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Special : आधुनिकता की होड़ में फीकी पड़ रही गुलाबी नगरी की चमक, धूमिल हो रही ऐतिहासिक विरासत

गुलाबी नगरी यानी पिंक सिटी जयपुर आज भी देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. विश्व पटल पर जयपुर सिटी की खास पहचान है. यूनेस्को की ओर से भी गुलाबी नगरी को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया जा चुका है. ऐसे में इस विश्व विरासत को सहेज कर रखने की आवश्यकता है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में कहीं न कहीं गुलाबी नगरी की रंगत अपने मूल अस्तित्व को खोती जा रही है. आधुनिकता और विकास की होड़ में 'गुलाबी नगरी' की पहचान कहीं खो न जाए इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

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धूमिल हो रही ऐतिहासिक विरासत
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Published : Oct 10, 2021, 9:18 PM IST

जयपुर. सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर शहर को बसाया था. इसमें शुरुआती तौर पर चारदीवारी और उसके 8 दरवाजे बनाए गए थे. समय के साथ ही यह और विकसित होता गया और हवा महल, टाउन हॉल, बाजार, हवेलियां और कई मंदिरों का निर्माण किया गया. 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के जयपुर आगमन के मौके पर तत्कालीन महाराजा रामसिंह ने गुलाबी रंग से सजाया. इससे खुश होकर होकर प्रिंस अल्बर्ट ने इसे 'पिंक सिटी' नाम दिया. आज भी जयपुर के परकोटे में इमारतों पर गुलाबी रंग का ही पेंट कराने की इजाजत है, लेकिन शहर का मूल गुलाबी रंग अब खोता जा रहा है.

अपने महलों, पुराने किले, परकोटे और ऐतिहासिक विरासत के साथ-साथ जयपुर की पहचान गुलाबी रंग से भी है. हालांकि कभी शहर की रौनक पीले और सफेद रंगों में नजर आया करती थी. जयपुर ने 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि की थी. इसके साथ ही शहर के आधुनिकीकरण का दौर भी शुरू हो गया. वर्ष 1876 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट जयपुर आने वाले थे. उस समय जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह ने उनके स्वागत के लिए पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजवाया. शहर का रंग बदला गया और पूरे परकोटे को गुलाबी रंग में रंग दिया गया. इसके बाद से शहर गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाने लगा.

धूमिल हो रही ऐतिहासिक विरासत

पढ़ें. SPECIAL : बीकानेर की उस्ता कला पर उदासीनता की गर्द..रियासतकालीन आर्ट को संरक्षण की दरकार

हालांकि जयपुर की ऐतिहासिक विरासत को संजोए रखने के लिए समय के साथ-साथ यहां रंग रोगन का कार्य भी होता रहा लेकिन आज इसी गुलाबी रंग के कई रूप देखने को मिलते हैं. कहीं हल्का तो कहीं गहरा गुलाबी, कहीं गहरा गेरुआ और कहीं एकदम बदरंग, इसे हेरिटेज संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी कहें या सरकार की अनदेखी, लेकिन गुलाबी नगरी की गुलाबियत के लिए खतरा भी साबित हो सकती है.

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गुलाबी नगरी की रौनक

हेरिटेज बाजार त्रिपोलिया के अध्यक्ष राजेंद्र गुप्ता की माने तो शहर में हिरमिच और पीली मिट्टी मिलाकर गुलाबी रंग तैयार किया गया था ताकि वह सैकड़ों साल तक खराब न हो, लेकिन धीरे-धीरे अब पुराना गुलाबी रंग अपनी रंगत खो चुका है. मूल रंग हवामहल के अंदर रखे एक पत्थर पर ही है जबकि उसकी बाहर की दीवारों पर भी ये रंग नजर नहीं आता है. आलम ये है कि विरासत को संजोने के लिए बनाए गए नियमों को ताक पर रखकर रसूखदार अपने अनुरूप इमारतों को रंगने लगे हैं जिस कारण ऐतीहासिक विरासतें अपना मूल खोती जा रही हैं.

पढ़ें. Special : कारीगरों की बेजोड़ कारीगरी से राजस्थानी कशीदाकारी को मिली विदेशों में पहचान

स्मार्ट सिटी लिमिटेड 2016 से पूरे परकोटे में फसाड़ वर्क करा रहा है. पहले चरण में करीब 12 करोड़ रुपये का काम हो चुका है. बचे हुए काम के लिए दूसरे चरण के तहत टेंडर किया जा रहा है. अब करीब 3 करोड़ रुपए खर्च कर प्रमुख बाजारों, दरवाजों और रास्तों पर बचा हुआ फसाड़ वर्क किया जाएगा.

स्मार्ट सिटी सीईओ और हेरिटेज नगर निगम के कमिश्नर अवधेश मीणा ने बताया कि निगम में एक हेरिटेज सेल का गठन किया गया है. साथ ही टेक्निकल हेरीटेज कमेटी भी बनाई गई है. परकोटे में कराया जाने वाला रंग सिंथेटिक न होकर खमीर उठाकर बनाए गए रंग से रंगाई कराने का प्रावधान है. कंजर्वेशन आर्किटेक्ट से अप्रूव होने के बाद ही ये रंग बाजारों में कराया जाता है.

बहरहाल समय के साथ जयपुर पहले से ज्यादा आधुनिक और स्मार्ट हो चुका है. गुलाबी नगरी मेट्रो सिटी बन चुका ही. आज भी गुलाबी नगरी की ऐतिहासिक विरासत को संजोए रखने के लिए परकोटे को गुलाबी रंग से ही रंगा जाता है. यही वजह है कि दूसरे शहरों की तुलना में जयपुर विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखता है, लेकिन जरूरत है इस पहचान को धूमिल होने से बचाए रखने की.

जयपुर. सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर शहर को बसाया था. इसमें शुरुआती तौर पर चारदीवारी और उसके 8 दरवाजे बनाए गए थे. समय के साथ ही यह और विकसित होता गया और हवा महल, टाउन हॉल, बाजार, हवेलियां और कई मंदिरों का निर्माण किया गया. 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के जयपुर आगमन के मौके पर तत्कालीन महाराजा रामसिंह ने गुलाबी रंग से सजाया. इससे खुश होकर होकर प्रिंस अल्बर्ट ने इसे 'पिंक सिटी' नाम दिया. आज भी जयपुर के परकोटे में इमारतों पर गुलाबी रंग का ही पेंट कराने की इजाजत है, लेकिन शहर का मूल गुलाबी रंग अब खोता जा रहा है.

अपने महलों, पुराने किले, परकोटे और ऐतिहासिक विरासत के साथ-साथ जयपुर की पहचान गुलाबी रंग से भी है. हालांकि कभी शहर की रौनक पीले और सफेद रंगों में नजर आया करती थी. जयपुर ने 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि की थी. इसके साथ ही शहर के आधुनिकीकरण का दौर भी शुरू हो गया. वर्ष 1876 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट जयपुर आने वाले थे. उस समय जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह ने उनके स्वागत के लिए पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजवाया. शहर का रंग बदला गया और पूरे परकोटे को गुलाबी रंग में रंग दिया गया. इसके बाद से शहर गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाने लगा.

धूमिल हो रही ऐतिहासिक विरासत

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हालांकि जयपुर की ऐतिहासिक विरासत को संजोए रखने के लिए समय के साथ-साथ यहां रंग रोगन का कार्य भी होता रहा लेकिन आज इसी गुलाबी रंग के कई रूप देखने को मिलते हैं. कहीं हल्का तो कहीं गहरा गुलाबी, कहीं गहरा गेरुआ और कहीं एकदम बदरंग, इसे हेरिटेज संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी कहें या सरकार की अनदेखी, लेकिन गुलाबी नगरी की गुलाबियत के लिए खतरा भी साबित हो सकती है.

गुलाबी नगरी,  पिंक सिटी , world heritage,  smart city ,  ऐतिहासिक विरासत, historical heritage, Maharaja Ram Singh
गुलाबी नगरी की रौनक

हेरिटेज बाजार त्रिपोलिया के अध्यक्ष राजेंद्र गुप्ता की माने तो शहर में हिरमिच और पीली मिट्टी मिलाकर गुलाबी रंग तैयार किया गया था ताकि वह सैकड़ों साल तक खराब न हो, लेकिन धीरे-धीरे अब पुराना गुलाबी रंग अपनी रंगत खो चुका है. मूल रंग हवामहल के अंदर रखे एक पत्थर पर ही है जबकि उसकी बाहर की दीवारों पर भी ये रंग नजर नहीं आता है. आलम ये है कि विरासत को संजोने के लिए बनाए गए नियमों को ताक पर रखकर रसूखदार अपने अनुरूप इमारतों को रंगने लगे हैं जिस कारण ऐतीहासिक विरासतें अपना मूल खोती जा रही हैं.

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स्मार्ट सिटी लिमिटेड 2016 से पूरे परकोटे में फसाड़ वर्क करा रहा है. पहले चरण में करीब 12 करोड़ रुपये का काम हो चुका है. बचे हुए काम के लिए दूसरे चरण के तहत टेंडर किया जा रहा है. अब करीब 3 करोड़ रुपए खर्च कर प्रमुख बाजारों, दरवाजों और रास्तों पर बचा हुआ फसाड़ वर्क किया जाएगा.

स्मार्ट सिटी सीईओ और हेरिटेज नगर निगम के कमिश्नर अवधेश मीणा ने बताया कि निगम में एक हेरिटेज सेल का गठन किया गया है. साथ ही टेक्निकल हेरीटेज कमेटी भी बनाई गई है. परकोटे में कराया जाने वाला रंग सिंथेटिक न होकर खमीर उठाकर बनाए गए रंग से रंगाई कराने का प्रावधान है. कंजर्वेशन आर्किटेक्ट से अप्रूव होने के बाद ही ये रंग बाजारों में कराया जाता है.

बहरहाल समय के साथ जयपुर पहले से ज्यादा आधुनिक और स्मार्ट हो चुका है. गुलाबी नगरी मेट्रो सिटी बन चुका ही. आज भी गुलाबी नगरी की ऐतिहासिक विरासत को संजोए रखने के लिए परकोटे को गुलाबी रंग से ही रंगा जाता है. यही वजह है कि दूसरे शहरों की तुलना में जयपुर विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखता है, लेकिन जरूरत है इस पहचान को धूमिल होने से बचाए रखने की.

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