जयपुर. कोरोना महामारी की पहली लहर में जहां केवल शहरों तक ही ये बीमारी थी. वहीं कोरोना की दूसरी लहर ने अब शहरों के साथ ही गांवों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. भले ही गावों को इस बीमारी से बचाने के लिए सरकारें बड़े-बड़े दावे कर रही हों, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है.
गांवों में कोरोना की जांच सही तरीके से नहीं हो रही है. वैक्सीनेशन के हालात ये हैं कि नाम के लिए 60 से ऊपर आयु वर्ग के लिए एकाध बार वैक्सीनेशन के लिए कैम्प लगा है. लेकिन इसके बाद वैक्सीन की कमी के चलते वैक्सीनेशन के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने दोबारा गांव का रुख नहीं किया. ऐसे हालात राजधानी जयपुर के कुछ किलोमीटर दूर मौजूद गांवों के हैं. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि दूर-दराज इलाकों में क्या हाल होंगे.
वैक्सीनेशन को लेकर गांव में आज भी भ्रम की स्थिति
भले ही सरकार वैक्सीनेशन को लेकर जागरूकता फैला रही हो. लेकिन हकीकत ये है कि गांवों में आज भी वैक्सीन को लेकर डर की स्थिति है, जिस जमवारामगढ़ के गांव का ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया. वहां 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों का टीकाकरण हुआ है और वैक्सीनेशन करवा चुके बुजुर्ग खुद कहते हैं कि उन्होंने वैक्सीन तो लगवा ली, लेकिन गांव में उनको वैक्सीनेशन को लेकर कई तरह की बाते सुनने को मिलती हैं. इस वजह से उनके मन में वैक्सीनेशन को लेकर एक डर बैठ गया है. ऐसे में सरकार की तरफ से न वैक्सीनेशन किया जा रहा है न ही गांवों में कोई जागरूकता का काम किया जा रहा है.
जयपुर से कुछ दूरी पर गावों के हालात ये हैं कि 7-7 हजार की आबादी वाले गांवों में एक बार भी कोरोना की जांच के लिए कोई टीम नहीं गई. ऐसे में गांव के ग्रामीण साफतौर पर कहते हैं कि वो प्रकृति और राम के भरोसे हैं. जब जांच नहीं हो रही तो गांव में किसी की तबियत खराब होती है तो वह उसे साधारण बीमारी मानकर ही चलते हैं.
गांव के सरपंच और ग्रामीण सिर्फ एक ही बात से परेशान हैं, प्रशासन और सरकार की तरफ से उनकी किसी प्रकार से कोई मदद नहीं की जा रही है. कोरोना के नाम पर बचाव के लिए कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं. लोग एक ही सुर में कहते हुए नजर आ रहे हैं कि हम राम भरोसे हैं.