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स्कूल फीस मामले में SC का फैसला, कोरोना काल की 85 फीसदी फीस निजी स्कूल ले सकेंगे - Supreme court news

सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूल संचालकों को कोरोना काल के शैक्षणिक सत्र 2020-21 की फीस में 15 फीसदी छूट देने को कहा है. यह फीस 8 फरवरी 2021 से 5 अगस्त 2021 तक 6 समान किश्तों में देनी होगी.

Supreme Court verdict in school fee case, Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : May 3, 2021, 7:54 PM IST

जयपुर. सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूल संचालकों को कोरोना काल के शैक्षणिक सत्र 2020-21 की फीस में 15 फीसदी की छूट देने को कहा है. अदालत ने कहा कि स्कूल संचालक फीस एक्ट-2016 के तहत शैक्षणिक सत्र 2019-20 की फीस के आधार पर विद्यार्थियों की वार्षिक फीस तय करेंगे और इसमें 15 फीसदी की छूट देंगे. यह फीस 8 फरवरी 2021 से 5 अगस्त 2021 तक छह समान किश्तों में देनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

पढ़ें- जीवन बचाने के लिए सख्ती से लागू करें रेड अलर्ट जन अनुशासन पखवाड़ा: CM गहलोत

वहीं, स्कूल संचालक शैक्षणिक सत्र 2021-22 में पूरी फीस वसूलने के लिए स्वतंत्र हैं. दूसरी ओर अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी बच्चे की फीस जमा नहीं होने पर स्कूल संचालक ना तो उसका नाम काटेंगे और ना ही उसे ऑनलाइन या फिजिकल क्लास में शामिल होने से रोका जाएगा. इसके साथ ही इस आधार पर उसका परीक्षा परिणाम भी नहीं रोका जा सकेगा.

न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने यह आदेश मैनेजिंग कमेटी सवाई मानसिंह विद्यालय, गांधी सेवा सदन, सोसायटी ऑफ कैथोलिक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस सहित फीस नियामक कानून 2016 को चुनौती देने वाली भारतीय विद्या भवन सोसायटी की एसएलपी पर दिए. अदालत ने कहा कि यदि किसी अभिभावक को पिछले सत्र की फीस जमा कराने में कठिनाई हो तो वह स्कूल को प्रार्थना पत्र पेश करें और स्कूल प्रशासन उस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें.

पढ़ें- फीस का मामला: SC के फैसले का करेंगे अध्ययन, इसके बाद लेंगे आगे का निर्णय: संयुक्त अभिभावक संघ

सर्वोच्च अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के 18 दिसंबर 2020 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने फीस में छूट देते हुए स्कूल खुलने के बाद फीस वसूलने को कहा था. इसके अलावा अदालत ने हाईकोर्ट की एकलपीठ के 28 अक्टूबर 2020 के आदेश को भी खत्म करते हुए अवमानना याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया. इस मामले में निजी स्कूल संचालकों की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान, प्रतीक कासलीवाल और अनुरूप सिंघी ने पैरवी की. जबकि राज्य सरकार की ओर से एएजी मनीष सिंघवी और अभिभावकों की ओर से एडवोकेट सुनील समदडिया ने पैरवी की.

फीस कानून और नियम वैध

सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल फीस एक्ट 2016 व नियम 2017 को वैध करार दिया है. अदालत ने कहा कि स्कूल फीस कमेटी में वे अभिभावक ही शामिल होंगे, जिन्हें फीस कानून और अकाउंटस की समझ होगी. इसके अलावा आरटीई का लाभ ले रहे अभिभावक कमेटी में शामिल नहीं होंगे. यह कमेटी मिलकर फीस का निर्धारण करेगी और दोनों पक्षों को आपत्ति नहीं होने पर फीस तय मानी जाएगी. यदि किसी भी पक्ष को आपत्ति होगी तो वह संभागीय फीस नियामक कमेटी में जा सकता है.

यह है मामला...

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन और अन्य की याचिका पर 7 सितंबर को निजी स्कूलों की 70 फीसदी ट्यूशन फीस वसूल करने की छूट दी थी. राज्य सरकार और अन्य की इस आदेश के खिलाफ अपील पर खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को अंतरिम रूप से फीस तय करने को कहा था. जिसकी पालना में राज्य सरकार ने सीबीएसई की कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों की ट्यूशन फीस का 70 फीसदी और राजस्थान बोर्ड की इन कक्षाओं की ट्यूशन फीस का 60 फीसदी वसूलना तय किया. राजस्थान हाईकोर्ट और राज्य सरकार की कार्रवाई को निजी स्कूल संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुनौती दी थी.

जयपुर. सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूल संचालकों को कोरोना काल के शैक्षणिक सत्र 2020-21 की फीस में 15 फीसदी की छूट देने को कहा है. अदालत ने कहा कि स्कूल संचालक फीस एक्ट-2016 के तहत शैक्षणिक सत्र 2019-20 की फीस के आधार पर विद्यार्थियों की वार्षिक फीस तय करेंगे और इसमें 15 फीसदी की छूट देंगे. यह फीस 8 फरवरी 2021 से 5 अगस्त 2021 तक छह समान किश्तों में देनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

पढ़ें- जीवन बचाने के लिए सख्ती से लागू करें रेड अलर्ट जन अनुशासन पखवाड़ा: CM गहलोत

वहीं, स्कूल संचालक शैक्षणिक सत्र 2021-22 में पूरी फीस वसूलने के लिए स्वतंत्र हैं. दूसरी ओर अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी बच्चे की फीस जमा नहीं होने पर स्कूल संचालक ना तो उसका नाम काटेंगे और ना ही उसे ऑनलाइन या फिजिकल क्लास में शामिल होने से रोका जाएगा. इसके साथ ही इस आधार पर उसका परीक्षा परिणाम भी नहीं रोका जा सकेगा.

न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने यह आदेश मैनेजिंग कमेटी सवाई मानसिंह विद्यालय, गांधी सेवा सदन, सोसायटी ऑफ कैथोलिक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस सहित फीस नियामक कानून 2016 को चुनौती देने वाली भारतीय विद्या भवन सोसायटी की एसएलपी पर दिए. अदालत ने कहा कि यदि किसी अभिभावक को पिछले सत्र की फीस जमा कराने में कठिनाई हो तो वह स्कूल को प्रार्थना पत्र पेश करें और स्कूल प्रशासन उस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें.

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सर्वोच्च अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के 18 दिसंबर 2020 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने फीस में छूट देते हुए स्कूल खुलने के बाद फीस वसूलने को कहा था. इसके अलावा अदालत ने हाईकोर्ट की एकलपीठ के 28 अक्टूबर 2020 के आदेश को भी खत्म करते हुए अवमानना याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया. इस मामले में निजी स्कूल संचालकों की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान, प्रतीक कासलीवाल और अनुरूप सिंघी ने पैरवी की. जबकि राज्य सरकार की ओर से एएजी मनीष सिंघवी और अभिभावकों की ओर से एडवोकेट सुनील समदडिया ने पैरवी की.

फीस कानून और नियम वैध

सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल फीस एक्ट 2016 व नियम 2017 को वैध करार दिया है. अदालत ने कहा कि स्कूल फीस कमेटी में वे अभिभावक ही शामिल होंगे, जिन्हें फीस कानून और अकाउंटस की समझ होगी. इसके अलावा आरटीई का लाभ ले रहे अभिभावक कमेटी में शामिल नहीं होंगे. यह कमेटी मिलकर फीस का निर्धारण करेगी और दोनों पक्षों को आपत्ति नहीं होने पर फीस तय मानी जाएगी. यदि किसी भी पक्ष को आपत्ति होगी तो वह संभागीय फीस नियामक कमेटी में जा सकता है.

यह है मामला...

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन और अन्य की याचिका पर 7 सितंबर को निजी स्कूलों की 70 फीसदी ट्यूशन फीस वसूल करने की छूट दी थी. राज्य सरकार और अन्य की इस आदेश के खिलाफ अपील पर खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को अंतरिम रूप से फीस तय करने को कहा था. जिसकी पालना में राज्य सरकार ने सीबीएसई की कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों की ट्यूशन फीस का 70 फीसदी और राजस्थान बोर्ड की इन कक्षाओं की ट्यूशन फीस का 60 फीसदी वसूलना तय किया. राजस्थान हाईकोर्ट और राज्य सरकार की कार्रवाई को निजी स्कूल संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुनौती दी थी.

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