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लॉकडाउनः एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट नहीं कर सके अपना शोध पूरा, ये रही वजह...

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी अपना शोध पूरा नहीं कर सके. बता दें कि प्रैक्टिकल और शोध के लिए लगाई गई फसलें अब बिना शोध के ही काटी जा चुकी है.

श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, Corona epidemic ,  Lockdown effect
श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी
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Published : May 27, 2020, 1:07 PM IST

जयपुर. देश में अभी लॉकडाउन 4 चल रहा है. लॉकडाउन 4.0 में सरकार की ओर से काफी कुछ रियायतें हर क्षेत्र को दी गई है. लॉकडाउन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस अभी बंद है. छात्रों को केवल ऑनलाइन पढ़ाई ही करवाई जा रही है. ज्यादातर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई ऑनलाइन की जा सकती है, लेकिन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के हालात अलग हैं. यहां के स्टूडेंट को प्रैक्टिकल की ज्यादा आवश्यकता होती है और वह प्रैक्टिकल उसे यूनिवर्सिटी कैंपस में बने बड़े खेतों ओर बाड़ों में ही करना होता है.

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट नहीं कर सके अपना शोध पूरा

राजस्थान की बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और पहली एग्रीकल्चर कॉलेज होने का खिताब अपने पास रखने वाली जोबनेर की श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी वो जगह है, जहां केवल स्टूडेंट की क्लासेज क्लास रूम में ही नहीं बल्कि क्लास रूम से बाहर कैंपस के उस भाग में लगती है जहां सैकड़ों बीघा में खेत ही खेत है. यही खेती इन एग्रीकल्चर स्टूडेंट की असली क्लासरूम होती है, जहां अलग-अलग फसलें मौसम के हिसाब से लगाई जाती है.

पढ़ें-कोरोना से तो जीत गए पर सामाजिक बहिष्कारता से हर पल घुट रहे हैं...रोजी-रोटी छिन गई सो अलग

खेतों में विद्यार्थी को फसल के बारे में मिलती है जानकारी

बता दें कि इन्हीं खेतों में विद्यार्थियों को फसल के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है, जैसे की फसल की ग्रोथ रेट कैसे होती है, फसल की वृद्धि दर क्या है, उसमें जगह के हिसाब से बदलाव करना हो इन सभी कामों के लिए स्टूडेंट को यहां रिसर्च अलॉट होता है और आगे जाकर इसी शोध का इस्तेमाल स्टूडेंट करते हैं. साथ ही क्रॉप में होने वाली बीमारियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है ताकि किसान को बेहतर फसल मिल सके.

श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, Corona epidemic ,  Lockdown effect
सौंफ की खेती

अभी देश में लॉकडाउन चल रहा है और ऐसे में कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी स्टूडेंट कॉलेजों में नहीं आ रहे हैं. ऐसे में एग्रीकल्चर स्टूडेंट के लिए प्रैक्टिकल और शोध के लिए लगाई गई फसलें अब बिना शोध के काटी जा चुकी है. वहीं, जो फसलें बची हुई है उनको भी बिना स्टूडेंट के शोध के काटने का काम चल रहा है. ऐसे में कॉलेज स्टाफ किसानों और मजदूरों से सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखवाते हुए फसल को कटवा रहा है, जिसमें मास्क और सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल किया जाता है.

यूनिवर्सिटी में केवल सौंफ की फसल बाकी

बता दें कि अब इस यूनिवर्सिटी में केवल सौंफ की फसल बाकी है, जिसमें उसके शोध का काम किया जा रहा है. हालांकि यह शोध बिना स्टूडेंट के हो रहा है और सौंफ के फसल की खेती राजस्थान में कम ही जगह होती है, इनमें से एक जगह यह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी भी है. यूनिसर्सिटी में लगी बाकी की खरीफ फसल कट चुकी है, केवल सौंफ की फसल काटने के अंतिम दौर में है.

श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, Corona epidemic ,  Lockdown effect
श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

पढ़ें- क्या होगा प्याज का?...पिछले साल 100 रुपए में बिकी, अब 5 रुपए में भी खरीदार नहीं

जानकारी के अनुसार यहां पर हर सौंफ के पौधे की हाइट ली जाती है और उसकी ब्रांच पर अंबल और फिर अम्ब्लेट काउंट होती है. उसके बाद उसकी सीड्स को काउंट किया जाता है और फिर लैब में 1000 ब्रीड का टेस्ट वेट लिया जाता है. उसकी रेटिंग होती है और जो सबसे सुपीरियर ब्रीड होता है उसकी वैरायटी शोध के लिए भेज दी जाती है, जिसे स्टूडेंट अपने रिसर्च में जोड़ लेते हैं. हालांकि अभी स्टूडेंट नहीं है ऐसे में इस शोध में स्टूडेंट का का योगदान नहीं है. लेकिन ऑल इंडिया रिसर्च के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा.

जयपुर. देश में अभी लॉकडाउन 4 चल रहा है. लॉकडाउन 4.0 में सरकार की ओर से काफी कुछ रियायतें हर क्षेत्र को दी गई है. लॉकडाउन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस अभी बंद है. छात्रों को केवल ऑनलाइन पढ़ाई ही करवाई जा रही है. ज्यादातर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई ऑनलाइन की जा सकती है, लेकिन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के हालात अलग हैं. यहां के स्टूडेंट को प्रैक्टिकल की ज्यादा आवश्यकता होती है और वह प्रैक्टिकल उसे यूनिवर्सिटी कैंपस में बने बड़े खेतों ओर बाड़ों में ही करना होता है.

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट नहीं कर सके अपना शोध पूरा

राजस्थान की बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और पहली एग्रीकल्चर कॉलेज होने का खिताब अपने पास रखने वाली जोबनेर की श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी वो जगह है, जहां केवल स्टूडेंट की क्लासेज क्लास रूम में ही नहीं बल्कि क्लास रूम से बाहर कैंपस के उस भाग में लगती है जहां सैकड़ों बीघा में खेत ही खेत है. यही खेती इन एग्रीकल्चर स्टूडेंट की असली क्लासरूम होती है, जहां अलग-अलग फसलें मौसम के हिसाब से लगाई जाती है.

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खेतों में विद्यार्थी को फसल के बारे में मिलती है जानकारी

बता दें कि इन्हीं खेतों में विद्यार्थियों को फसल के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है, जैसे की फसल की ग्रोथ रेट कैसे होती है, फसल की वृद्धि दर क्या है, उसमें जगह के हिसाब से बदलाव करना हो इन सभी कामों के लिए स्टूडेंट को यहां रिसर्च अलॉट होता है और आगे जाकर इसी शोध का इस्तेमाल स्टूडेंट करते हैं. साथ ही क्रॉप में होने वाली बीमारियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है ताकि किसान को बेहतर फसल मिल सके.

श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, Corona epidemic ,  Lockdown effect
सौंफ की खेती

अभी देश में लॉकडाउन चल रहा है और ऐसे में कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी स्टूडेंट कॉलेजों में नहीं आ रहे हैं. ऐसे में एग्रीकल्चर स्टूडेंट के लिए प्रैक्टिकल और शोध के लिए लगाई गई फसलें अब बिना शोध के काटी जा चुकी है. वहीं, जो फसलें बची हुई है उनको भी बिना स्टूडेंट के शोध के काटने का काम चल रहा है. ऐसे में कॉलेज स्टाफ किसानों और मजदूरों से सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखवाते हुए फसल को कटवा रहा है, जिसमें मास्क और सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल किया जाता है.

यूनिवर्सिटी में केवल सौंफ की फसल बाकी

बता दें कि अब इस यूनिवर्सिटी में केवल सौंफ की फसल बाकी है, जिसमें उसके शोध का काम किया जा रहा है. हालांकि यह शोध बिना स्टूडेंट के हो रहा है और सौंफ के फसल की खेती राजस्थान में कम ही जगह होती है, इनमें से एक जगह यह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी भी है. यूनिसर्सिटी में लगी बाकी की खरीफ फसल कट चुकी है, केवल सौंफ की फसल काटने के अंतिम दौर में है.

श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, Corona epidemic ,  Lockdown effect
श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

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जानकारी के अनुसार यहां पर हर सौंफ के पौधे की हाइट ली जाती है और उसकी ब्रांच पर अंबल और फिर अम्ब्लेट काउंट होती है. उसके बाद उसकी सीड्स को काउंट किया जाता है और फिर लैब में 1000 ब्रीड का टेस्ट वेट लिया जाता है. उसकी रेटिंग होती है और जो सबसे सुपीरियर ब्रीड होता है उसकी वैरायटी शोध के लिए भेज दी जाती है, जिसे स्टूडेंट अपने रिसर्च में जोड़ लेते हैं. हालांकि अभी स्टूडेंट नहीं है ऐसे में इस शोध में स्टूडेंट का का योगदान नहीं है. लेकिन ऑल इंडिया रिसर्च के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा.

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