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MANGLA GAURI VRAT 2021: सावन का चौथा और अंतिम मंगला गौरी व्रत आज, जानें कैसे पड़ा पार्वती का मंगला गौरी नाम! - mantra on mangla gauri vrat 2021

सावन मास का आखिरी मंगलवार आज है. आज श्रावण मास का अंतिम मंगला गौरी व्रत भी है. भगवान शिव और मां गौरी की विशेष पूजा का दिन. वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए इसे करने का विधान है.

mangla gauri vrat
सावन का आखिरी मंगला गौरी व्रत
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Published : Aug 17, 2021, 7:27 AM IST

जयपुर. सावन माह का सोमवार जहां भगवान शिव की पूजा को समर्पित है तो वहीं मंगलवार को माता पार्वती की पूजा करने का विधान है. सावन के प्रत्येक मंगलवार को माता पार्वती के मंगला गौरी रूप के लिए व्रत (Mangla Gauri Vrat 2021) रखा जाता है. सावन का चौथा एवम् अंतिम मंगला गौरी व्रत आज यानी 17 अगस्त दिन मंगलवार को है. मान्यता है कि माता गौरी की कृपा से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वैवाहिक जीवन सुखी रहता है. इस व्रत में विधि-विधान से मां मंगला गौरी की पूजा करने के बाद व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से मंगला गौरी की पूजा पूर्ण मानी जाती है.

मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) का विधान

मां मंगला गौरी अखंड सौभाग्य, सुखी और मंगल वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती हैं. मान्यता है कि संतान और सौभाग्य की प्राप्ति की कामना के लिए मां मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है. इस व्रत में एक बार भोजन कर माता पार्वती की अराधना की जाती है. ये व्रत सुहागिनों के लिए विशेष होता है.

मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि (Mangla Gauri Vrat Katha Vidhi)

शास्त्रों के अनुसार जो स्त्रियां सावन मास में इस दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती हैं, उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त करती हैं. इस दिन व्रती को नित्य कर्मों से निवृत्त होकर संकल्प करना चाहिए कि मैं संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान कर रही हूं.

तत्पश्चात आचमन एवं मार्जन कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता की प्रतिमा व चित्र के सामने उत्तराभिमुख बैठकर प्रसन्न भाव में एक आटे का दीपक बनाकर उसमें 16 बातियां जलानी चाहिए.इसके बाद 16 लड्डू, 16 फल, 16 पान, 16 लवंग और इलायची के साथ सुहाग की सामग्री और मिठाई माता के सामने रखकर अष्ट गंध एवं चमेली की कलम से भोजपत्र पर लिखित मंगला गौरी यंत्र स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार से उस पर श्री मंगला गौरी का पूजन कर उक्त मंत्र-

कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम् ।

नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।

इस मंत्र का जप 64,000 बार करना चाहिए. उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें. इसके बाद मंगला गौरी का 16 बत्तियों वाले दीपक से आरती करें. कथा सुनने के बाद सोलह लड्डू अपनी सास को तथा अन्य सामग्री ब्राह्मण को दान कर दें.

शिव ने दिया जिन्हें गौर वर्ण

धर्म ग्रंथों के अनुसार, मां मंगला गौरी को गौर वर्ण भगवान शिव शंकर ने दिया. मां पार्वती का ही मंगल रूप हैं मां. इनकी ख्याति मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी रूप में भी है. नवरात्रि के आठवें दिन मां के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है. कथानुसार माता पर्वती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तप किया. इस कारण उनका रंग काला पड़ गया था, फिर भगवान शंकर ने गंगा जल का उपयोग कर मां को फिर गोरा रंग प्रदान किया. इसी वजह से इनका नाम महागौरी पड़ गया. मां मंगला गौरी श्वेत वस्त्र और श्वेत आभूषण धारण करती हैं , इसलिए इन्हें श्वेतांबरी भी कहा जाता है.

आज का मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 51 म‍िनट तक

विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 36 मिनट से 03 बजकर 29 मिनट तक

निशीथ काल- मध्‍यरात्रि 12 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक

गोधूलि बेला- शाम 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 09 मिनट तक

अमृत काल- शाम 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 50 मिनट तक

रवि योग- पूरा द‍िन

जयपुर. सावन माह का सोमवार जहां भगवान शिव की पूजा को समर्पित है तो वहीं मंगलवार को माता पार्वती की पूजा करने का विधान है. सावन के प्रत्येक मंगलवार को माता पार्वती के मंगला गौरी रूप के लिए व्रत (Mangla Gauri Vrat 2021) रखा जाता है. सावन का चौथा एवम् अंतिम मंगला गौरी व्रत आज यानी 17 अगस्त दिन मंगलवार को है. मान्यता है कि माता गौरी की कृपा से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वैवाहिक जीवन सुखी रहता है. इस व्रत में विधि-विधान से मां मंगला गौरी की पूजा करने के बाद व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से मंगला गौरी की पूजा पूर्ण मानी जाती है.

मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) का विधान

मां मंगला गौरी अखंड सौभाग्य, सुखी और मंगल वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती हैं. मान्यता है कि संतान और सौभाग्य की प्राप्ति की कामना के लिए मां मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है. इस व्रत में एक बार भोजन कर माता पार्वती की अराधना की जाती है. ये व्रत सुहागिनों के लिए विशेष होता है.

मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि (Mangla Gauri Vrat Katha Vidhi)

शास्त्रों के अनुसार जो स्त्रियां सावन मास में इस दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती हैं, उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त करती हैं. इस दिन व्रती को नित्य कर्मों से निवृत्त होकर संकल्प करना चाहिए कि मैं संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान कर रही हूं.

तत्पश्चात आचमन एवं मार्जन कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता की प्रतिमा व चित्र के सामने उत्तराभिमुख बैठकर प्रसन्न भाव में एक आटे का दीपक बनाकर उसमें 16 बातियां जलानी चाहिए.इसके बाद 16 लड्डू, 16 फल, 16 पान, 16 लवंग और इलायची के साथ सुहाग की सामग्री और मिठाई माता के सामने रखकर अष्ट गंध एवं चमेली की कलम से भोजपत्र पर लिखित मंगला गौरी यंत्र स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार से उस पर श्री मंगला गौरी का पूजन कर उक्त मंत्र-

कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम् ।

नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।

इस मंत्र का जप 64,000 बार करना चाहिए. उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें. इसके बाद मंगला गौरी का 16 बत्तियों वाले दीपक से आरती करें. कथा सुनने के बाद सोलह लड्डू अपनी सास को तथा अन्य सामग्री ब्राह्मण को दान कर दें.

शिव ने दिया जिन्हें गौर वर्ण

धर्म ग्रंथों के अनुसार, मां मंगला गौरी को गौर वर्ण भगवान शिव शंकर ने दिया. मां पार्वती का ही मंगल रूप हैं मां. इनकी ख्याति मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी रूप में भी है. नवरात्रि के आठवें दिन मां के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है. कथानुसार माता पर्वती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तप किया. इस कारण उनका रंग काला पड़ गया था, फिर भगवान शंकर ने गंगा जल का उपयोग कर मां को फिर गोरा रंग प्रदान किया. इसी वजह से इनका नाम महागौरी पड़ गया. मां मंगला गौरी श्वेत वस्त्र और श्वेत आभूषण धारण करती हैं , इसलिए इन्हें श्वेतांबरी भी कहा जाता है.

आज का मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 51 म‍िनट तक

विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 36 मिनट से 03 बजकर 29 मिनट तक

निशीथ काल- मध्‍यरात्रि 12 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक

गोधूलि बेला- शाम 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 09 मिनट तक

अमृत काल- शाम 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 50 मिनट तक

रवि योग- पूरा द‍िन

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