेगा. इसके अलावा स्टेट कैरिज की बसें जो जिले व आस पास तक संचालित होती है. उनका टैक्स किलोमीटर पर होता है लेकिन न्यूनतम पंद्रह हजार टैक्स भरना होता है. वहीं ज्यादातर ऑपरेटर दो से तीन माह का टैक्स एडवांस भरवाते हैं. जिससे कि संचालन बाधित नहीं हो.
यातायात मंत्री के सामने रखा समस्या पर नहीं बनी बात
ऑल इंडिया परमिट की अगर जोधपुर से मुंबई तक बस जाती है तो राजस्थान के अलावा गुजरात व महाराष्ट्र राज्य का टैक्स भरना हेाता है. ज्यादातर बस संचालक के एडवांस टैक्स की सीमा समाप्त हो गई. ऑपरेटर्स का कहना है कि हमने एडवांस में टैक्स भर दिया है, हमारी बसें नहीं चली. ऐसे में बसों का क्या होगा. राजस्थान सरकार ने भी अभी बसों के टैक्स माफ करने या जो भरे हुए हैं, उनकी सीमा बढ़ाने का निर्णय नहीं लिया है.जोधपुर बस ऑपरेटर्स यूनियन के उपाध्यक्ष जफर खान बताते हैं कि इसको लेकर यातायात मंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी बात उठाई गई लेकिन कोई बात नहीं बनी.
आधी सवारी के साथ संचालन तो किराया होगा दोगुना
ऑपरेटर प्रवीण पंवार बताते है कि एक साल में ऑपरेटर पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर आ जाएंगे. वहीं ऊपर से बसों का रखरखाव बड़ी परेशानी है. साथ ही खड़ी बसों के टायर खराब होने का भी खतरा बना हुआ है. इसके अलावा बसों के ड्राइवर और खलासी का वेतन भी जेब से देना पड़ रहा है. लॉकडाउन जब भी खुलेगा तो बसों के इंजन की जांच भी करवानी पड़ेगी. ऑपरेटरों का कहना है कि सरकार अगर बसों के संचालन की छूट आधी सवारियों के साथ देगी तो हमें मजबूरी में ही किराया दोगुना करना पडे़गा क्योंकि सरकार अपना टैक्स छोड़ने की बात नहीं कर रही है.
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वहीं ऑपरेटर अमीत परिहार का कहना है कि अप्रैल से जून तक का समय सर्वाधिक यात्री भार का समय होता है लेकिन इस बार यह खाली निकल रहा है. शादी-ब्याह की बुकिंग नहीं हुई और स्कूल के टूर भी नहीं हुए हैं. आने वाले लंबे समय तक लोग भीड़ के साथ जाने से भी बचेंगे. अगर आधी सवारियों के साथ संचालन की अनुमति भी मिलती है तो उसका सीधा नुकसान आम आदमी को ही होगा.
बैंकों की तरह सरकार दे राहत
वहीं ऑपरेटरों ने कहा कि बैंक हमारी बसों के फाइनेंस पर तीन माह तक किश्तों में राहत दे रही है लेकिन इसे 1 साल तक बढ़ाना चाहिए. ऐसा ही रास्ता सरकार को निकालना होगा. जिससे कि टैक्स में राहत मिले और जो एडवांस टैक्स जमा था उसकी समयावधि बढ़ाई जाए क्योंकि 22 मार्च से ही लगभग बसों का संचालन बंद हो गया था. एक बस से 7 से आठ परिवार की रोजी-रोटी चलती है. जिससे इन परिवारों पर भी आर्थिक संकट मंडरा रहा है.
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बता दें कि लंबी दूरी की इंडिया परमिट की बसों में कम से कम तीन से चार लोगों को स्टाफ काम करता है. स्टेट की बसों पर दो लोगों का स्टाफ होता है लेकिन इसके अलावा बस की सफाई, टायर पंचर बनाने और बदलने वाले, सामान की ढुलाई करने वाले सहित कुल 7 से आठ लोगों का परिवार आश्रित होता है. लॉकडाउन में इन बसों के मालिकों के साथ साथ आश्रितों की भी परेशानी बढ़ गई है. ऐसे में सरकार से ये ऑपरेटर राहत की मांग कर रहे हैं.