जयपुर. राजस्थान के ग्रामीण परिवेश की महिलाओं पर तमाम सामाजिक बंदिशों की कई कहानियां आपने देखी और पढ़ी होंगी. लेकिन जयपुर सरस राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला में आई इन महिलाओं की कहानियां राजस्थान के ग्रामीण परिवेश की महिलाओं के बारे में आपको अपनी राय बदलने पर मजबूर कर देंगी. देखिये ये रिपोर्ट...
स्वयं सहायता समूह से जुड़कर घरेलू और कुटीर उद्योग के दम पर ये महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं. बल्कि अपने गांव की दशा और दिशा भी बदल रही हैं. घरेलू खाद्य उद्योग, मसाला उद्योग, सूती कपड़ा उद्योग और सौंदर्य प्रसाधन सहित अन्य उद्योगों से जुड़ी ये महिलाएं अपने परिवार का जीवन स्तर सुधार रहीं हैं.
जयपुर जिले के बगरू खुर्द गांव की कोमल शर्मा बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह से जुड़कर गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. समूह से जुड़ने से पहले हालात यह थे कि महिलाएं घर से बाहर भी नहीं निकलती थीं. कई घरों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. वे करीब तीन साल पहले समूह से जुड़ीं. इस समूह की महिलाओं ने पेपर प्रोडक्ट का काम शुरू किया. जिसमें करीब 70 महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इन महिलाओं के उत्पाद न केवल जयपुर बल्कि देशभर में बिक रहे हैं.
आत्मनिर्भर होने से महिलाओं का उत्साह बढ़ा है. अब महिलाएं खुद पर गर्व महसूस करती हैं. महिलाएं अपना खर्च निकाल रही हैं. पहले जहां गांव में महिलाएं घर से बाहर भी नहीं निकलती थीं, अब वे कैटर्स के रूप में भी बाहर निकल रही हैं. अपने उत्पादों को लेकर भी प्रदेश और देशभर में जा रही हैं. इससे गांव के सामाजिक और आर्थिक हालात में भी बदलाव आया है. कई महिलाओं ने ऊन के उत्पाद बनाना भी शुरू किया है. उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हालात और बेहतर होंगे.
टोंक जिले के दूनी गांव की चंदू कुमारी पांचाल बताती हैं कि पांच साल पहले स्वयंसहायता समूह से जुड़कर उन्होंने साबुन बनाने का काम शुरू किया था. इसके बाद गांव की अन्य जरूरतमंद महिलाएं भी समूह से जुड़ने लगीं. अब वे साबुन के साथ ही अन्य सौंदर्य प्रसाधन भी बनाती हैं और उनके उत्पाद प्रदेशभर में जा रहे हैं. उनका कहना है कि स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से जरूरतमंद महिलाओं की मदद करके एक सुकून मिल रहा है.
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आत्मनिर्भर महिलाएं अपने बच्चों अच्छी शिक्षा भी दिला रही हैं. ताकि वे पढ़ लिखकर अपना और गांव के लोगों का जीवन स्तर सुधार सकें. उनका कहना है कि ग्रामीण परिवेश की महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करवाने को ही अब उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है.
पाली जिले की निर्मल कंवर बताती हैं कि समूह से जुड़कर उन्होंने गृह उद्योग शुरू किया. जिसमें आलू चिप्स, खिंचिया, खाखरा आदि बनाए जाते हैं. उनके बनाए उत्पाद न केवल जिले बल्कि प्रदेश और देशभर में पसंद किए जा रहे हैं. उनका कहना है कि स्वयं सहायता समूह की मदद से ऋण लेकर वे अपने काम को और बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही हैं.
इन महिलाओं को इस मुकाम पर लाने में राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) का अहम योगदान है. राजीविका की स्टेट प्रोजेक्ट मैनेजर मोना दवे का कहना है कि जयपुर सरस राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में एक छत के नीचे 148 स्टॉल्स लगाई गई हैं. इनमें राजस्थान के साथ ही 22 अन्य राज्यों से भी अपने उत्पाद बेचने के लिए दस्तकार आए हैं. उनका कहना है कि इन दस्तकारों के सामान यहां खरीदने का फायदा यह है कि जो भी उत्पाद ये बेचेंगे उसका रुपया इनकी जेब में जाएगा.
उनका कहना है कि राजीविका के तहत न केवल स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं और दस्तकारों को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है. बल्कि उनके द्वारा तैयार किए गए उत्पादों को प्रदेश और देश में पहुंचाने के लिए मंच भी मुहैया करवाए जा रहे हैं. जयपुर सरस राष्ट्रीय क्राफ्ट फेयर इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.