जयपुर. पुरातन लोहागढ़ की तपोभूमि गलता धाम का धार्मिक महत्व तो सदियों से है लेकिन, आज भी लोग इसके रहस्यों से वाकिफ नहीं है. ये वो तपोभूमि है, जहां सदियों से अखंड जलती ज्योत अपनी ज्योती से इस धाम को पवित्र कर रही है.राम और कृष्ण के एक रुप के दर्शन भी तुलसीदासजी ने यहीं किए थे और दुनिया को धर्म की राह दिखाने वाले तुलसीदास को मानवता का असली ज्ञान भी यहीं हुआ था.
इस तपोभूमि की महिमा ही थी कि खुद अकबर अपनी मुराद लेकर यहां आए, और एक ही माह में जब अकबर द्वारा मांगी गई मुराद पूरी हो गई तो वो खुद यहां प्रकट हुए हनुमान जी की प्रतिमा पर नारियल चढ़ा कर गए. हम बात कर रहें हैं जयपुर स्थित गलता धाम में गालव ऋषि की तपोभूमि की, जिसे रहस्यों की भूमी भी कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
300 साल पहले हुआ निर्माण, गालव ऋषि की है तपोभूमी
गुलाबी नगरी का इतिहास जितना व्यापक इसकी स्थापना से है, उससे कई ज्यादा महत्व यहां के गलता तीर्थ भूमि का है. जहां सूरज की पहली किरण इस पवित्र भूमि पर बने सूर्यमंदिर पर पड़ने के बाद जयपुर शहर को रोशन करती है.
ऐसे तो गलता जी का निर्माण राजा सवाई जयसिंह ने जयपुर स्थापना से पहले वास्तू दोष निवारण के लिए 300 साल पहले करवाया था. लेकिन, उससे भी पहले सेगलता जी गालव ऋषि की तपोभूमि है, जो पहले हरिद्वार में रोज गंगा जी में नहाया करते थे.
लेकिन, जैसे-जैसे गालव ऋषि की उम्र बढ़ी, तो उनका गंगा में नहाने का नियम ना टूट जाए इसी डर से उन्होंने गंगा जी से उनके स्थान पर ही कोई बंदोबस्त करने का आग्रह किया. इस पर चमत्कारिक तौर पर यहां गलता कुंड में एक धारा बहने लगी. यह धारा पहाड़ों में कहीं से आती है लेकिन, किसी को नहीं पता कि कहां से आती है. ऐसा माना जाता है कि गंगा जी ने गुप्त रुप से यहां अपना आशीर्वाद दे रखा है.
पयोहारी ऋषि की रहस्यमयी गुफा
यह रहस्यमयी बातें यही नहीं खत्म होती, धाम में पयोहारी ऋषि एक गुफा में रहते हैं, जो धूनी के ठीक सामने है. कहा जाता है कि ये गुफा पाताल तक जाती है और इसके अंदर जो भी गया, वो कभी वापस नहीं लौटा है, इसलिए ही इस गुफा को बंद कर दिया गया है.
तुलसीदास को यही मिला ज्ञान, स्थापित हुए राम-कृष्ण साथ-साथ
इस धाम का महत्व रहस्य तक ही नहीं, बल्कि ज्ञान से भी है. इस बात का भान तुलसीदास को भी था, तपो भूमि पर बसने वाले नाभ जी ऋषि के चमत्कारिक व्यक्तित्व की वजह से तुलसीदास जी को यहां पर रुकना पड़ा था. बताते हैं कि पहले केवल भ्रमण भर के लिए आए तुलसीदास जी ने जब नाभ जी ऋषि के प्रसाद की अवज्ञा की, तो उनके पूरे शरीर में कोड़े का रोग हो गया और अनेको अनेक वैध को दिखाने के बाद भी वो ठीक नहीं हुआ.
जिसके बाद किसी ज्ञानी ने उन्हें बताया कि उनका ये हाल प्रसाद की अवज्ञा की वजह से हुआ है. फिर जब उन्होंने गलता जी आकर प्रसाद खाया तो उनका रोग ठीक हुआ. लेकिन, फिर भी उन्होने यहां रुकने से मना कर दिया और कहा कि यहां तो केवल भगवान कृष्ण के भक्त हैं और वो राम जी के अनुयायी है.
तब भगवान कृष्ण ने तुलसीदास को यहां राम रुप में दर्शन दिए. जिसके बाद इस जगह राम और कृष्ण दोनों की मुरत एक साथ दर्शाई गई है और उसे रामगोपाल जी कहा गया है.
तुलसीदास भी इस भूमि के चमत्कारों को मानते थे और इसलिए ही उन्होने अपनी जिंदगी के 3 साल यहां पर बिताए.
मुगल सम्राट अकबर ने भी मानी धाम की महत्ता
धाम की मान्यता को तुलसीदास ने ही नहीं बल्कि खुद मुगल सम्राट अकबर भी इस तीर्थ की महिमा को मानते थे. यही कारण है कि इस तपोभूमि में प्रकट हुई हनुमान की प्रतिमा से अकबर ने एक मन्नत मांगी, जो एक माह में ही पूरी हो गई.
बालाजी की कुटिया
गालव ऋषि की इस तपोभूमि में रामगोपाल भगवान का वास है, और जहां पर राम है वहां हनुमान का होना तो जरूरी है. गलता जी के इस रामगोपाल मंदिर में भी हनुमान जी का वास है. इस मंदिर से बालाजी की कुटिया तक एक ही रास्ता जाता है.
बालाजी की इस कुटिया में 490 सालों से एक अखंड ज्योत लगातार जल रही है. माना जाता है कि जयपुर में जब बाढ़ आई थी, तब 11 दिनों तक हनुमान जी का ये मंदिर बंद था और तब भी ये ज्योत कभी नहीं बूझी और बाढ के 11 दिनों के बाद जब इस मंदिर को खोल कर देखा तो भी ये ज्योत वैसे ही जलते हुए देखी गई.
रहस्यमयी धूनी, 500 से ज्यादा सालों से जल रही
करीब 490 सालों से लगातार प्रज्वलित इस ज्योति के अलावा भी यहां एक और आश्चर्यजनक रहस्य है. यहां एक यज्ञ धूनी है, जो 500 से भी ज्यााद सालों से निरंतर जल रही है और इसकी ज्वाला कभी बुझी नहीं. यहां तक की खुले में होने के बावजूद इस पर मौसम का कुछ भी असर नहीं हुआ है.
दरअसल, गालव ऋषि के बाद यहां एक और तपस्वी हुए, जिनका नाम पयोहारी ऋषि था. उस वक्त के सबसे बड़े तपस्वी होने के बावजूद उन्होंने गलता की गद्दी नहीं ली और उनके कई शिष्य गलता की गद्दी पर बैठे. लेकिन, उन्होने तवज्जो सिर्फ अपनी तपस्या को दी.
पयोहारी ऋषि ने केवल दूध पीकर अपनी जिंदगी बताई और कोई अन्य अन्न ग्रहण नहीं किया. इन्ही ऋषि ने जिस धूनी पर तपस्या की थी, वो धूनी आज तक यहां जल रही है. वहीं उन्होंने नाथ संप्रदाय को निर्देश दिया था कि उसकी धूनी बुझनी नहीं चाहिए और इसलिए ही नाथ संप्रदाय इस धूनी को जलाये रखता है.
गलता तीर्थ के इसी धार्मिक महत्व के चलते यहां बड़ी संख्या में धर्मावलियों के साथ ही कई देशी और विदेशी सैलानी भी यहां आते हैं. तो यह है जयपुर स्थित गालव ऋषि की तपोभूमि गलता तीर्थ का वो अनजाना रहस्य, जिसके लिए इस तीर्थ का लोहा अकबर से लेकर आचार्य तुलसीदास तक मान चुके हैं.