जयपुर. एक मामले में सुनवाई के दौरान मंगलवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने पूछा कि आजीवन कारावास की सजा पूरी होने के बाद (Eligibility of a sentenced prisoner) पूर्व कैदी को सरकारी सेवा के लिए पात्र माना जाए या नहीं ? याचिका में अधिवक्ता धर्मवीर ठोलिया और अधिवक्ता हिमांशु ठोलिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने अध्यापक लेवल प्रथम भर्ती की वरीयता सूची में स्थान हासिल किया था.
वहीं, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक ने उसे यह कहते हुए नियुक्ति देने से इनकार कर दिया कि वह हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत चुका है. याचिका में कहा गया कि भर्ती विज्ञापन में यह नहीं कहा गया था कि हत्या के आरोप में सजा काट चुके व्यक्ति को नियुक्ति नहीं दी जाएगी, बल्कि विज्ञापन में सिर्फ नैतिक आचरण के अपराधों के संबंध में कहा गया था और हत्या का आरोप (Rajasthan High Court Verdict) नैतिक आचरण का अपराध नहीं है.
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इसके अलावा याचिकाकर्ता ने अपने आवेदन पत्र में भूतपूर्व सैनिक होने की बात कही थी और कोई भी तथ्य नहीं छुपाया था. याचिकाकर्ता के जेल में अच्छे व्यवहार के चलते उसे स्थाई पैरोल पर रिहा किया गया था. वहीं, जमानत के दौरान ही उसने बीए और एमए किया था. ऐसे में उसे नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है. गौरतलब है कि वर्ष 2001 में जिला एवं सत्र न्यायालय ने याचिकाकर्ता को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. वहीं, 28 मार्च 2021 को उसे समय पूर्व रिहा किया गया था.