जयपुर. शारदीय नवरात्रि का आज शनिवार को तीसरा दिन है. इस बार तृतीया और चतुर्थी पूजा शनिवार को एक ही दिन मनाई जाएगी. नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के चंद्रघंटा स्वरूप और चतुर्थी के दिन कुष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है. इसलिए देवी चंद्रघंटा और कुष्मांडा देवी की पूजा आज ही की जाएगी.
ज्योतिर्विद श्रीराम गुर्जर बताते हैं कि चंद्रघंटा देवी की आराधना से वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता की प्राप्ति होती है. इनका रंग स्वर्ण की भांति चमकीला है. सिंह पर विराजमान चंद्रघंटा देवी के दस हाथ हैं, जिनमें कमल, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र और अन्य अस्त्र-शस्त्र हैं. इनकी कृपा से सभी पाप और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं. पराक्रम और निर्भयता की प्राप्ति होती है.
तृतीया को माता के दूध या खीर का भोग लगाना चाहिए. जिन जातकों के मन में अज्ञात भय रहता है, उन्हें अवश्य माता चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए. जो जातक आध्यात्मिक अनुभव करना चाहते हैं, उन्हें भी माता चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए. नीला रंग देवी चंद्रघंटा को खास प्रिय है. इसलिए उन्हें नीले रंग के पुष्प खास तौर पर शंखपुष्पी के पुष्प अर्पित कर प्रसन्न किया जा सकता है.
माता कुष्मांडा की पूजा
नवरात्रि में चतुर्थी को माता कुष्मांडा की पूजा की जाती है. किसी भी रोग, शोक या व्याधि से ग्रसित हैं, उन्हें विशेष रूप से देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए. इन्हें चमेली के पुष्प अत्यंत प्रिय हैं. इसलिए चमेली के पुष्प और सूखे मेवे का प्रसाद अर्पित कर देवी कुष्मांडा को प्रसन्न किया जा सकता है. इन्हें ब्रह्मांड की रचना करने वाली शक्ति माना जाता है. इनकी सवारी शेर है और देवी ने आठ हाथों में कमल, गदा, कमंडल, कलश सहित अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं. मान्यता है कि संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को देवी के इस स्वरूप की पूजा-आराधना करनी चाहिए.
ज्योतिर्विद श्रीराम गुर्जर का कहना है कि जिन जातकों की शादी में अड़चन आ रही है।, वे अपनी उम्र जितने सबूत लौंग लें और उन्हें पीले या लाल धागे में पिरोकर माला बना लें. यह माला माता भगवती को अर्पित कर देवी से अपनी शादी की प्रार्थना करें तो सभी बाधाएं दूर होकर जल्द उनकी शादी हो जाएगी.