जयपुर. कोरोना संक्रमण की वजह से मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पिछले दिनों RUHS हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित कैदी ने वार्ड में ही फांसी लगा ली. एक संक्रमित मरीज ने अपनी छत से कूदकर जान दे दी. कोटा में पोते को संक्रमण से बचाने के लिए दादा-दादी ट्रेन के आगे कूद गए. इस तरह की घटनाएं इंगित करती हैं कि कोरोना को लेकर हमारा समाज किस मानसिक अवसाद से गुजर रहा है. इस अवसाद से निकलने के तरीके बचा रहे हैं मनोचिकित्सक मनस्वी गौतम.
अवसाद क्या है ?
मनोचिकित्सक मनस्वी गौतम ने कहा कि कभी कभी लोगों को लगता है कि वे किसी परिस्थिति में बुरी तरह फंस गए हैं. उन्हें इससे निकलने का रास्ता नहीं मिलता. उन्हें लगता है कि कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता. इस तरह के विचार आने पर विपत्ति बड़ी और जीवन छोटा लगने लगता है. दिमाग में इसी तरह की नकारात्मकता अवसाद कहलाती है. ऐसे अवसाद की गिरफ्त में आकर लोग आत्महत्या कर लेते हैं.
डॉ गौतम कहते हैं कि कोरोना काल में सामान्य जीवन बहुत बदल गया है. एकाकीपन, समाज और परिवार से दूरी, संवादहीनता की स्थिति, बच्चों की परीक्षाएं टल जाना, नौकरी छूट जाना या आर्थिक तंगी के दौर से गुजरना. ये सब इन दिनों लोगों के साथ हो रहा है. अस्थिरता और असमंजस के इस माहौल से डर पैदा होता है और नकारात्मकता अवसाद की तरफ ले जाती है. लोग विवेकपूर्ण फैसले नहीं कर पाते.
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अवसाद से कैसे बाहर निकलें ?
डॉ गौतम कहते हैं कि कोविड का खौफ मन के भीतर तक पैठ गया है. इस डर से निकलना होगा. इसके लिए कोरोना से बचने के तमाम उपाय करें. वैक्सीन लगवाएं, घर से जरूरी होने पर ही निकलें और सरकारी गाइड लाइन का पालन करें. अगर फिर भी संक्रमित होते हैं तो नियमित दवा लें और यकीन रखें कि आप ठीक हो जाएंगे. याद रखें कि इसी कोरोना काल में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने उपलब्धियां भी हासिल की हैं.
सकारात्मक पहलुओं को गिनें
ये सच है कि कोरोना और लॉकडाउन के चलते बहुत कुछ नकारात्मक हुआ. लेकिन इसे लेकर जब आप सकारात्मक सोचेंगे तो बहुत कुछ मिलेगा. इस दौर ने नई जीवन शैली समझाई है. हम तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं. बहुत कुछ अच्छा भी हुआ है.
दिनचर्या तैयार करें
आज काम कर रहे हैं या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता. बस अपनी दिनचर्या तय करें. समय पर सभी काम करें. अखबार पढ़ें, परिजनों से बात करें, बच्चों के साथ इंडोर गेम्स खेलें. हर काम को सकारात्मक होकर करें.
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अच्छी सूचनाओं पर ध्यान दें
कुछ समय से अच्छे मैसेज आने लगे हैं. कोरोना वायरस से रिकवरी बढ़ रही है. ठीक होने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है. लोग कोरोना से जंग जीत रहे हैं. सिक्के का नेगेटिव पहलू ही क्यों देखना, जबकि उसका पॉजिटिव पहलू भी है.
आपको परिवार के साथ रहने का वक्त मिल रहा है
एक वक्त था जब आप कहते थे कि आपके पास समय नहीं है. अब आपके पास समय ही समय है. परिवार के खूब बातें कीजिए. सुख दुख शेयर कीजिये. घर के सदस्यों से चर्चा कीजिए. परिवार के साथ बैठिए. पुरानी बातें याद किजिए. अपने अनुभव परिवार के साथ साझा कीजिए. परिवार के साथ इस तरह वक्त बिताने का वक्त इन कोरोना ने ही तो हमें दिया है.
कुछ न कुछ नया सीखें
ये फार्मुला हिट है. नकारात्मकता से दूर रहने के लिए अपने आप को टास्क दें. कुछ नया सीखें. आपकी उम्र भले जो भी हो. नया कुछ सीखना ऊर्जा और सकारात्मकता से भरता है. यह वाकई मानसिक बीमारियों को खत्म करता है. खाना बनाना सीखिये या फिर नई भाषा. या फिर कोई कला. यह आपको तरोताजा रखेगा.
बहुत कुछ अच्छा हो रहा है
लोग फास्ट फूड से बच रहे हैं. यह कोरोना की ही देन है कि लोगों को घर का खाना मिल रहा है. इससे कई बीमारियां तो वैसे ही दूर हो रही हैं. डायबिटीज बीमारी में कमी आई है, शुगर की बीमारी कम हुई है, खान-पान की शैली बदली है, इससे हमारे शरीर को फायदा ही मिल रहा है.
क्या हुआ अगर समय विपरीत है. आर्थिक या सामाजिक स्तर पर कुछ चीजें छूट गई हैं. लेकिन ये परमानेंट नहीं हैं. वक्त बदल जाता है. इसलिए जरूरी है कि नकारात्मकता को यहीं विराम दे दीजिए. जो कुछ अच्छा हो रहा है उसे महसूस कीजिए. प्रकृति स्वच्छ हो रही है. प्रदूषण कम हो रहा है. जब आप सकारात्कता के साथ सोचने लगेंगे तो हर स्थिति सुखद लगेगी. यह आपको उन विचारों से बाहर निकालेगी जिसे डिप्रेशन कहते हैं.