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जयपुर: 2017 में चांदपोल विद्युत शवदाह गृह में नई मशीन तो लगी, लेकिन अब तक नहीं हुआ इस्तेमाल

लॉकडाउन के दिनों में शहर के श्मशान घाटों में लकड़ियों की आपूर्ति बाधित होने से अंतिम संस्कार में परेशानी आई. उस दौर में लोग नगर निगम के चांदपोल विद्युत शवदाह गृह की ओर देखते रह गए, लेकिन वो बंद ही पड़ा था. 2017 में भले ही यहां नई मशीन लगाई गई, लेकिन आज तक भी इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है. हालांकि अब पर्यावरण को मद्देनजर रखते हुए कुछ सामाजिक संगठन निगम से इस शवदाह गृह को अधिग्रहण करने में जुटे हैं.

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Published : Jul 18, 2020, 7:14 PM IST

jaipur news, Chandpol Cemetery
शवदाह गृह में नई मशीन बेकार

जयपुर. कहते हैं कि अगर अंतिम संस्कार सही तरीके से किया जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. इसी अंतिम संस्कार के लिए जरूरी लकड़ियों का स्टॉक बीते दिनों लॉकडाउन में खत्म होने की कगार पर था और अब लकड़ी के दाम आसमान छू रहे हैं. जयपुर के सबसे बड़े चांदपोल मोक्षधाम में हर दिन 10 से 20 अंत्येष्टि होती हैं.

अंत्येष्टि में करीबन 4 से 5 टन लकड़ी लगती है और लॉकडाउन के बाद लकड़ी पहले से महंगी पड़ रही है. इन दिनों अंतिम संस्कार में 8 से 12 हजार रुपये तक खर्च हो रहे हैं. लोग अभी कोरोना की मार से जूझ रहे हैं और अंत्येष्टि में खर्च होने वाले हजारों रुपए जेब पर भारी पड़ रहे हैं. ऐसे में इसी श्मशान घाट में स्थित इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की ओर भी लोगों ने देखना तो शुरू किया, लेकिन यहां जड़े ताले से उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

शवदाह गृह में नई मशीन बेकार

पढ़ेंः श्रावण में सोमवती अमावस्या पर 47 वर्षों बाद अनूठा संयोग, हरियाली अमावस्या रखता है विशेष महत्व

जानकारी के अनुसार 90 के दशक में यहां बिजली शवदाह गृह की शुरुआत हुई थी. लेकिन जागरूकता के अभाव में महज 10 से 20 शवों का ही यहां दाह संस्कार हुआ और फिर मशीन खराब हो गई. जयपुर के कुछ सामाजिक संगठनों ने नगर निगम प्रशासन के सामने कई बार गुहार लगाई. मेयर ज्योति खंडेलवाल से लेकर के मेयर निर्मल नहाटा का दरवाजा खटखटाया, तब जाकर 2017 में नई मशीन लगी. लेकिन निगम में मेयर बदलने के साथ ही मामला फिर खटाई में पड़ गया.

हालांकि 2019 में मेयर विष्णु लाटा ने जीर्णोद्धार कर इसका फीता तो काट दिया, लेकिन बिजली बिल नहीं भरने की वजह से मशीन लगने के बाद भी विद्युत शवदाह गृह शुरू नहीं हो पाया. हालांकि इसके मेंटेनेंस और संचालन के लिए नगर निगम प्रशासन ने अल्फा इंक्यूपेंट नामक एक प्राइवेट कंपनी को ठेका भी दिया था, लेकिन उसने भी यहां काम शुरू नहीं किया.

पढ़ेंः जयपुर: ठाकुरजी ने ऑनलाइन भक्तों को झूले पर विराजमान भाव से दिए दर्शन

हालांकि अब जयपुर जैन सभा समिति और सर्व समाज मिलकर इस शवदाह गृह को शुरू करने के लिए नगर निगम प्रशासन से इसे अधिग्रहण करने में लगे है. समाजसेवी सुदीप बगड़ा ने बताया कि इस व्यवस्था को पूरी तरह निशुल्क रखा जाएगा और स्वेच्छा से यदि कोई रखरखाव के मद्देनजर राशि देना चाहे तो उससे भी अधिकतम 2 हजार ही लिए जाएंगे.

वहीं राजेंद्र शारा ने कहा कि एक शव के दाह संस्कार में 4 से 5 टन लकड़ी लगती है. जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है ये जागरूकता आमजन में लाने का प्रयास भी किया जाएगा. पर्यावरण के मद्देनजर इसे एक सुखद पहल कही जा सकती है. लेकिन निगम प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां 3 साल पहले लगी मशीन फिलहाल धूल फांक रही हैं. ना जाने निगम प्रशासन आखिर किस समय का इंतजार कर रहा है.

जयपुर. कहते हैं कि अगर अंतिम संस्कार सही तरीके से किया जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. इसी अंतिम संस्कार के लिए जरूरी लकड़ियों का स्टॉक बीते दिनों लॉकडाउन में खत्म होने की कगार पर था और अब लकड़ी के दाम आसमान छू रहे हैं. जयपुर के सबसे बड़े चांदपोल मोक्षधाम में हर दिन 10 से 20 अंत्येष्टि होती हैं.

अंत्येष्टि में करीबन 4 से 5 टन लकड़ी लगती है और लॉकडाउन के बाद लकड़ी पहले से महंगी पड़ रही है. इन दिनों अंतिम संस्कार में 8 से 12 हजार रुपये तक खर्च हो रहे हैं. लोग अभी कोरोना की मार से जूझ रहे हैं और अंत्येष्टि में खर्च होने वाले हजारों रुपए जेब पर भारी पड़ रहे हैं. ऐसे में इसी श्मशान घाट में स्थित इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की ओर भी लोगों ने देखना तो शुरू किया, लेकिन यहां जड़े ताले से उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

शवदाह गृह में नई मशीन बेकार

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जानकारी के अनुसार 90 के दशक में यहां बिजली शवदाह गृह की शुरुआत हुई थी. लेकिन जागरूकता के अभाव में महज 10 से 20 शवों का ही यहां दाह संस्कार हुआ और फिर मशीन खराब हो गई. जयपुर के कुछ सामाजिक संगठनों ने नगर निगम प्रशासन के सामने कई बार गुहार लगाई. मेयर ज्योति खंडेलवाल से लेकर के मेयर निर्मल नहाटा का दरवाजा खटखटाया, तब जाकर 2017 में नई मशीन लगी. लेकिन निगम में मेयर बदलने के साथ ही मामला फिर खटाई में पड़ गया.

हालांकि 2019 में मेयर विष्णु लाटा ने जीर्णोद्धार कर इसका फीता तो काट दिया, लेकिन बिजली बिल नहीं भरने की वजह से मशीन लगने के बाद भी विद्युत शवदाह गृह शुरू नहीं हो पाया. हालांकि इसके मेंटेनेंस और संचालन के लिए नगर निगम प्रशासन ने अल्फा इंक्यूपेंट नामक एक प्राइवेट कंपनी को ठेका भी दिया था, लेकिन उसने भी यहां काम शुरू नहीं किया.

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हालांकि अब जयपुर जैन सभा समिति और सर्व समाज मिलकर इस शवदाह गृह को शुरू करने के लिए नगर निगम प्रशासन से इसे अधिग्रहण करने में लगे है. समाजसेवी सुदीप बगड़ा ने बताया कि इस व्यवस्था को पूरी तरह निशुल्क रखा जाएगा और स्वेच्छा से यदि कोई रखरखाव के मद्देनजर राशि देना चाहे तो उससे भी अधिकतम 2 हजार ही लिए जाएंगे.

वहीं राजेंद्र शारा ने कहा कि एक शव के दाह संस्कार में 4 से 5 टन लकड़ी लगती है. जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है ये जागरूकता आमजन में लाने का प्रयास भी किया जाएगा. पर्यावरण के मद्देनजर इसे एक सुखद पहल कही जा सकती है. लेकिन निगम प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां 3 साल पहले लगी मशीन फिलहाल धूल फांक रही हैं. ना जाने निगम प्रशासन आखिर किस समय का इंतजार कर रहा है.

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