जयपुर. राजधानी की हर गली और हर कॉलोनी में आवारा श्वानों का झुंड बेखौफ होकर घूमता है. यह जयपुर वासियों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. आवारा श्वान आए दिन मासूमों से लेकर युवाओं और वृद्ध जनों को नोंच और काट कर जख्मी कर रहा है. हालांकि, अब निगम प्रशासन ने एक एनजीओ को शॉर्ट टर्म टेंडर देकर दोबारा एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम (ABC) शुरू किया है.
कभी किसी पार्क में खेलते बच्चों पर झपट्टा, तो कभी सड़क पर चलते राहगीर पर हमला, यही नहीं झुंड का झुंड गाड़ियों के पीछे दौड़ता और लपकता देखने को मिलता है. राजधानी का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जो आवारा श्वानों की जद से दूर हो. इन आवारा श्वानों के बढ़ते आतंक का अंदाजा एक सर्वे रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है, जिसमें हर दिन करीब 20 से 25 डॉग बाइट की घटना सामने आने का जिक्र है. यानी कि पूरे साल में करीब 8 हजार से ज्यादा लोग आवारा श्वानों का शिकार बनते हैं. हालांकि, राजधानी में इन आवारा श्वानों पर नकेल कसने के लिए एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) प्रोग्राम भी चलाया जाता है, लेकिन वो भी सालभर में दम तोड़ देता है.
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डॉग लवर्स और एनजीओ से की जा रही वार्ता
इस संबंध में ग्रेटर नगर निगम कमिश्नर दिनेश यादव ने बताया कि शहर में लगातार आवारा श्वानों की संख्या बढ़ रही है. लेकिन एनिमल प्रोटेक्शन की पालना करना भी जरूरी है. हालांकि सरकार के निर्देश पर जो एबीसी प्रोग्राम शुरू किया गया था, बीच में ठेका कंपनी की ओर से उपयुक्त काम नहीं करने पर ये प्रोग्राम बंद हो गया. उस व्यवस्था को शॉर्ट टर्म टेंडर कर शुरू किया गया है और इसका लॉन्ग टर्म टेंडर जारी करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है. इसमें राजधानी के डॉग लवर्स और एनजीओ से भी वार्ता की जा रही है.
श्वान गृह में प्रतिदिन लाया जा रहा 45 आवारा श्वान
वहीं, वेटरनरी डॉक्टर सुभाष ने बताया कि जयसिंह पुरा खोर श्वान गृह में प्रतिदिन 40 से 45 आवारा श्वानों को पकड़ कर लाया जाता है. इनमें से कुछ नगर निगम तो कुछ ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी एनजीओ की ओर से पकड़ कर लाए जाते हैं. यहां श्वान के आने के बाद पहले दिन फास्टिंग पर रखा जाता है और उसके बाद एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम के तहत उनका बंध्याकरण किया जाता है.
डॉ. सुभाष ने बताया कि इसके बाद 3 दिन तक चिकन राइस, टोस्ट और पेडिग्री दिया जाता है. इसके बाद डॉग रिलीज करने लायक है तो उसी जगह पर दोबारा छोड़ा जाता है, जहां से उसे पकड़ा गया था या फिर उसे पोस्ट ऑपरेटिव के लिए रख लेते हैं. उन्होंने बताया कि अमूमन सर्जरी के बाद डॉग्स की जो एक्टिविटी होती है, उसमें कमी आती है और करीब 3 दिन पिंजरे में रहने के बाद डॉग्स की बाइट करने की प्रवृत्ति स्वतः कंट्रोल हो जाती है.
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बहरहाल, निगम प्रशासन और ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी मिलकर शहर को श्वानों के आतंक से बचाने का प्रयास कर रही है. लेकिन जरूरत है कि निगम एक लॉन्ग टर्म टेंडर करें, जिसमें स्थिरता भी हो और नियमितता भी ताकि शहर में कोई मासूम या वृद्ध आवारा श्वानों का शिकार ना बने.