जयपुर. राजस्थान अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखता है. यहां खेले जाने वाले पारम्परिक खेल भी इसी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. सितोलिया, रूमाल झपट्टा और गिल्ली डंडा जैसे खेल यहां की विरासत का हिस्सा रहे हैं. जिनका जिक्र पौराणिक कथाओं में मिलता है. हालांकि अब समय बदल गया और इसके साथ ही खेलों में भी बदलाव आ गया है. प्ले स्टेशन, वीडियो गेम और गैजेट के समय में बच्चे पारंपरिक खेलों को शायद भूल ही गए हैं.
आज पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस (International sports day) मना रहा है. विकास और शांति के नाम पर इस दिन को समाज के ताने-बाने को बरकरार रखने और खेल के महत्व पर प्रकाश डालने के लिए मनाया जाता है. ईटीवी भारत आज के दिन उन खेलों की याद दिलाना चाहता है जिन्हें आधुनिकता के इस दौर में बिसरा दिया गया है. हम बात कर रहे हैं 7 पत्थरों के खेल सितोलिया की, जिसे हर गली-मोहल्ले में खेला जाता था. हम बात कर रहे हैं एक लकड़ी के डंडे और छोटी लकड़ी की गिल्ली वाले खेल गिल्ली डंडा की. हम बात कर रहे हैं लंगड़ी टांग, कंचे, रूमाल झपट्टा जैसे खेलों की. जिसमें गांव, गली, मोहल्ले के बच्चे दौड़ते-चिल्लाते इन खेलों का आनंद लिया करते थे. परस्पर सौहार्द और टीम भावना के साथ इन खेलों से शारीरिक और मानसिक विकास हुआ करता था. लेकिन ये खेल आज महज यादों में सिमट कर रह गए हैं. आज के किशोर अब इन्हें बिसरा कर क्रिकेट, फुटबॉल, बैडमिंटन की तरफ बढ़ चुके हैं. ज्यादातर बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और दूसरे गैजेट्स की दुनिया में ऑनलाइन गेम खेलने में लगे हुए हैं.
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परिजनों की मानें तो वो इन खेलों को खेलते हुए बड़े हो गए और आज जब अपने बच्चों को इन खेलों की तरफ प्रोत्साहित करने की कोशिश करते हैं, तो बच्चे इस पर ध्यान ही नहीं देते. जिसका एक बड़ा कारण ये भी है कि आसपास इस तरह का वातावरण ही नहीं मिल पाता. आज के बच्चे इन खेलों के नाम तक नहीं जानते. एक्सपर्ट डॉ मीनाक्षी मिश्रा ने बताया कि आज मोबाइल गेम और ऑनलाइन गेम से बच्चों पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ रहा है. उनकी आई साइट वीक हो रही है. मानसिक स्ट्रेस भी होता है और आउटडोर गेम खेलना तो मानो भूल ही गए हैं. उन्होंने कहा कि आज के बच्चे गैजेट्स की दुनिया को एंजॉय तो कर रहे हैं, लेकिन उससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पा रहा.
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आज जरूरत है राज्य और राष्ट्रीय स्तर और सबसे पहले स्कूली स्तर पर पारंपरिक खेलों को प्रमोट किया जाए. जिस तरह कबड्डी जैसे खेल को आज विश्व स्तर पर प्रमोट किया जा रहा है. उसी तरह यदि दूसरे पारंपरिक खेल भी प्रमोट होते हैं, तो उनकी तरफ भी लोगों का खासकर बच्चों का रुझान बढ़ेगा. साथ ही इन खेलों के प्रति अभिभावकों को भी आगे आना होगा. आपको बता दें कि राजस्थान फेस्टिवल 2018 के तहत राज्य स्तरीय परंपरागत खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. जिसमें 7 तरह के खेल कबड्डी, तीरंदाजी, सितोलिया, रूमाल-झपट्टा और भारतीय कुश्ती शामिल की गई थी. वहीं राजस्थान सरकार ने इन खेलों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राजस्थान ग्रामीण ओलंपिक खेलों का आयोजन करने का भी प्लान किया है. जिसमें प्रदेश के 50000 गांव के करीब 62000 खिलाड़ी भाग लेंगे. हालांकि ये आयोजन अब तक कागजों तक ही सिमटा हुआ है.