जयपुर. साल 2019 में कांग्रेस सरकार और संगठन के बीच कई बार तालमेल की कमी देखी गई. कहा जाता है, कि जब किसी पार्टी की प्रदेश में सरकार होती है तो वहां संगठन गौण हो जाता है, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं, लिहाजा संगठन को प्रदेश में गौण नहीं माना जा सकता.
मुख्यमंत्री कौन...
राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार के साथ समन्वय में कुछ खट्टी-मीठी बातें साल भर दिखीं. सरकार की शुरुआत इस बात के साथ ही हुई, कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा. हालांकि बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली. वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
लोकसभा में कांग्रेस का सफाया
इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए. जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यह भी सच है, कि इतिहास में यह पहली बार हुआ, कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हारनी पड़ीं. लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी को लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई. कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने सरकार को जिम्मेदार बताया. इसके बाद जैसे-तैसे संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ.
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पायलट का लॉ एंड ऑर्डर पर बयान
लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बिठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया, कि प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में खींचतान की खबरें सामने आने लगी. जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच तालमेल सुधारने का प्रयास किया गया. हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया...
बसपा के विधायकों का कांग्रेस में आना
इसके बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच फिर एक बार तनाव हो गया. इस बार इसका कारण बसपा के 6 विधायकों का कांग्रेस पार्टी का दामन थामना रहा. इसको लेकर भी पायलट ने कहा, कि इस बार में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है. अब हालात ये हैं, कि बसपा के 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आए हैं. इस मामले को भी फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की मध्यस्थता में सुलझाया गया.
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उपचुनाव और कांग्रेस
इसके बाद राजस्थान में उपचुनाव हुए, जिसमें राजस्थान कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली, दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार लंबे अंतर से हार रही थी, लेकिन इस बार हार का अंतर मामूली रहा. जिसे एक तरह से कांग्रेस की जीत ही मानी जा रही है. जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट भी मिला.
निकाय चुनाव, कांग्रेस का घोषणा पत्र और सरकार
प्रदेश के निकाय चुनाव में प्रमुख के चयन को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया. जिसके लिए कांग्रेस को अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा. इसके बाद प्रदेश में इन चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई तो मामला फिर से बिगड़ गया और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधे तौर पर विरोध किया.
पायलट का विरोध
पायलट ने इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया, जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा. विभाग की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया गया, कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार होगा, कि विशेष परिस्थितियों में वह इस नियम का इस्तेमाल कर सके. बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया और कांग्रेस को इस नियम की जरूरत भी निकाय चुनाव में नहीं पड़ी. जब राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की. 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की. इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उबारा.
सरकार का एक साल
प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा था. लेकिन जब 17 दिसंबर को सरकार का 1 साल पूरा हुआ तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को छोड़कर गहलोत सरकार के तमाम मंत्री सरकार के 1 साल के कार्यक्रम में नजर आए. हालांकि पायलट ने इसे लेकर कहा, कि वह झारखंड के चुनाव में व्यस्त थे.