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नवरात्र के चौथे दिन आज मां कूष्मांडा का पूजन कर करें कष्ट दूर...

नवरात्र का आज चौथा दिन है. ऐसे में चतुर्थी तिथि को मां कूष्मांडा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. मां कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के समस्त कष्ट, दुख और विपदाओं का विनाश होता है. मां दुर्गा ने असुरों का संहार करने के लिए कूष्मांडा स्वरूप धारण किया था.

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Published : Apr 16, 2021, 7:25 AM IST

worship goddess kushmanda
नवरात्र का चौथा दिन

जयपुर. ज्योतिष पंडित विशाल सेवग के अनुसार, इसके लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर मां कूष्मांडा का ध्यान करके उनको फल, सूखे मेवे, सफेद कुम्हड़ा, अक्षत, गंध, लाल पुष्प अर्पित करने के बाद धूप करें और सौभाग्य का सामान चढ़ाएं. इसके साथ साथ मां को दही के साथ गरमा गरम हलवे का भी भोग लगाएं. फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें. पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनके आगे मन ही मन व्यक्त करते रहें. फिर आशीर्वाद लें और जल्दी ही देखेंगे कि मां कूष्मांडा आप पर कृपा करेंगी.

सिंह की सवारी करती मां कूष्मांडा के 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा गया है. ये अपनी भुजाओं में अमृत कलश, चक्र, कमंडल, धनुष, बाण, कमल, माला और गदा धारण करती हैं. इसी लिए मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत प्रिय है. इसलिए उनकी पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करें. इससे मां कूष्मांडा जल्द प्रसन्न होती हैं. जो भक्त अनेक दुखों, विपदाओं और कष्टों से घिरा रहता है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए. उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं.

पढ़ें : राजस्थान में शुक्रवार शाम 6 बजे से सोमवार सुबह 5 बजे तक लागू होगा साप्ताहिक कर्फ्यू

दरअसल, इन देवी के कुम्हड़े की बली दी जाती है. ऐसे में संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांडा कहा जाता है. इसलिए देवी का नाम भी कूष्मांडा पड़ा. जिन्होंने अपनी मंद सी मुस्कान से पूरे ब्रह्माण्ड को अपने गर्भ में उतपन्न किया. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. माना जाता है कि मां कूष्मांडा की उपासना से श्रद्धालुओं के समस्त रोग-शोक खत्म हो जाते हैं. इनकी आराधना करने से भक्तों को तेज, ज्ञान, प्रेम, उर्जा, वर्चस्व, आयु, यश, बल और संतान का सुख प्राप्त होता है.

जयपुर. ज्योतिष पंडित विशाल सेवग के अनुसार, इसके लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर मां कूष्मांडा का ध्यान करके उनको फल, सूखे मेवे, सफेद कुम्हड़ा, अक्षत, गंध, लाल पुष्प अर्पित करने के बाद धूप करें और सौभाग्य का सामान चढ़ाएं. इसके साथ साथ मां को दही के साथ गरमा गरम हलवे का भी भोग लगाएं. फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें. पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनके आगे मन ही मन व्यक्त करते रहें. फिर आशीर्वाद लें और जल्दी ही देखेंगे कि मां कूष्मांडा आप पर कृपा करेंगी.

सिंह की सवारी करती मां कूष्मांडा के 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा गया है. ये अपनी भुजाओं में अमृत कलश, चक्र, कमंडल, धनुष, बाण, कमल, माला और गदा धारण करती हैं. इसी लिए मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत प्रिय है. इसलिए उनकी पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करें. इससे मां कूष्मांडा जल्द प्रसन्न होती हैं. जो भक्त अनेक दुखों, विपदाओं और कष्टों से घिरा रहता है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए. उनके आशीर्वाद से सभी कष्ट और दुख मिट जाते हैं.

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दरअसल, इन देवी के कुम्हड़े की बली दी जाती है. ऐसे में संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांडा कहा जाता है. इसलिए देवी का नाम भी कूष्मांडा पड़ा. जिन्होंने अपनी मंद सी मुस्कान से पूरे ब्रह्माण्ड को अपने गर्भ में उतपन्न किया. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. माना जाता है कि मां कूष्मांडा की उपासना से श्रद्धालुओं के समस्त रोग-शोक खत्म हो जाते हैं. इनकी आराधना करने से भक्तों को तेज, ज्ञान, प्रेम, उर्जा, वर्चस्व, आयु, यश, बल और संतान का सुख प्राप्त होता है.

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