जयपुर. राजधानी जयपुर में बीसलपुर बांध से लाखों लोगों तक पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है. राज्य की राजधानी जयपुर के लिए बीसलपुर बांध लाइफ लाइन बन चुका है जो वर्षों से लोगों की प्यास बुझा रही है. राजधानी जयपुर में ऐसा जल वितरण तंत्र बिछाया हुआ है जिसके माध्यम से लोगों के घरों तक बीसलपुर का पानी पहुंच रहा है. विभाग के अनुसार मात्र 6 लाख की आबादी ऐसी है जहां बीसलपुर का पानी नहीं पहुंच रहा और वंचित लोगों तक टैंकरों और ट्यूबवेल आदि के माध्यम से जल पहुंचाया जा रहा है.
अभी बीसलपुर का पानी आम लोगों तक पहुंचाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है. बड़ी योजनाओं के जरिये यह काम लगातार किया जा रहा है, ताकि आम जनता तक बीसलपुर का पानी पहुंच सके. जयपुर शहर में ऐसे कई जल स्त्रोत रहे हैं जिनसे सालों पहले आम लोगों की प्यास बुझाने का काम किया लेकिन सतत विकास, अतिक्रमण और अन्य कारणों के चलते अब उनसे पीने का पानी नहीं लिया जा रहा.
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अतिक्रमण की भेंट चढ़ा रामगढ़ बांध
रामगढ़ बांध ने पिंक सिटी के लोगों की प्यास बुझाने का काम वर्षों तक किया लेकिन सरकारी तंत्र की नाकामी की वजह से रामगढ़ बांध अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है और आज उसमें एक भी बूंद पानी नहीं है. अब वह बिल्कुल 'मृत' हो चुका है. इसके अलावा जयपुर के पानी के स्त्रोत के रूप में रियासतकालीन 16 कोठियां भी महत्वपूर्ण हैं. इन 16 कोठियों ने रियासत काल में आम लोगों तक पानी पहुंचाने का काम किया है.
![6 लाख की आबादी टैंकर , ट्यूबवेल के भरोसे, बीसलपुर बांध से पानी की सप्लाई, Water supply from Bisalpur dam, 6 lakh population rely on tanker, tubewell, Outrage over environmentalists](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11424981_jpr.jpg)
वर्ष 1903 में तैयार हुआ था रामगढ़ बांध
जयपुर के महाराजा माधव सिंह द्वितीय ने 1897 में रामगढ़ बांध का निर्माण शुरू करवाया था और यह बांध 1903 में बनकर तैयार हुआ. जयपुर की जनता को पीने के लिए पानी मिल सके, इसलिए इस बांध का निर्माण करवाया गया था. चारदीवारी के लोगों को इस बांध से भरपूर पानी मिला. रामगढ़ बांध से पानी की सप्लाई 1931 से शुरू हुई. यह प्रदेश का एक महत्वपूर्ण पर्यटन क्षेत्र भी रहा है. वर्तमान में पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. रामगढ़ बांध में कभी इतना पानी था कि 1982 के एशियाई खेलों की नौकायन प्रतियोगिता भी इस बांध में हुई थी.
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2005 में रामगढ़ बांध में नहीं बचा पानी
रामगढ़ बांध में रोड़ा, बाणगंगा, ताला माधोवेनी नदी का पानी आता था. अपने इतिहास में रामगढ़ बांध चार बार 1924, 1977, 1978 और 1981 में ओवर फ्लो हुआ. 2000 के बाद से रामगढ़ बांध में पानी आना बिल्कुल बंद हो गया और 2005 में रामगढ़ बांध में पानी नहीं बचा. रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया में बड़े-बड़े रसूखदारों ने अतिक्रमण किया हुआ है जिस कारण रामगढ़ बांध में पानी नहीं पहुंचा और आज स्थिति यह है कि बांध में पानी ही नहीं है. यह रसूखदार इतने प्रभावशाली हैं कि इनकी ओर से किए गए अतिक्रमण को हटाने में राज्य सरकार भी फेल हो चुकी है. कई बार रामगढ़ बांध को जिंदा करने की मुहिम भी चलाई गई लेकिन रसूखदारों सामने वह भी फेल रही.
चारदीवारी के लिए बनवाई थी 16 कोठियां
जयपुर के रियासत काल के दौरान आम लोगों तक पानी पहुंचाने का इंतजाम किया गया था. चारदीवारी में पानी पहुंचाने के लिए 16 कोठियों का एक अहम योगदान रहा है. आज जहां अमनीशाह का नाला है, वहां कभी द्रव्यवती नदी बहती थी. इस नाले में बारिश में पहाड़ों का पानी भी बहता हुआ आता था जिससे यहां का जलस्तर बहुत ऊंचा था. इसके चलते ही रियासत काल में यहां 16 कोठियां बनाई गईं. इन 16 कोठियों का पानी नहर के जरिए चारदीवारी में रहने वाले लोगों तक पहुंचाया जाता था. यह पानी छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ तक पहुंचता था जहां से आम जनता अपनी जरूरत के हिसाब से पानी भरती थी. यहीं से एक नहर राजा और महाराजाओं के यहां भी जाती थी जिससे उनकी जल की आवश्यकता की पूर्ति होती थी.
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जल स्त्रोतों के अलावा कुछ ऐसी बावड़ियां भी थीं जिनसे जयपुर के लोगों की प्यास बुझाई जाती थी. यह बावड़ियां अब दम तोड़ती नजर आ रही हैं. जानकारी के अनुसार परशुरामद्वारा, रानीजी की बावड़ी, माजीसा बावड़ी, जग्गा की बावड़ी, प्रभात पुरी की बावड़ी, पन्ना मीना की बावड़ी सहित ऐसी 14 बावड़ियां हैं, जो देखरेख के अभाव में दम तोड़ चुकी है.
पर्यावरणविद ने प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड पर उठाए सवाल
पर्यावरणविद सूरज सोनी ने बताया कि राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहा. समय-समय पर जल स्रोतों की जांच नहीं कराई जा रही है जिस कारण जीव जंतुओं को परेशानी हो रही है. उन्होंने कहा कि वीकेआई इंडस्ट्रियल एरिया का प्रदूषित पानी दृव्यवती नदी, सीतापुरा और मालवीय नगर इंडस्ट्रियल एरिया का प्रदूषित पानी झालाना वन क्षेत्र और 22 गोदाम इंडस्ट्रियल एरिया का पानी दृव्यवती नदी में गिरता है जिससे भूजल और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है.
पर्यावरणविद सूरज सोनी ने कहा कि जयपुर के बसावट को देखते हुए पानी की आवश्यकता के लिए भी प्रबंध किए गए. रामगढ़ बांध के अलावा भी 14 बावड़ियां थीं जिससे जयपुर के लोगों की प्यास बुझती थी. सोनी ने बताया कि जल महल, तालकटोरा जयपुर के महत्वपूर्ण जल स्त्रोत हैं लेकिन प्रदूषित होने से यहां रह रहे जीव जंतु के लिए भी संकट पैदा हो गया है. जलमहल में सीवर का पानी भी गिरता है. पिछले साल प्रदूषित पानी के कारण सैकड़ों मछलियों मर गईं थी. उन्होंने कहा कि बावड़ियों को सहेज कर रखने से भूजल स्तर भी बढ़ता है, लेकिन वर्तमान में जल प्रबंधन और जल निकासी के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है.
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सोनी ने कहा कि जहां भी रुका हुआ पानी है वहां लोग गंदगी डाल देते हैं जिससे पानी तो प्रदूषित होता ही है, ऑक्सीजन भी खत्म हो जाती है. वहां नाइट्रोजन भी उत्सर्जन होता है जो मानव व जीव-जंतुओं के लिए घातक हैं.उन्होंने कहा की इंडस्ट्रियल एरिया से निकलने वाले अपशिष्ट की जांच करने की जिम्मेदारी राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की है लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से नहीं निभा रहा. रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण को लेकर पर्यावरणविद ने कहा कि वहां बड़े-बड़े लोगों ने होटल और फार्महाउस बना लिए हैं. प्रशासन भी वहां कार्रवाई नहीं कर रहा और जो कार्य करता है, वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.
बीसलपुर बांध और ट्यूबवेल से बुझाई जा रही प्यास
फिलहाल जयपुर शहर में बीसलपुर बांध से पानी सप्लाई किया जा रहा है. इसके अलावा हजारों ट्यूबवेल हैं जिनसे लोगों की प्यास बुझाई जा रही है. बीसलपुर बांध से सप्लाई किए जाने वाले पानी में मापदंड के अनुसार खनिज लवण भी मौजूद रहते हैं. पीएचईडी की ओर से अलग से कोई खनिज लवण नहीं मिलाया जाता है. विभाग के अधिकारियों के अनुसार पूरे जयपुर शहर में बीसलपुर का पानी पहुंचाने के लिए लगातार योजनाएं बनाई जा रही हैं और उन पर काम भी किया जा रहा है.
पीएचईडी के अधीक्षण अभियंता अजय सिंह राठौड़ के अनुसार यदि किसी जल स्त्रोत में ऑक्सीजन लेवल ठीक है तो उस में होने वाली गंदगी स्वतः ही कम हो जाती है. यदि जल स्त्रोत में अधिक गंदगी डाली जाती है तो वह उसमें एकत्र होकर उसकी ऑक्सीजन को खत्म कर देते हैं जिससे उस जल स्त्रोत का पानी गंदा हो जाता है. इस गंदे पानी से जीव जंतुओं को भी नुकसान होता है. लोगों को सप्लाई होने वाले बीसलपुर बांध के पानी में भी ऑक्सीजन मौजूद रहती है.