जयपुर. इन दिनों राजस्थान की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सक्रियता चर्चाओं में है. ट्विटर पॉलिटिक्स की जरिए अपनी सक्रियता दिखा रही राजे अब फील्ड में पहले से ज्यादा सक्रिय हो गई (Vasundhara Raje active in political field) हैं. खासतौर पर हैदराबाद में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यसमिति बैठक के बाद राजे के राजस्थान में उदयपुर और जोधपुर में हुए दौरे और प्रेस कांफ्रेंस से उनके विरोधी परेशान हैं. वहीं राजे की फील्ड में एक्टिवनेस बढ़ने से उनके समर्थकों में उत्साह है.
हाल ही में हैदराबाद में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रेस कांफ्रेंस की. पार्टी ने उन्हें इसका जिम्मा दिया और उन्होंने इसे बखूबी निभाया. प्रेस कांफ्रेंस में उनका कॉन्फिडेंस देखते ही बनता था. यह कॉन्फिडेंस हैदराबाद तक ही सीमित नहीं रहा. राजस्थान पहुंचने के बाद राजे सीधे उदयपुर पहुंची जहां आतंकी हत्याकांड का शिकार हुए कन्हैयालाल के घर पहुंच कर पीड़ित परिजनों को सांत्वना दी. उदयपुर में राजे ने पत्रकार वार्ता को भी संबोधित किया और गहलोत सरकार पर निशाना भी साधा.
पढ़ें: Vasundhara Raje in Jodhpur: जोधपुर पहुंची वसुंधरा राजे, सर्किट हाउस में कार्यकर्ताओं से मिली
राजे इसके बाद वापस जयपुर या दिल्ली ना लौटकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गढ़ जोधपुर भी गईं और वहां मेल मिलाप के कार्यक्रम करने के बाद फिर मीडिया से मुखातिब हुईं और निशाने (Raje targeted Gehlot in Jodhpur) पर रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. यह खास बात यही है कि राजे जिन 2 जिलों में गईं, वहां प्रेस कांफ्रेंस के जरिए मीडिया से मुखातिब हुईं. अमूमन इससे पहले राजे मीडिया से दूर ही रहती थीं और उनके बयान भी ट्विटर या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही जारी किए जाते थे. लेकिन अब अपनी राजनीतिक स्टाइल में राजे ने समय के साथ कुछ परिवर्तन कर लिया है.
गहलोत के गढ़ जोधपुर पहुंच कर दिया सियासी संदेश: उदयपुर के बाद राजे मुख्यमंत्री गहलोत के गृह जिले जोधपुर में रहीं. यह वही जोधपुर है जहां से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी आते हैं और शेखावत का नाम आने वाले मुख्यमंत्री के चेहरों में भी शामिल है. जोधपुर में राजे के पहुंचने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. जिस प्रकार वे यहां कुछ कार्यक्रमों में शामिल हुईं और फिर मीडिया से मुखातिब होते हुए गहलोत सरकार पर निशाना साधा. इसके अपने कई राजनीतिक मायने हैं. राजे की फील्ड में यही सक्रियता भाजपा पार्टी के भीतर और बाहर के विरोधियों को परेशान किए हुए है.
पढ़ें: वसुंधरा राजे का उदयपुर व सिरोही दौरा, स्वागत में फिर गूंजा पुराना नारा...केसरिया में हरा...
हैदराबाद में दिया 'हम साथ-साथ' का मैसेज लेकिन उदयपुर में सब की अलग रहा: हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में राजे हों या फिर सतीश पूनिया और गजेंद्र सिंह शेखावत. इन्होंने आलाकमान के सामने 'हम साथ साथ हैं' का संदेश दिया. सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के साथ हंसते खिलखिलाते चेहरे की फोटो भी साझा की. लेकिन राजस्थान पहुंचते ही इन नेताओं की राह अलग-अलग नजर आई. पहले राजे उदयपुर पहुंची और कन्हैयालाल के पीड़ित परिजनों से मुलाकात (Raje met Kanhaiyalal family in Udaipur) की तो उसके दूसरे ही दिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी वहां पहुंचे. हैदराबाद से राजस्थान आने पर गजेंद्र सिंह शेखावत भी उदयपुर पहुंचे, लेकिन इन तीनों ही नेता एक साथ नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर पहुंचे और पीड़ित पक्ष से मुलाकात कर अपने राजनीतिक कार्यक्रमों में जुटे. मतलब राजस्थान में इन नेताओं के सियासी रास्ते अलग हैं. मंजिल संभवता एक ही हो सकती है, लेकिन कौन वहां सबसे पहले पहुंचकर मुकाम हासिल कर अंदरखाने इसकी जंग जारी है.
पढ़ें: विषम परिस्थितियों में प्रदेश की जनता ने दिया साथ, उसी साथ की बदौलत आज खड़ी हुई हूं: वसुंधरा राजे
राजे समर्थकों में उत्साह, विरोधी असमंजस में: राजे की राजनीति प्रदेश के अन्य नेताओं से कुछ अलग रही है. लेकिन अब उस में आए बदलाव की चर्चा सियासत में आम हो रही है. राजे समर्थक नेता और कार्यकर्ता अपनी नेता की फील्ड में सक्रियता से खुश हैं और राजे की सक्रियता के साथ उनके समर्थक नेता व कार्यकर्ताओं की सक्रियता भी अब बढ़ने लगी है. लेकिन इससे पार्टी के भीतर ही राजे विरोधी खेमे से जुड़े नेता व कार्यकर्ता परेशान हैं.
विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारी में जुटे नेता, पावर जुटाने का जतन: राजस्थान में साल 2023 के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले प्रदेश भाजपा के तमाम बड़े लीडर सक्रिय हो गए हैं. हर बड़ा नेता चाहता है कि उसकी पावर लगातार बढ़े और उसके लिए जरूरी है कि प्रदेश भर में उसका जनाधार हो. ऐसे में जनाधार जुटाने के लिए आने वाले दिनों में बीजेपी से जुड़े नेताओं के दोनों में और बढ़ोतरी दिखेगी. वहीं जिस नेता का जितना जनाधार होगा, मुख्यमंत्री पद का वो उतना ही बड़ा दावेदार होगा. हालांकि राजस्थान भाजपा में मुख्यमंत्री के चेहरों की जंग किसी से छुपी हुई नहीं है और इस जंग में कई चेहरे शामिल हैं.