जयपुर. अंतरराष्ट्रीय सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ और 'राहत द सेफ कम्युनिटी फाउंडेशन' के चेयरमैन डॉ कमल सोई ने राजस्थान सरकार की व्हीकल फिटनेस टेस्टिंग पॉलिसी पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने ने कहा, राज्य में चल रहे प्राइवेट व्हीकल फिटनेस सेंटर्स के प्रति सरकार ने आखें मूंद रखी हैं. ये सेंटर कंडम और बेहद पुराने वाणिज्यक वाहनों को बिना किसी जांच-पड़ताल के फिटनेस सर्टिफिकेट बांट रहे हैं. यही कंडम वाहन बाड़मेर जैसी सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं, जिसमें 12 निर्दोषों की जान चली गई थी.
सरकार को इस पॉलिसी में बदलाव का सुझाव दिया
डॉ. सोई ने कहा कि निजी व्हीकल फिटनेस सेंटर्स की लापरवाही के चलते इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. राजस्थान में वाणिज्यिक वाहनों की फिटनेस टेस्ट प्रक्रिया गंभीर सवाल खड़े करती है. यहां की पॉलिसी के तहत कोई भी व्हीकल फिटनेस सेंटर के लिए आवेदन कर सकता है. फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर सकता है. यह पॉलिसी विगत 10 वर्षों से जारी है. किसी को परवाह नहीं है कि फिटनेस सेंटर के आवेदक को व्हीकल फिटनेस सेंटर को लगाने और चलाने का अनुभव या ज्ञान है कि नहीं, जबकि यह विशेषज्ञता और आमजन की जिंदगियों से सीधा जुड़ा कार्य है. डॉ. सोई ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि गंभीर सड़क दुर्घटनाओं के बावजूद देश में राजस्थान ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां ऐसी पॉलिसी को अपनाया जा रहा है. ऐसी गंभीर परिस्थितियों के बावजूद न तो राज्य सरकार जाग रही है और न ही इस पॉलिसी में बदलाव के लिए कुछ कर रही है. उन्होंने कहा कि आए दिन राज्य की व्हीकल फिटनेस पॉलिसी की आलोचना करते हुए रिपोर्ट्स आती हैं. कैसे सड़कों पर दौड़ रहे कंडम वाहन आमजन की जिंदगी लील रहे हैं? जहां मालिक को ऐसे कंडम वाहनों को स्क्रैप करने की जरूरत है, परंतु प्राइवेट फिटनेस सेंटर बिना किसी जांच के इन्हें फिटनेस सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं.
गाड़ी थाने में है और फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं
डॉ. सोई ने कहा कि निजी हाथों में फिटनेस सर्टिफिकेट के अधिकार होने का बड़ा खामियाजा यह है कि गाड़ी थाने में खड़ी होती है, कोई राजस्थान से बाहर है, उसका भी सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है. हम इस बात की मांग कर रहे हैं कि फिटनेस सर्टिफिकेट के अधिकार सरकार को निजी हाथों से अपने हाथों में लेना चाहिए.
हाईकोर्ट में लगाएंगे गुहार
डॉ. सोई ने कहा कि निजी हाथों में फिटनेस सर्टिफिकेट के अधिकार को सरकार अपने हाथों में ले. नहीं तो हम इसे 15 दिन बाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जरिए चुनोती देंगे.
बाड़मेर जैसी दुर्घटनाओं का जिम्मेदार कौन?
डॉ. सोई ने कहा कि 11 नवंबर को बाड़मेर जिले में बालतोरा-जोधपुर हाईवे पर निजी बस और ट्रेलर की भीषण टक्कर में 4 बच्चों समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी. पिछले साल 26 फरवरी को बूंदी जिले में निजी बस कोटा-दौसा मेगा हाईवे पर मेज नदी में गिर गई थी, जिसमें तीन बच्चों, 10 महिलाओं समेत 24 लोगों की मौत हो गई थी. वर्ष 2018 में राजस्थान में 21,743 दुर्घटनाएं हुई, जबकि वर्ष 2019 में 23,480 यानी 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी. जहां वर्ष 2018 में 10,320 लोगों की मौत हुई. वहीं 2019 में यह आंकड़ा 10,563 तक पहुंच गया. उन्होंने कहा कि राजस्थान देश के सड़क दुर्घटना वाले टॉप 15 राज्यों में शामिल है. राष्ट्रीय आंकड़ों को देखें तो राज्य का सड़क दुर्घटनाओं में शेयर वर्ष 2018 में 4.7 प्रतिशत, तो 2019 में बढ़कर 5.2 प्रतिशत हो गया.
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डॉ. सोई के सुझाव, जिनसे बचेगी आमजन की जान
डॉ सोई ने कहा कि सरकार तत्काल अपनी वर्तमान व्हीकल फिटनेस पॉलिसी को रद्द करे, जिसके तहत निजी वेंडर फिटनेस सेंटर संचालित कर रहे हैं. राज्य में फुल प्रूफ तरीके से वाहन फिटनेस प्रक्रिया स्थापित हो. वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट देने पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण हो. सरकार सुनिश्चित करे कि वाहन का फिटनेस परीक्षण ज्यादा सख्त हो. केवल पूर्ण रूप से सड़क पर चलने योग्य वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाए. फिटनेस सेंटर्स को सरकारी जमीन पर स्थापित किया जाना चाहिए ताकि इनके कामकाज सरकार का नियंत्रण हो.