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अलविदा 2019ः कांग्रेस सत्ता-संगठन के बीच साल भर रही खींचतान...

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Published : Dec 30, 2019, 2:58 PM IST

कभी हाइब्रिड सिस्टम, कभी बसपा विधायक तो कभी राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर साल भर कांग्रेस सरकार और संगठन के बीच तकरार रही. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद निकाय चुनाव और उपचुनाव से कांग्रेस को संजीवनी भी मिली.

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सत्ता-संगठन में दिखी खींचतान

जयपुर. साल 2019 में कांग्रेस सरकार और संगठन के बीच कई बार तालमेल की कमी देखी गई. कहा जाता है, कि जब किसी पार्टी की प्रदेश में सरकार होती है तो वहां संगठन गौण हो जाता है, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं, लिहाजा संगठन को प्रदेश में गौण नहीं माना जा सकता.

सत्ता-संगठन में दिखी खींचतान

मुख्यमंत्री कौन...

राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार के साथ समन्वय में कुछ खट्टी-मीठी बातें साल भर दिखीं. सरकार की शुरुआत इस बात के साथ ही हुई, कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा. हालांकि बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली. वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

लोकसभा में कांग्रेस का सफाया

इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए. जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यह भी सच है, कि इतिहास में यह पहली बार हुआ, कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हारनी पड़ीं. लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी को लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई. कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने सरकार को जिम्मेदार बताया. इसके बाद जैसे-तैसे संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ.

ये पढ़ेंः पंचायत चुनाव: कांग्रेस राज्य सरकार के आसरे, BJP मोदी के भरोसे, दोनों को माकपा दे रही चुनौती

पायलट का लॉ एंड ऑर्डर पर बयान

लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बिठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया, कि प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में खींचतान की खबरें सामने आने लगी. जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच तालमेल सुधारने का प्रयास किया गया. हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया...

बसपा के विधायकों का कांग्रेस में आना

इसके बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच फिर एक बार तनाव हो गया. इस बार इसका कारण बसपा के 6 विधायकों का कांग्रेस पार्टी का दामन थामना रहा. इसको लेकर भी पायलट ने कहा, कि इस बार में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है. अब हालात ये हैं, कि बसपा के 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आए हैं. इस मामले को भी फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की मध्यस्थता में सुलझाया गया.

ये पढ़ेंः हाल-ए-2019: सियासी रस्साकशी, शह-मात का खूब चला खेल

उपचुनाव और कांग्रेस

इसके बाद राजस्थान में उपचुनाव हुए, जिसमें राजस्थान कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली, दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार लंबे अंतर से हार रही थी, लेकिन इस बार हार का अंतर मामूली रहा. जिसे एक तरह से कांग्रेस की जीत ही मानी जा रही है. जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट भी मिला.

निकाय चुनाव, कांग्रेस का घोषणा पत्र और सरकार

प्रदेश के निकाय चुनाव में प्रमुख के चयन को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया. जिसके लिए कांग्रेस को अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा. इसके बाद प्रदेश में इन चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई तो मामला फिर से बिगड़ गया और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधे तौर पर विरोध किया.

ये पढ़ेंः अलविदा 2019: धौलपुर पुलिस इस साल अपराध को रोकने में रहा कामयाब, दस्यु उन्मूलन एवं अपराध नियंत्रण में 5वां स्थान

पायलट का विरोध

पायलट ने इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया, जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा. विभाग की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया गया, कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार होगा, कि विशेष परिस्थितियों में वह इस नियम का इस्तेमाल कर सके. बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया और कांग्रेस को इस नियम की जरूरत भी निकाय चुनाव में नहीं पड़ी. जब राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की. 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की. इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उबारा.

सरकार का एक साल

प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा था. लेकिन जब 17 दिसंबर को सरकार का 1 साल पूरा हुआ तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को छोड़कर गहलोत सरकार के तमाम मंत्री सरकार के 1 साल के कार्यक्रम में नजर आए. हालांकि पायलट ने इसे लेकर कहा, कि वह झारखंड के चुनाव में व्यस्त थे.

जयपुर. साल 2019 में कांग्रेस सरकार और संगठन के बीच कई बार तालमेल की कमी देखी गई. कहा जाता है, कि जब किसी पार्टी की प्रदेश में सरकार होती है तो वहां संगठन गौण हो जाता है, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं, लिहाजा संगठन को प्रदेश में गौण नहीं माना जा सकता.

सत्ता-संगठन में दिखी खींचतान

मुख्यमंत्री कौन...

राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार के साथ समन्वय में कुछ खट्टी-मीठी बातें साल भर दिखीं. सरकार की शुरुआत इस बात के साथ ही हुई, कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा. हालांकि बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली. वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

लोकसभा में कांग्रेस का सफाया

इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए. जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन यह भी सच है, कि इतिहास में यह पहली बार हुआ, कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हारनी पड़ीं. लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी को लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई. कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने सरकार को जिम्मेदार बताया. इसके बाद जैसे-तैसे संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ.

ये पढ़ेंः पंचायत चुनाव: कांग्रेस राज्य सरकार के आसरे, BJP मोदी के भरोसे, दोनों को माकपा दे रही चुनौती

पायलट का लॉ एंड ऑर्डर पर बयान

लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बिठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया, कि प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में खींचतान की खबरें सामने आने लगी. जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच तालमेल सुधारने का प्रयास किया गया. हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया...

बसपा के विधायकों का कांग्रेस में आना

इसके बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच फिर एक बार तनाव हो गया. इस बार इसका कारण बसपा के 6 विधायकों का कांग्रेस पार्टी का दामन थामना रहा. इसको लेकर भी पायलट ने कहा, कि इस बार में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है. अब हालात ये हैं, कि बसपा के 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आए हैं. इस मामले को भी फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की मध्यस्थता में सुलझाया गया.

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उपचुनाव और कांग्रेस

इसके बाद राजस्थान में उपचुनाव हुए, जिसमें राजस्थान कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली, दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार लंबे अंतर से हार रही थी, लेकिन इस बार हार का अंतर मामूली रहा. जिसे एक तरह से कांग्रेस की जीत ही मानी जा रही है. जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट भी मिला.

निकाय चुनाव, कांग्रेस का घोषणा पत्र और सरकार

प्रदेश के निकाय चुनाव में प्रमुख के चयन को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया. जिसके लिए कांग्रेस को अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा. इसके बाद प्रदेश में इन चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई तो मामला फिर से बिगड़ गया और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधे तौर पर विरोध किया.

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पायलट का विरोध

पायलट ने इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया, जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा. विभाग की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया गया, कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार होगा, कि विशेष परिस्थितियों में वह इस नियम का इस्तेमाल कर सके. बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया और कांग्रेस को इस नियम की जरूरत भी निकाय चुनाव में नहीं पड़ी. जब राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की. 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की. इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उबारा.

सरकार का एक साल

प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा था. लेकिन जब 17 दिसंबर को सरकार का 1 साल पूरा हुआ तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को छोड़कर गहलोत सरकार के तमाम मंत्री सरकार के 1 साल के कार्यक्रम में नजर आए. हालांकि पायलट ने इसे लेकर कहा, कि वह झारखंड के चुनाव में व्यस्त थे.

Intro:बाय बाय 2019 सरकार और संगठन के बीच रहा खट्टा मीठा अनुभव कभी हाइब्रिड सिस्टम कभी बसपा विधायकों के ऊपर रॉड तो कभी राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर पूरे साल रही सत्ता संगठन में तकरार तो वही लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद निकाय चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मिली संजीवनी


Body:साल 2019 पूरा होने जा रहा है और इस 1 साल में बात करें राजस्थान में कांग्रेस के सत्ता और संगठन के बीच समन्वय की तो साल 2019 सत्ता और संगठन के बीच तालमेल को लेकर खट्टी मीठी यादों भरा रहा जहां सत्ता और संगठन के बीच कई बार तालमेल की कमी देखी गई हालांकि कहा जाता है कि जब सरकार किसी पार्टी की प्रदेश में होती है तो ऐसे में वहां संगठन गौण हो जाता है लेकिन राजस्थान में क्योंकि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं ऐसे में संगठन को प्रदेश में गौर नहीं माना जा सकता ऐसे में बात करें राजस्थान में कांग्रेस के संगठन और सरकार के साथ समन्वय की तो इसमें कुछ खट्टी मीठी बातें पूरे साल 2019 में देखने को मिली जहां सरकार की शुरुआत इस बात के साथ हुई कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा जिसमें बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली तो वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन यह भी सच है कि इतिहास में यह पहली बार हुआ कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हार नहीं पड़ी लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी किसी की हो इसे लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार बताया बस हाल जैसे-तैसे इसके बाद संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया कि प्रदेश में लॉएंडऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में किस्तान की खबरें सामने आने लगी जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच ताल में सुधारने का प्रयास किया गया हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया इसके ठीक बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच उस समय तनाव हो गया जब बसपा के 6 विधायकों ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया उसके बाद भी पायलट ने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नही थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है हालात ये है कि अब तक सभी 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नही आये है इस मामले में फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने मध्यस्थता की ओर मानले को सुलझाया इसके बाद राजस्थान में उपचुनाव में हुए जिसमें राजस्थान कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली तो दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार रही थी उस पर उसे मामूली अंतर से हार मिली जिसे कांग्रेस की जीत ही मानी जा रही है और जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट भी मिला लेकिन जब प्रदेश के निकाय चुनाव को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया जिसके लिए कांग्रेस ने अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए और सरकार बनने के साथ ही प्रदेश में लागू किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा हालांकि यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जिस तरीके से प्रदेश में इन चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई उसके बाद मामला फिर से बिगड़ गया और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधा तौर पर विरोध किया और इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार होगा कि विशेष परिस्थितियों में वह इस नियम का इस्तेमाल कर सके बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया और कांग्रेस को इस नियम की जरूरत भी निकाय चुनाव में नहीं पड़ी और जब राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजे आए तो इस विषय पर हर किसी ने ले ली और प्रदेश में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उभारा और संजीवनी का काम किया था ना कि प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा है लेकिन राजस्थान में जब 17 दिसंबर को सरकार का 1 साल पूरा हुआ तो शिवाय प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के गहलोत सरकार के तमाम मंत्री सरकार के 1 साल के कार्यक्रम में नजर आए हालांकि पायलट ने इसे लेकर कहा कि वह झारखंड के चुनाव में व्यस्त थे

इसमें पहले शार्ट है सचिन पायलट के गहलोत के और पांडे के उसके बाद सचिन पायलट की वह फाइल वाइट हैं जिसमें उन्होंने लगातार सरकार पर सवाल खड़े किए हाइब्रिड सिस्टम बसपा के विधायकों और सरकार को काम करने की सलाह को लेकर बाइट है तो वही दो पीटीसी है जिसमें एक सरकार और संगठन के तालमेल को लेकर तो दूसरी लोकसभा निकाय चुनाव को लेकर


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